पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६१

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बैनधर्म परिग्रहत्यागी यापक गेप परिग्रहको यिमाजित उत्कट गायकके टो भेट-एक शुनक पोर मरा करके अपने पाम मिर्फ पहनने पोदने के मुक कपड़े ऐलक । नकसे ऐसफफा दर्माचा है। (1) TR-, पौर खाने पीने का पाव रख कर पीर मय परियारको एक मगोटी घोर एक वायत. ( जिममे सर्य गरो त्याग देता है। टका न जा मक) धारण करते हैं। जनरे लिए कमाल १०म पनुमतित्यागमतिमा-जो पारम्भ परिग्रह पौर पौर भोजन के लिए एक पाव रबरी है। जोवदयार मनोक मम्बन्धी कार्याम अनुमति वा मम्मति न दे यह लिए एक पिच्चिका, जो मय पुच्छको होती है, खi ममतिका धारक 'पमुमतित्यागी यायक' है। १०यों । म पिच्छिकामे वे भूमिके प्राणियों की रक्षा करने प्रतिमाका धारक सर्वथा हो पापकार्याम अपनी मम्मति हैं। पासं पुराणमें सुप्तकके लिए एम प्रकार निमा नहीं देता। हम येणो धावकको उचित ६ कि, वह है-भोजन के समय सुक्षक उदासोन भाषसे निकले पोर धन पैदा करने, सर वा बाजार भादि बनाने तथा अन्यान्य उम समय ऐसी प्रतिज्ञा कर ले कि 'पमुक मुगले में - रहस्यों के कार्योम मन चौर वचनमे भो रुचि न करें . भोजनार्य जागा या इतने धरगें प्रवेश करूंगा. उममें एव' पाहाराटिके विषय में भी कुछ मम्मति वा पाना न | जितना भोजन मिल जायगा, सानेगे हो माट दे। पहले सो निमंत्रण मिलने पर जाता था, किन्तु प्रय होगा।' एमा नियम कर गृहस्व के घर वहीं तक साधे, ग्लास भोजनके ममय जो ले जावे. उमौके घर भोजन करता है पहलमेनिमन्त्रण स्वीकार नहीं करता। जहां तक मर्यसाधारपानी गति हो । यदि यापक ११ द्दिष्टत्यागप्रतिमा-जो घरको इमगारे लिए देखते ही 'पद्धगाहन' करे पोर पाहार जलादि शरबत. छोड़ कर वनमें मुनिमहाराजके पास जा व्रतोको धारण लावे तो सुनको चित है कि या ग्राम्य के माय धर. करता है और मितात्तिम भोजन करमा हुपातप करता के भीतर चला जाये। यदि ग्रन्थ सामने न मिले नो . है, वह खगड़ वनका धारक उत्कट यायक कहलाता है। कायोत्सर्ग पूर्वक खड़ा होकर "धर्मला" शब्द उगारण. ओ चपने निमित्त किया था, कराया था ना अपना करे। उसने पर भी यदि कोई 'पड़गाहन' म करे तो . अनुमतिसे बनाया गया, ऐमे तीन प्रकार भोजनको लोट लावे या दूमरे के घर जावे। टूमरे घर जा कर भो प्रहण नहीं करता, वह सहिष्टत्यागो याक है। Bा विधि पमुमार पाचरण करें। यदि यह 'पड़गाइन' किमी पावके लिए जो भोजन धनाया जाता है. उसे करे और पादप्रतान्न नपूर्वक भनि महित चौरम में शाय, हिट पाहार करते हैं। उद्दिष्टयागो गायक किसी। तो तुमकको मन्तुष्टवित्तमे पाहार कर लेना चाहिए और खाम नगर भोजन नहीं करते। भोजन के ममय यदि एक हो गई मोजगकरने का निरायन किया डोसा इसके घर जाते हैं, उस समय जो उन्हें पड़गार श्रापक पावर्मे जो डाल दे उसे से कर टूमर के घर आये। सेता है, उसके घर वे पाहार ग्रहण करते ieत्कट जय भोजन योग्य पाहायद्रष्य प्रामको जाये, तब किमी शावक खास पपने लिए बनाए हुए भोजन शव्या, यावझके यहा (केयान पाशु जन ले ठकर भोजन प्रामन, यस्तो पादिसे विरत रहता है। पच. पान. वाच] करने और भोजनके उपरान्त पावको अपने हायमे मात्र पौर स्वाय धारों को प्रकारका भोधन भिधास्यमे / कर धो डाले। .. । ग्रहण करता है। मन, वचन घोर काय हारा भोजन! . . यतमानमें यह प्रथा प्रायः उठमी गई है। मोग एक बनासा नहीं, धनयाता मही पोर न बने एका पनु हो घरमें जोमना या मिमामा पमन्द कररी है। तुमको मोटम को करता है। यह यावक भोजनके लिए याचना विकान मामायिक पोर प्रोषधोपयाम पयाय करना चाहिए नहीं करता. सहायक बन्द दारको पोलता नही भोर राया पधिक पैराग्य एवं पामधानको उलएठाम प्राध्याय . २ शब्द कर पुकारता हो। तापर्य यह कि पन में वटि न पनी चाहिए। . . . . हिटत्यागोयापक मुनियों के उपयु पार ग्रहण (२) ऐनक-चमक समाम ऐतक मी मामायिक करता है। . :. | पीर मोषधोपयास करें। राविको मौन.. भरण पूर्व क्ष