पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६२

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करत नैनधर्म ध्यानमें लीन रहे। एक लंगोटोके सिवा दूमग वस्त्र न | .. होमविधि-सस्कारके मुहूर्त में पहले घरके किसो रखे । एक पिच्छिका और एक कमण्डलु रकवे भोजन उत्तम भाग ८ हाघ लम्बी. ८ हाय चौड़ी भोर १ हाथ के लिए निकलते समय मुहही और घरोंको प्रतिज्ञा। ऊंची एक वेदी बनायें, जिसमें तीन कटनो हो । उस कर ले कि, “आहारके लिए अमुक मुहल्ले में और इतने | वेदोके जयर, यसिमको ओर एक हाय जगह छोड़ कर, घरमें जाऊंगा" पहुंचने के माथ ही यदि कोई पड़गाइन' और एक छोटीमो बंदी बनावें। यह बेटी १ हाथ करे तो ठोश है : नहीं तो कायोत्सर्ग कर 'अक्षयदान' लम्बो, १ हाथ चोड़ो, १ हाय स'ची और तोन कटनो. शब्द उच्चारण करे । इतनमें वह थावक पटगाहन' करे | दार होनी चाहिए। अनन्तर मुहत के दिन उस वेदो तो चन्न कर चौक में बैठ जावे वा खड़े बने हाथमें भोजन | पर १००.८ जिनेन्द्रदेवको प्रतिमा स्थापन करें । करे। ऐलकको उचित है कि अपने मिर डाढ़ी और | प्रतिमा सन्मुख ३ छत्र, ३ धर्मचक्र और एक स्वस्तिक मूछके केशों का पाप ही लञ्चन करे तथा अपने ध्यानको तथा दाहिनी भोर यक्ष और यक्षोको स्थापन करें । खाध्यायमें ही लोन रक्त । पद्यात् उक्त छोटी वेदीक सामने एक हाय जगह छोड़ । अन्तरायकम को परीक्षा करने के लिए तुम्नक ओर न कुण्ड बनावें। ऐलकको इच्छानुसार वा शति-अनुमार एसो प्रतिज्ञा भो इनमें प्रथम कुगड़ दक्षिणपाख में त्रिकोण, दितीय कुण्ड करनी चाहिए कि, 'यदि घाज यावक ऐमो परिस्थितिमें वोचमें नतुष्कोण और हतीय कुण्ड वाम पार्ख में गोल पड़गाहन करे तो पाहार लूंगा अन्यथा नहीं।' जमे होना चाहिये। रम त्रिकोण कुण्डको गहराई एक आज यदि यावक लान्न वस्त्र पहन कर अथवा दुपट्टा अरवि (चार अङ्गाल कम एक हाथ), तौगों भुजापोंकी प्रोढ़ कर पड़गाहन करे तो पाहार लंगा, अन्यथा नहीं लम्बाई एक अरवि और उन भुजायों पर तीन तीन इत्यादि। इसको 'वतमस्थानतप' करते हैं जो मुख्यतः । मेखलाएं होनो चाहिये । बोचका चतुष्कोण कुण्ड १ मुनियों के लिए पालनीय है। परति गहरा, १ अरवि लम्बा पोर । अरवि चोड़ा विशेष-यद्यपि उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का नामकरण उमके प्रधान कर्तव्य के अनुसार हुमा है। तथापि य: तोन मेखलाएं होनी चाहिए। क्य गोन्त कुगंडका व्यास नियम है कि, जो दूसरी प्रतिमाके नियमौका पालन चोर गहराई १ अरवि होनी चाहिए और ऊपर तीन करता है. इसे. पहली प्रतिमाके नियमों का पालन | मेखलाएं बनानो चाहिए। प्रत्येक कुण्ड में एक एक करना ही पड़ता है। इसी प्रकार जो शुन्नक वा ऐलक मङ्गलका अन्तर होना चाहिए। ' हैं, उन्हें भी नोचेको ममस्त प्रतिमानों के नियम वा व्रता. उपयुव तीनों मेखलायों की चौड़ाई और ऊंचाई घरण पालने ही पड़ते हैं। कामग: ५ अङ्गल, ४ अगल और ३ अंगुल होनो जैन गृहस्पोंके सोलह संस्कार-जेनों में यों तो मंस्कार चाहिए। इन कुण्डों के चारों तरफ पाठों दिशाों में पाठ (या क्रियाए) पन हैं, किन्तु वर्तमान अर्थात् | दिक्पालों के पीठ वा स्थान बनाने चाहिए। जब सय मनुष्यके एक भव वा एक जन्म, १६ संस्कार ही होते | बन चुके, तव चतुष्कोण, विकोण पौर गोल कुण्डको है । भगवजिनसेनाचार्य कृत जैन महापुराणान्तर्गत जन्न चन्दन पादिसे चर्चित करें। अनन्तर गुजता हो पादिपुराणके ३८वें.पर्व में इन ५३ क्रियापों या संस्कारों. चुकने पर मबकी पूजा करें। .... के विषयमें विस्तृत विवरण लिम्वा, है । यहां हम उसो- वीके चतुष्कोण कुण्डको तीय हरकुण्ड, विकोणको के प्राधारसे कुछ लिखते हैं। . . .. गणधरकुण्ड और गोलको शेषफेवलोकुण्ड कहते है। .मभो मस्कारोमें होम किया जाता है वा करना तो दरकुण्डको पग्निका नाम है गाई पत्य तथा गण पावश्यक है. इसलिए पहले जैन मतानुमार शेमको प्रतिमाके ममाव यन्त्र अथवा गस्त्र स्थान पर सचिश विधि लिखी जाती है। . . . | सकते है । Vol. VIII, 16