पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६४

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जैनधर्म ५११ है-"ओ ही मेपकुमाराय धरी प्रक्षालय प्रक्षालय अं हं सं तं . जल गन्ध अक्षत पुष्पं नैवेद्य' दी धूपं फलं निवपामोति पस्व झंझं यक्ष: फट् स्वाहा।" मनन्तर "ओझौं अग्निकुमा- स्वाहा ।" गय झालयंग्यल ज्दल तेजःपतये अमिततेजसे स्वाहा" यह | ____ अनन्तर होम-कुण्ड के पूर्व भागमें बैठनको भूमि शुद्ध मन्त्र उच्चारण कर भूमि पर शुष्क कुश जलावें। पश्चात् । करें मन्त्र-‘ओं ही उपवेशनमः शुद्धानु स्वाहा ।" फिर "ओंडों को षष्टिसहरसंहयेभ्यो नागेभ्य: स्वाहा" कह कर "ओं ही परब्रह्मणे नमो नम: समासने महमुपविशामि स्वाहा" नागकुमारीको अध्यं प्रदान करें। फिर "औं ही भूमि- यह मन्त्र पढ़ कर होताको होमकुइके सामने पशिम- देवते इदं जलादिकमार्चनं गृहाण गृहाण स्वाहा" इस मन्त्रको की ओर मुंह करके बैठ जाना चाहिये । इसके उपरान्त पढ़ कर भूमिको पध्य चढ़ावें। अनन्तर होमकुण्ड के 'ओं ही स्वस्तये पुण्याहकलश स्थापयामि स्वाहा' कहते हुए पथिमी और एक सिंहासन स्थापन करें', मन्त- 'ओं चावलौके पुञ्ज पर पुण्याहकलश स्थापन करें। कलश श्री भई १ वं श्रीपीठस्थापनं करोमि स्वाहा।" इसके बाद पर नारिकेलफल अवश्य होना चाहिए। तदनन्तर "ओं झीं सम्यग्दर्शननमानचारित्रेभ्य: स्वादा" यह मन्त्र पढ़ उस घटके जल को जलमिश्चन और मन्चद्वारा पवित्र कर सिहासनकी पूजा करें अर्थात् यऱ्या चढ़ावें। फिर करें। मन्त- उम मिहासन पर मन्त्रोचारणपूर्वक जिनेन्द्रदेवको ___"ओं हां ही हू हौं : नमोहते भगवते पद्ममहापद्मति- प्रतिमा (अथवा यन्त्र या शास्त्र) स्थापन करें। मन्त्र गिन्छकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीकगंगासिन्धुरोहिरोहितास्याहरितरि "ओं श्रीं श्रीं क्लीं ऐं अह' जगतां सर्वशान्तिं कुर्वन्नु श्रीपीठे | कान्तासीतासोतोदानारीनरकान्तासुवर्णरूप्यकूलरकारकोदा-पयोधि प्रतिमास्थापनं करोमि स्वाहा ।" शुद्धजलसुवर्णपटप्रक्षालित व रत्नगन्धाक्षतपुष्पोर्षितमामोदक इसके बाद निम्नलिखित मन्त्र पढ़ कर प्रतिमाको पवित्रं कुरु कुरु झ झ झ झी व वं मं मंहं संस ते ५ पूजा करें।मन्व- पंद्रांदनी दी हंसः।" भों ही अहं नमः परमेनिभ्य स्वाहा । को ही महं नमः अनन्तर "ओं ही नेत्राय संवौषट्" इस मन्स द्वारा परमात्मकेभ्यः स्याहा | ओं ष्टी भई नमोऽनादिनिधनेभ्य: स्वाहा, कनकी पूजा करें। पद्यात् होता वा रक्षस्थाचार्य गौ ही मह नमो नृमुरासुरपूजितेभ्यः थाहा । औं ही आई। बायें हाधमें कलश धारण कर पुण्याहवाचन पढ़ते हुए नमोऽनन्तदर्शनेभ्यः स्वाहा । ओं ही आई नमोऽनन्तवीर्य-य: । दाहिने हायसे भूमि मिञ्चन करें और पुण्याहवाचन स्वाहा । भो ही भई नमोऽनन्तसौरुपेभ्यः स्वाहा ॥" पूरा हो जाने पर उस कलगको कुण्इके दक्षिण भागमे . अनन्तर चकत्रयका पूजन करें; मन्व-"मो धर्म स्थापन कर दें। पुण्याहवाचनमन्त्र- सकायाप्रतिहततेजसे स्वाहा ।" फिर छत्रयको मध्य । "ओं पुण्याई पुण्याई श्रीयन्तां प्रीयन्ती मगरन्तोऽन्तः पर्यशा प्रदान करें'; मन्त्र-"को ही श्वेतप्रायश्रियै स्वाहा ।। पर्वदशिनः सकलकार्याः सकलसुम्मानिलोके यात्रिलोकेश्वरपूजिता. पयात् प्रतिमाके सम्मुख ही जन्नगन्धाक्षतादिसे जिन- निलोकनायास्त्रिलोकमहिवास्त्रिलोकप्रद्योतनकराः भों वृषभाजित- वाणी सरस्वतीको पूजा करें। मन्त्र-“ओं ह्रीं श्रीं क्ली सम्भवाभिनन्दनमुमतिपद्मप्रभमुपायचंद्रप्रमः पुष्पदन्तशीतल. एंबई दूसौ सौ सनशास्त्र प्रकाशिनि वद वद वाग्वादिनि अद. योवासुपूज्यविनलानन्तधर्मशान्तिकुभुमरमादिमुनिघुमतनलिनेभि. तर भरतर मात्र तिष्ठ तिष्ठ, ४ः ठः समिहिता भव मन यषद | पार्श्वनाथश्रीवर्धमानशान्ताः शान्तिकरा: सकसकर्मरिपरिष. पद्धनम: सरस्वत्य असतं पुष्पं न दीपं धूपं फर्स कान्तारदुर्गविषमेषु रक्षन्तु नौ जिनेन्दाः सर्वविदव ) श्री इति- पर आमरण निर्वामिति स्वाहा ।". . . विजयकीर्तिबुद्धिपम्यो भेयाविन्यः सेवाकृर्षियागिमवायरेभ्य अनार गुरुके लिये मध्य प्रदान करें। मन्त्र-"नों ही मन्त्रयामनचूर्णिप्रयोगस्पानगमनसिद्धसाधनाया प्रतिहतसंचयो सम्यग्दर्शनशान चारित्रपवित्रतरगावचतुरशीतिलक्षणगुगाष्टादशबह भवन्तु नो विद्यादेवताः । निलमहसिक्षाचार्यापाण्यामसर्यशापयश हमीरपरगणधरचरणाः आगच्न भागच्छत संयौषट् अत्र तिटत भगवन्तो न: प्रीयन्तां मोयन्तो प्रीयन्ता । मादित्यसोमोगार- तिगत 3: : अनिहिता भवत भक्त वषट् नमो गणधरचरणेभ्यः युधवृहस्पति शुकशनैश्वरगहुवेतप्रहाय न; श्रीयन्ता प्रीयता प्रीय.