पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६६

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जैनधर्मः "ओं ही अई भईसिद्धकेलिभ्यः स्वाहा । ओं ही पंच। श्री हो नवग्रहेभ्यः स्वाहा। ओं हो अग्नोन्द्राय स्वाहा । दशतिथिदेवेभ्यः स्वाहा। ओंझी नवप्रहदेवेभ्यः स्वाहा ।ओं ह्रीं श्री स्वाहा । भूः स्वाहा । भुवः स्वाहा। स्वः म्वाहा।" -द्वाविंशदिन्दभ्यः स्वाहा । ओं ही दशलोकपालेभाः स्वास। पनन्तर ऊपर कहे हुए ताहुतिके छ: मन्त्र पढ़ कर ओ ही अग्नीन्द्राय स्वाहा ।" | वृताहुति देवें, नपंगके पांच मंत्र पढ़ कर तर्पण करें - अनन्तर निम्नलिखित पांच मन्च पढ़ कर तर्पण | घोर "ओं ही अग्निं परिपेचगामि स्वाहा।' मंत्र हारा करें। मन्व-ओं ह्रीं सईयरमेटिनस्तर्पयामि स्वाहा।। कुण्डमें टुग्धकी धारा डाल कर पर्युक्षण को तत्पयात् ओं ही सिद्धपरमेनिनस्तर्पयामि स्वाहा । ऑ ही आचार्य निम्नलिखित ३६ पीठिकाम बॉममे प्रत्येक मतको तोन मेधिनस्तर्पयामि स्वाहा। यों ही उपायायपरमेष्टिनस्त-तीन बार पढ़ कर शालिसण्ट्रलको पक्वाथ, दुध, घी, पगामि स्वाहा । ओह! सर्वसाधुपरमेष्ठिनस्त पयामि स्वाहा।" खोर, मेवा, मिमगे, केन्ना प्रादि पदार्थीको एकाघ मिना ‘फिर "ओं ह्रीं अग्नि परिषेचयामि साहा" कह कर कुगड़ कर, सुचासे उसकी बाहुति दे ३ . याहुतियों की मख्या ___धारी र दुग्धको धारा छोड़ें। फिर निमनिखित मन्च २०८ है । पीठिका मत्र- द्वारा. १०८ बार समिधाको आहुति देवें । मन्त्र -"ओं हो ___ॐ मत्य जाताय नमः । ॐ अह जाताय नमः । ॐ ही रही थ सि आ उ सा स्वादा" इसके बाद 'लों ही । परमजाताय नमः । ॐ अनुपमजाताय नमः । ॐ स्वप्रधा. अई अईसिद्ध केवलिभ्यः स्वाहा,......' इत्यादि उपयुक : नाय नमः । ॐ अचलाय नमः । ॐ अक्षताय नमः। ॐ मंत्र पढ़ कर ताहुति देयें और फिर 'ओं हां अर्हस्परमेष्टि सन्यावाधाय नमः । ॐ अनन्तनानाय नमः । ॐ अनन्तदर्श- नस्तर्पयामि साहा.......' इत्यादि पांच मंत्र पढ़ कर तर्पण नाय नमः अनन्तवीर्याय नमः । अनन्तसुखाय नमः । करें । तर्पण कर चुकने के बाद दुग्ध-धारा दे कर पर्युक्षण | ॐ नीरज में नमः । ॐ निम लाय नमः । ॐ अच्छे द्याय करें। नमः। अद्याय नमः । ॐ अजराय नमः । ॐ प्रम- इसके बाद निम्नलिखित मंव वारा, लवङ्ग, गन्ध, राय नमः । ॐ अप्रमेयाय नमः । ॐ प्रगर्भवामाय नमः । पक्षत, गुग्गल, सिन्त भानितण्डलका पक्काव, शर.. ॐ प्रचोभ्याय नमः। ॐ अविलीनाय नमः। ॐ परमधनाय प.पूर, लाजा, अगुरु घोर मिसरो इन मबयो एकत्र नमः । ॐ परमकायोगरूपाय नमः । ॐ लोकाग्रवामिने ___ कर मुचामे उसको चाहुति देवें । मव २७ हैं। चार नमः। ॐ परमसिद्देभ्यो नमो नमः । ॐ पई मि. बार पढ़ कर १०८ पाहुति देनी चाहिए। यथा--"यों देभ्यो नमोनमः । ॐ कैलिसिद्धेभ्यो नमः। ॐ अन्त:: की यहीभ्यः स्वाहा। श्री झी मिद्देभ्यः साहा। प्रों ही कृतसिई भ्यो नमो नमः। परम्परामि भ्यो नमोनमः । सरिभ्यः स्वाहा ।यों को पाठयेभ्यः स्वाहा । भी हम ॐ अनादिपरम्परासि भ्यो नमो नमः । ॐ अनाद्यनुपम- माधुभ्यः लाहा । यो हो जिनधर्मभ्यः स्वाहा । प्रों ही सिडेभ्यो नमो नमः। ॐ सम्यादृष्ट धामन्त्रमष्यनिर्वाण- जिनागमेभ्यः स्वाहा। प्रों ही जिनालयेभ्यः स्वाहा । यो पूजाई अग्नीन्द्राय स्वाहा । मेवाफलं पट परम स्थान झी सम्यग्दर्शनाय स्वाहा । प्रों ही मम्यासानाय स्वाहा। भवतु । चपमृत्युनाशन भवतु । ममाधिमरण भवतु ।" मी ही मम्यक चारिताय स्वाहा। श्री झों जयाद्यट इसके बाद फिर मनोधारणपूर्व क धोको पाहुति देवताभ्यः स्वाहा । श्री ही पोड़गविद्यादेवताभ्यः दें, तर्पण करें और दुग्ध धारा छोड़ें। अनन्तर पूर्णा- म्वाहा। प्रों हो चतुर्विशतियक्षेभ्यः साधा। चौहीं हुति देवें। पूर्णाहुतिमें मविपाठक प्रारगामे अन्त तक . चतुर्विशतियक्षोभ्यः स्वाहा। यों ही चतुर्द भवन कुराइमें एत धारा देनो चाहिये पोर पन्त, पट द्रव्य पासिभ्यः स्वाहा। घी को पविधष्यन्तरेभ्यः स्वाहा। और नारिकेन फल चढ़ना चाहिए । पूर्णाहुति के मन- घोडी चसुपिंधज्योतिरिन्द्र भ्यः स्वाहा। घी की हादश | "ॐ तिथिदेवाः पञ्चदशधा प्रमोदन्त । नयग्रहदेवाः प्रत्य. विधक स्पवामिभ्यः बाहा । . पी ही अष्टविधन्य । यायरा मवन्तु । भावनादयो दावि गद्देवा इन्द्रा प्रमो. वामिभ्यः म्बाहा। होंगदिक्पालेभ्यः स्याहा ।। दन्तु। इन्द्रादयो वि दिक्पाला पालयन्तु। पम्नोन्द्र- ___Vol. VI. 129