पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५७०

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जैनधर्म तस्ते पर अखण्ड तण्डल विठा कर उम पर “ओं नमः 1 दर्शन करावें। फिर “ओं ही परिप्रदेशे मोमोषध प्रकस्स. मिभ्यः" यह मन्य तथा प प्रा आदि स्वर भोर क ख याने स्वाहा।" कह कर वालको कमरमे कटिचिड़ धादि व्यञ्जनवर्गा लिखें। अनन्तर वालकको हाधर्म | (जको रमो) और कोवीन बांध दें एवं “ओं नमो बतपुष्प दे कर तस्तके पाम लावें । त- ईते भगवते. तीर्थकर परमेश्वराय कटियूवं कौपीनसहित मौजी- युयोको तखते पर रखवा कर उममे उमी तखते पर | बन्धनं करोमि पुश्पन्यों भवतु असि या उ मा का" एम उपर्युका मन्त तथा प्रमेह तक सम्म र्ण स्वर ओर म'को पढ़ कर कटिचिह्न पर पुष्प और अक्षत निक्षेप व्यञ्जनवर्गः लिखवावे। लिखवाने का मन्त्र -“ओं नमो को । इमके बाद बालक पिताको चाहिए कि रसत्रय ते नमः सर्वज्ञाय सर्वभाषाभाषितसकलपदार्थाय वालमनग | (मन्यादर्शन, मम्यग्ज्ञान और सम्यय चारित्र ) को चिह- भ्याने कारयामि द्वादशांग शुतं भवतु भवतु ऐं भी हों पली स्वरूप । उपयोतको चन्दन और हल्दीसे रंग कर स्वाहा ।” पनन्तर "शदारगामी भर अर्थपागामो भव ।। वानकको पहना दे। इसका म'व-"ओ मर: परम शब्दार्थसम्बन्धपारगामी भव ।" इस मन्य द्वारा आशीर्वाद ] शांताय शांति काय परियौतायाई रजत्रास्वरूपं यज्ञोपवान दे कर कार्य ममाप्त करें। (जैनआदि पु१३८११०२-१०१) संदधामि ममगानं पवित्रं भवतु अई नमः स्वाहा ।" अनन्तर १४ यज्ञोपवीत वा उपनोतिसंस्कार ब्राह्मणों के लिए "ओं नमोहंते भगवते वीर्य करपरमेश्वराय कटिसूप्रारमेष्टिने (गर्भ मे ) ८ वर्ष सत्रियों के लिए ११वे वर्ष और ललाटे शेखर शिखायां पुष्पमाला ददामि मा परमेष्ठिन गमुदा. वैश्योंके लिए १२वें वर्ष उपनोति करनेका विधान है। रन्तु ओं धी ही अई नमः स्वाहा" एम मनको उच्चारण यह संस्कार यथाक्रमसे ५३, ६ठे और वें वर्ष अथवा कर ललाट पर तिलक और गिवा पर पुष्पमाला | । १६ २२वें और २४वें वर्ष भो हो मकता है। इसके बाद इसके बाद वालक न तन वस्त्र (धोती पीर दुपट्टा) पहन यज्ञोपवीत नहीं होता। यज्ञोपवीत रहित पुरुप प्रति कर पाचमन, तर्पणा और ग्रीजिनेन्द्रदेवको अध्य प्रदान हादि करने के लिए अनुपयुक्त है। यज्ञोपवीतके दिनमे करें। फिर प्राचार्य मे व्रत और मवादि ग्रहण करे एवं दश, मात या पांच दिन पहले नान्दोविधान किया भिनाके लिए माताके निकट नाव। जाता है। जन प्रादिपुराणके टोकाकार यधोपयोतकी संख्या के उपनयन संस्कारमें पहले बालकको नान करा कर | विषयमें लिखते हैं कि विद्यार्थी एवं नियत काल तक , मातापिताके साथ भोजन कराया जाता है। फिर चाचर्य धारण करनेवालीको एक सयौंको दो (मुगान (शिखाके अतिरित) करके मस्तक पर हल्दो, (जिमके पास उत्तरीय वस्त्र न हो उमे तोन ), जिसे घो, सिन्दर, दूर्वा पादिका लेपन करें। कुछ विश्रामके | अधिक जीवित रहनको अभिलापा हो उसे दो या तीन याद बालकको फिरमे नहाना दें। फिर भाचार्य पुण्याह और जिसे पुत्रकी वा अधिक धर्मनिट होनेको पाकांचा - वचन पाठ करके इम मनको पढ़ कर मि'चन करे हो उसे पांच यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए। जन "परमनिस्तार कलिंगभागी भव । परमविलिगमागी भव । पर. | शास्त्रों में बागीको सूतका, राजाको सुवर्ण का और मेन्दलिंगभापी भव । परमराउपलिंगभागी भव । परमात्माको रेशमका यज्ञोपवीत पहनने के लिए लिखा। लिंगभागी भव । परमनिर्वागलिंगभागी भव ।" अनन्तर (जैन आदिपु० ३८११०४.१०८) बालक के शरीर पर सुगन्धिष्ट्रयका लेप करके होम पूजा १५ व्रतधारण मस्वार-यह मकार यालकके 'नादि प्रारम्भ करें। होम ममास होने पर ग्रह-स्तोत्रका गुरुके निकट विद्याध्ययन कर पुकने के बाट होता है। पाठ करके 'णमोकार' में वका स्मरण करें और पालक एम, थायण माम पीर यषण ननवम पूर्य कथनानुमार को उत्तरमुख बिठा कर जन्म राधिके लिए पिताका मुख । होमादि किया जाता है। पशात् बालक · कटिन्निद्र बोर

  • गाजे बाजे सार जो यूजन किया जाता है उसे नान्दी | + सनमतानुसार रस्नत्राक निसिप पवीत में दीन

• विधान कहते है। . . . . . भूत भौर तीन ही प्रन्थियो होनी मौदिए । Vol. VIII. 130