पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५७६

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जैनधर्म ५२३ आहार लेने वाट वे जाल में या मठ आदि एकान्त | गोत्र-नित्ति प्रादि शशि करते हैं। उस जनको वे पोने- स्थम्नमें ना कर ध्यान लगाते हैं। मुनि रुचिपूर्वक प्राचार के काममें तो ले हो नहीं मशत; कारण वे भोजन ग्रहण नहीं करते किन्तु भरोरका क्षापमानके लिए लक्ष्य रख करते ममय ही जल पीते हैं, बिना एपणारादिके-भोजन. कर ही भोजन करते हैं। यदि भोजनार्थ जाते समय ग्रहणविधिक वे कभी कोई खाद्य पदार्थ नहीं खाते। मार्ग में हो कोई मांमादिक वा कोई हिंस्रक जीव यह कमण्डलु भी संयमका ही उपकरण है, मिवा शादिके मामने था जाय अथवा ध्यानीस अन्तरायोममे कोई अन्य कोई कार्य उससे नहीं लिया जाता; इसलिए उसे • अन्तराय उपस्थित हो जाय, तो फिर वे तत्काल लोट जाते! भो परिग्रहमें ग्रहण नहीं किया जाता। ज्ञानयाहिक हैं। मुनि यायनायक्ति नहीं करते, किन्तु थावकको { लिए शास्त्र भी मुनिगण रखते हैं। इस प्रकार पोको, अपना शरीर दिखाते हैं। यदि उमो समय उसने उन्हें । | कमण्डलु पोर शास्त्र ये तीन पदार्थ ही उनके पास रहते प्रतिग्रहण किया तब तो ठोक है, अन्यथा पागे बढ़ | है, नो ज्ञान तथा मयमके कारण हैं । अन्य कोई नाते हैं । यदि भोजनको मनमें भी याचना रखें तो परिग्रह उनके पास नहीं रहता। यदि अन्य कोई उनको ग्टडता या भोजनमें कृष्णा समझो जायगी, नो | वस्तु-यस्त पात्र दण्ड प्रादि कुछ भी हो तो उन्हें मुनि मुनिमागे से बाहर है। पदमे च्यु त समझना चाहिये। यदि मुनियों को यह विदित हो जाय कि यावकने ____उपयुक्त तीनों वस्तीको रखते ममय देख कर हो उन्हों के लिये भोजन बनाया है, तो वे उसे ग्रहण नहीं। रखना, उठाते समय देख कर ही उठाना (जिसमे किमो करेंगे, कारण वे उद्दिष्ट माजनके त्यागो है। भोजन | जीवका वध न हो जाय) इसीका नाम पादाननिक्षेपए- धनाने में जो पारम्भजनित हिसा होती है, उसके भागो। समिति है। मुनियों को भी बनना पड़ेगा । यदि वे उद्दिष्ट भोजन | ____५म व्य त्सर्ग समिति -जन्तुमोको देख कर, निर्जीय करें, तो यह मब भोजन विधि एपणासमितिम या जाती। स्थानमें लघुशक्षा (पेयाच) या दीर्घशंका-गोचनिवृत्ति है, जिमे मुनिगण बड़ी सावधानोमे नियमपूर्वक पातते करने का नाम व्य सर्ग ममिति है। मुनियों में यात्रा. है। खूब अच्छे अच्छे पदार्थ खाना, पुष्टिकर खाना, चारको मुख्यता है, उनके धारा प्रमादयय भी किसो यावीके घरसे न्ना कर स्व स्थानमें खाना ये मव बातें जोवका वध नहीं होना चाहिये। यदि किसी प्रकार मुनिएदमे सर्वथा विरुद्ध हैं। दृष्टिदोपमे वा प्रमादसे जीव वध हो जायगा, तो वे गास्त. ४र्थ पादाननिर्मपा-ममिति-मुनियों के पास कोई। विहित प्रायश्चित्त ले कर शधि करेंगे। इस प्रकार उपर्याव परिग्रह तो होता ही नहीं, जन्तुओंको रक्षा करने के | पञ्च समितियां मुनियोंके लिये श्रावश्यक वा पालनोय लिए एक मय रके उपरिम कोमन पुच्छको विछिका क्रियाएं हैं। होतो है, उममे थे कोड़े मकोड़ोंको धोरेमे झाड़कर बैठते पञ्च महाव्रत-मुनि वम पौर स्थायर-हिसार्क सर्व या है भोर भाड़ कर हो कमण्डलु एव' गास्त्र रखते हैं। व्यागो होते हैं, इसलिये उनके जो अहिंसावत है, वर मयारपुच्छको पिझिकासे जोयको किसी प्रकार माधा । सर्व देशरूप है, अर्थात् वे ममस्त मीयों की पूर्णतया नहीं पहुंचती, न महतो था गलती हो है पोर न वह हिंसा नहीं करते, यही उनका पहिमा महामत है। कोमसो वस्तु है जिसे चोर ले जाय । यह मुनियों का उप मुनि किसी प्रकार कभी झूठ नहीं बोलते, यही धन- करण यावकों द्वारा दिया हुमा केवल अन्तहिंसासे बचा का सत्यमहावत है। .. नेके लिए है, इसलिए मयम की मामपीमें शामिल . वे कभी किसी प्रकारको घोरीके भाव नहीं रखते, है, परिग्रहमें नहीं । दूसरा मयमोपकरण काष्ठका इमलिये उनके पूर्ण प्रचीर्यमहामत है। शील में जितने भो कमण्डलु उनके पास रहता है, जिसमें भोजन (१८०००) भेद हैं, उन्हें पूर्ण रूपमे पानते हैं, इसलिये समय यावक गरम अन्न भर देते हैं, उम जनमे थे। उनके पूर्व नसचय महावत है।