पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५७८

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जैनधर्म १२५ 'हुधा भी लम्बित नहीं होता, उसी प्रकार मुनि भी नग्न : इन चार प्रचार माहारीका सर्वथा त्याग कर देना, रहते हुए बिना किसी विकारकै लज्जा रहित, स्वामा । अनशन तप है । विक जीवन प्राम करते हैं । लज्जा तभो होतो है, जब | अवमोदर्य अयया ऊनोटर पल्प आहार करना इन्द्रियोंमें विकार होता है : बालकके विकार भाव न । अर्थात् जितनी भूख है उसमें एक प्रास, दो ग्राम, होने से स्त्रियों के बीच में रहने पर भी, उमे लज्जाका भाव | तीन ग्रास आदि क्रमसे भोजनको घटा देना, घटाते नहीं होता। इसी प्रकार श्रावक भो नब ममम्त विकार घटाते एक ग्राममात्र लेना; यह तप पच्छा-निरोधक भावी पर विजय पा चुकते हैं, तभी उम निन्य लिङ्ग लिए किया जाता है। लालसाएँ म तपमे नष्ट हो -नग्नल गुणको धारण करते हुए मुनिपद यहण करते आती हैं। है। चित्तरञ्जन करनेवाली स्त्रियों में हाव भाव विलास ____ विविक्त शय्यासन-जो म्यान जीयोंको वाधासे रहते हुए भी उन मुनियोंके चित्तमें किञ्चिन्मात्र रहित है, एकान्त है, ऐसे वसतिका, खण्डहर. मठ, विकार नहीं होता। यदि विकार हो तो उनका मन्दिर धादि स्थानोंमें शयन करना। वाद्यनिङ्ग भी विकागे हो; ऐसी अवस्था में उन्हें लोक रस परित्याग-जो खाद्य खाद्य पदार्थ रसनन्ट्रि- लज्जा भी होने लगे। दूपनिए मुनित्ति बहुत सवत है यको विशेष लालायित करानेवाले ही उन सब रमौका वोतरागी पुरुप हो उमे धारण करने में समर्थ हैं। तथा दूध, दही, घी, बाड़, तेल, हरित, नमक प्रादिका जो गरमोमें मकान के भीतर ठण्डको बा और त्याग करना। खसके पास बैठे पाराम करते हैं, जामि शाल दुशाला कायलग-अनेक शासन लगा कर ध्यान करना, मोढ़ते हैं, मदेव उत्तमोत्तम पुट एवं स्वाद्य पदार्थ | ग्रोभकालमें जब कि मनुष्य गरम पृथ्वी पर चलने में भो मेवन करते हैं, ये क्या मुनि कहलाने के पात्र हैं ? यही प्रममय हो जाते हैं एवं ठगई. मकानों के भीतर बैठ कारह है, जो पाजकलके कष्टसाध्य समयमें भी १८ कर खस पंखा श्रादिका उपचार करते हैं, तब जैन वर्ष के पञ्च तक किमी किमी सम्प्रदायमें माधुपद ग्रहण ! मुनियोंका मध्यान-सूर्य के प्रखर उत्तापम तपे हुए किये हुए दीखते हैं। सब प्रकारको पारामको सामग्री है। उम्रत पर्वतके शिखर पर नियल काययोगमे ध्यान सेवकगण खड़े हुए हैं. कष्टका नाम नहीं है, फिर भला लगाना, चातुर्मास-वर्षाकालमें वृक्षक नोचे ( जहां कि साधु होनि में क्या आपत्ति ? परन्त जहां हम प्रकारको देर तक बिन्दुओंका झड़ म मारो जीवाको पाकुलित माधुता है वहां मोक्षमार्ग अति टुम्तर है। उपर्यत मल करता रहता है. पयवा नदियों के किनारे खड़े हो कर गुणोंका पालन मुनिपद के लिए नियामक है. इनमेमे यदि। (या बैठ कर) ध्यान करना, गीतकाल में मरोवर या झोन एक भी गुणको कमी होगी, तो माधुप? नहीं रहेगा।' के किनारे ( जहां माधारण लोग ठण्डको तीव्रतामे इन मूनगुणों के मिया उनमें चोरामो लाख उत्तरगुण भी। थर थर कापते हैं) शरीरमे ममत्व छोड़ तप करना काय. होते हैं, जो कि छोटे-छोटे सूक्ष्म दोषीको टालनेमे एवं', केश तप है। इस प्रकार तीव्र तपके द्वारा जो गरीरको पाहत व्रतों को पूर्ण रक्षासे मुनियों द्वारा पाले जाते हैं। । केश दिया जाता है, वह कायक-तप कहलाता है। . मुनिगण सदा यार६ प्रकारका तप करते हैं; उनमें छः . * यहां शंका की जा सकती है कि कायक्लेशसे तो भेद वाचतप है भोर का पाभ्यन्तर तपके । अनशन, भारमा काय-माव पैदा होगा, ऐसो अवस्थामे कर्म हो प्रयमौदर्य, विविता-शय्यामन, रसत्याग, कायनश और होगा; तपका फल कमाको निजा होना बताया गया है, हत्तिख्यान ये छ: मंद वाच्यतपके है। प्रत्येकका। वह कायदेशसे कैसे सिद्ध होगा। प्रत्युतः विपरीत फल सिद खरूप इस प्रकार है- होगा, ऐसी अवस्थामें कायक्लेशको जैनियोंने तपमें पोरण • पनगम-माय, साध लेना, पेय (रममें खाने पीने किया। इस शंकाके उत्तर में, यह मम लेना पाहिये कि यहां के सभी पंदाय श जाते हैं, कोई हाकी नहीं रहता)। पर अप्रमत गाषिकार चला भाता है। टमका प्रयोजन यह है कि Vol. ril 18