पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५८

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" जयदेव कवि-जयष्ट्रय .. ५५ मेनका जन्म हुआ होगा। शायद मादित्यसेम एवं उनके हिन्दी कवि । इनकी गुरुका नाम सुखदेव मिथ था। दामादके अल्पवयसमें हो पुत्र पैदा हुए थे। ये मवान फाजिलप्रलोमाँके पास रहते थे। सं. १७२८ जैसे यौहपने ६१. ई मे १४० ई०के भीतर अर्थात में इनका जन्म हुआ था। - २७२८ वर्ष में ही पुब, पौत्री और पुत्र के दामादका मुंह मयदेवपुर-टाका जिलेके अन्तर्गत भावान राजाती देख लिया था, उसी प्रकार भादित्यसेनके भी (५७०से राजधानो। भाषाल देखो। • ६१८ ई०के भीतर) 18 वर्ष के भीतर कन्या, दौहिती सयाल (सं० पु०) विराटभवन छद्मवेशो सहदेव, महा और दीक्षितीफे पुत्रका होमा असम्भव नहीं। देवका उस समयकाबनावटी नाम, जय वे विराटके यहाँ · महाराज आदित्यसेनके शिम्सा-लेख में महाराजाधिः । अज्ञातवास करते थे। राजको उपाधि दिखा कर ही फ्लोट साधने उन्हें गयट्रय (म. पु. ) जयत् प्यो यस्य, बहुयो । १ सिन्धु. सम्राट समझा लिया है, परमा केवल महाराजाधिराज ] भौवौर देशके एक राजा दक्षके पुत्र । ये दुर्योधनके माम देखकर किसीकी सम्राट नहीं माना जा सकता। बहनोई और दुपालाके स्वामी थे। ये किमो समय राद पौर विरेन्द्र में मुमतमामोंका आधिपत्य पिस्टत काम्यकवनकै भीतरसे जा रहे थे। इस समय पाण्डवगइ होने पर भी जैसे बङ्गाधिप समयसेन के पुत्र विश्वरूपदेव मो उमा वममें थे। सुदूराज्यको अधोखर हो कर भी महारामाधिराज परम द्रौपदीको पकेची बनमें देख कर उनको पाने के लिए मारकको उपाधि भूषित हुए हैं (१०)। सभी प्रकार इनका मन ललचाया। पहोम पारिपद फोटोफास्यकी • श्रादित्यसेम भी फेयल मगधके राजा हो मर महाराजा दूतको सरह ट्रीपदौके पास मा । कोटोकास्यने द्रौपदी. . धिराजकी उपाधिसे विभूषित थे, न कि सम्राट् थे। के पाम जा कर कहा-"म सुरथ राजाका पुत्र हूं. मेरा गुप्तराजवंश देखा। । नाम है कोटोकास्य । सिन्धदेगाधिपति राजा जयद्रथने व्युतर साहबने नेपाल राम २य जयदेवके ससुर । मुझे पापके पास यह पूछने के लिए भेजा है कि, आप और ननिया समर दोनीहीको एक वशीय बतलाया है। कौन हैं, किमको पुत्रो और किनकी भार्या हैं ?" द्रौपदीने किन्तु ससुर एवं सासके पिता कभी भी एक व नहीं। अपना परिचय दे दिया। जयद्रयको परिचय मालम होते हो सकते । सम्मषतः महापोर हर्ष देवने कामरूप पति ही वे उन्हें हरण करनेकी चेष्टा करने लगे। परन्तु भोम भगदत्तवंशीय कुमारराज भास्वारपर्माको कन्या भयवा । और पर्नुन हारा ये अत्यन्त अपमानित किये गये । दोनों भगिनीका.पाणिग्रहण किया था और उनके गर्म से हो । भाईयोंने मिल कर जयद्रथका मस्तक मूड़ दिया | जय. २य जयदेवको पानी राज्यमतीका जन्म दुधा था। इसी । ट्रयने इस अपमानका बदला लेनेसोच्छा गधारको लिए शिलालेखमें राजामतीको 'भगदत्तराजकुलजा' प्रस्थान किया । वो पहुंच कर वे शहरको तपस्या करने या गया है। सगे। महादेवन सन्तुष्ट हो कर उन्हें पर मांगनेको २य जयदेव शिलालेख में लिखा है-जयदेवको कहा जयद्रयने कहा--भगवन् ! मैं पाँधों पण्डयोंको माता वत्सदेवोने मृत स्वामौके लिए परपतिको एक युबमें पराजित करू" महादेवने उत्तर दिया- रजतपन उत्सर्ग किया था । शायद इस शिलालेखफे खुदः। "नहीं, तुम अर्जुनकेमिया चार पाण्डयोंको पराजित कर मेमे कुछ ही यह पिवदेवकी मृत हुई थी। विधाह, सकोगे। श्रीक्षा अर्जुमको सर्वदा रक्षा करते हैं, इस. होने पर भी उस समय जयदेव चालक थे। लिए पर्छ नदियोंके भी अजय हैं। इसलिए में पर देता जयदेव कवि-पशिदोंके कवि । इनकी कविता 'उमकि , एक दिन तुम अचमके सिया युधमै मसैन्य जोती घो। म०.५८१६मरमका जन्म हुमाया। पाण्डवों को परास्त कर सकोगे।" इसके अनुसार पदोंने मैनपुरी जिले के अन्तर्गत कस्मिनाके रहनेवाले एक ट्रोणाचार्य बनाये हुए पक्रष्य के बारक्षक- मन कर ___) Vile the Sana kinge of Bengal. by K. Varn. चारों पाण्डवों कोःपरास किया थासीपकाय्य में