पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५८७

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जैनधर्म उमका प्रयोग करता फिरता है। इस प्रकारके परिणामों । जगत्मे ममत्व नहीं करता। मिया इमझे जो पारमोर : । को दितीय मामादन गुणस्थानके नाम कहते हैं। यह निज-सुख गुण है, उसका ग भो उसके उगमस्या, माय जोयक पनन्तानुबन्धी कपाय चतुरयके उदयमे 'गुग के साथ प्रकट हो जाता है। यह सुख पन्नीकिक है, होता है। दिव्य है, अविनगर है, दुःखम मयंघा रहित है, एव जीयका एक भाव ऐसा भी होता है, जिनमें न तो कर्मबन्धविहीन है। इसके विपरोत इन्द्रियजनित सुम्यु। उसके ममीचीन परिणाम ही रहते हैं, और न मिथ्यात्व । दुःखपूर्ण है, नम्वर है, मारवर्दक एवं कर्मबन्ध . रुप विपरीत ही; किन्तु मिय होते हैं। ऐसे परिणामों सत है; अतएव त्याज्य है। यह सम्यगुणका विकाग. . को धारण करनेवाला जीव भी घमुके यचा विचार हो चतर्य गुणस्थान के नाममे प्रख्यात है। जिस प्रकार एय गमोचोन मियाकागड़मे विरुड ही रहता जानका 'जानना' कार्य है उसी प्रकार हम गुप्पका कार्य . है। जिस प्रकार दधि और गुड़के मिलनेमे न केवल दही। पारमा तया इतर पदाधों में यथार्थ प्रतीति करना है। का ही स्वाद प्राता है, और न केवल गुडका ही जिम जोयको एक बार भो मम्यक्ष हो जाता है. वह । किन्तु खुट्टा मीठा. मिल कर ए तोमराही 'मटा-मीठा नीव उमी भय (जम्म में अथवा २१४६ वा मध्यात पाटि स्वाद याता है (लो शिखरिणो नाममे प्रमिड है) मधेपुल परावत न कालमे (नियमित कालमें) नियममे उमी प्रशार सम्यक् परिणाम तथा मिथ्या-परिणाम, मोक्ष चना जाता है, अर्थात् सम्यक गुणके प्रगट होने पर दोनों के ममियणमे एक विनित (जीवका) परिणाम | अनन्त मसारको अघधि प्रतिनिकट हो जाती है। जिग : होता है। यह परिणाम मोनोयकर्म के भेदस्वरूप गुगामे पारमाको माक्षात् प्रतोति होने लगे एव' यार । सम्यक्रमिष्यात्वकर्म के उदयसे होता है। या ३य नीव भजीय पदार्थोंका यथार्थ यहान हो नाय, प्रमोको गुणम्यानका भाव है। यहां तकके जीय-भाष म मार मम्यक-गुण कहते हैं। हम गुणस्थानसे हो मम्यक्चारित प्रारम्भ होता है। इसमे पहले नितना भोपाचरणा या ही कारण है. फोकि कपायोको तोडता उनके विचारों- मध मिथ्या चारित है। चोथ गुणस्यानमें मम्यारिखका को ममोचोन नहीं होने देतो. इसलिये उन्हें उलटा ही प्रारम्भ तो हो जाता है, पर कपार्यो को तोग्रतमें उममें मार्ग अच्छा प्रतीत होता है। " प्रत्ति नहीं हो पाती। इसका भो कारण यह है कि वो __निम ममय किमो तोव पुण्यका उदय एवं कान्द- अप्रत्यास्थानावरमा कपाय जो चारिखको वाधक उदय लब्धिका निमित्त दम जोत्रको मिलता है, उम-मय में पा रही है। परन्तु प्रतोति यहाइम गुणस्यान सम्यक मोहकमका भार कुछ हलका होता है। 'उम अवस्थाम है । जिस ममय उना काय उपगमित हो जाता है, उस जोयको छिपी हुई मम्यग्दर्शन नामा शक्ति प्रगट हो जातो ममय जोय मम्यचारिखके पालन तत्पर हो जाता है। यह गति भाग्माका प्रधानगुण है। जब तक मोहनोय । . ५ गुणस्थान में 'कपायें कुछ तो गान्त हो जाती है फर्मको प्रयत्नतामे यह गति पाचन रहती है, त३ तक जिममे जोव चाम्यि पालन में प्रत्त हो जाती है, कुछ शीव मिथ्या मामि दलमा एमा स्वयं अपना पहित ! प्रयन भी रहती है जिसमें वह मुनिधर्म धार करता रहता है. दूमरीको भो उमी मार्ग में ढकेलता है। करन यममय बना रहता है। पुम गुणस्थागर्म रहने परन्तु जय यह गति प्रगट हो भातो है, तब जोवको बाला जोय स्य महिमा पर्थात् बमजोवोंकी मकस्पा मोति. उसका वोध गमोचोन, ययाय एवं मन्मार्ग - हिमा, स्य न झूठ, स्य ल चोरी, स्थ न भुगोल, और परि प्रया बन जाता-यम यह झीय मोक्षमार्ग के ग्रह इनका परित्याग करता है। वह बिना किमो विरोध पक को माम कर लेता है। जिम ममय जीवके यह भीदारिक पकिन माहार गरीर और मापवामियों के • मम्बा गुण प्रगट होता है, मममय पामाइन्द्रिया योग्य असयार तीन गृहीत तात्रि पुल परम गु गुहा , विपको रोपन करता एपाभो, उन्हें हेय मममता-:ो निकर पहले ये सियादि भावों में गुरु पुरु मदा मामारिक वामनापोंम परि रखता है-बगेर एवं पामागु पदण दिये थे वैसे ही पहल कमाल न पारगर है।