पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५८९

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५३४ घना या मनिन नहीं होना मी प्रभार जिन कर्माकर रहनेमे पूर्ण वीतरागता नहीं दी जाती। पामामि मम्बा है उनके मयं या घट जानेमे फिर परमायोतरागता बारहवें गुणम्यानम होतो , फिर योन कमो पद नहीं होतो. यही उपायपोको भाय का रागी पात्मा कमो किमो कर्म का पन्ध महो कर माती, उपगम और क. दोनों योपियों का प्रारम्भ में क्योंकि पन्ध करनेवाला कपाय है, या जब म या ना गुणस्थानमे होता है। पाठवें, नवमें, दगः पोर ग्यारहवें हो सकता है, तब बन्धका कारण न रहनेमे यन्धका भो गुणण्यानमें उपगमय गोके परिणाम होते हैं, और पाठ, प्रभाव हो जाता है। हो, पभी योग पगिट रइनमें नववे, दश तथा वारय गुणस्थानमें आपकअंगो के केयन वेदनोय कर्म का, पासप होता है, किन्तु विना परिणाम होरी है। कपायके वे प्राग्मामें ठहर नहीं सकते पोर बिना तारे ___पामा जितना कर्मबन्ध मालवे गुणस्थानमें करतो कुछ फल भी नहीं दे मकसे। इसलिये वोसराग. पात्मायौ है उमसे बहुत कम पाठम, उममे वाहत कम (क्रमसे) में योग-जनित जो कम पाते हैं, ये बिना सामामें - नौवम, दगम करती है। इसका भी यहो कारण है कि एक ममय हो निर्जरित हो जाते हैं। . . मंचलन क्रोध-मान माया-लोभ कषाय उत्तरोत्तर अत्यन्त | यह एकत्वपिसके ध्यान होता म ध्यान में मन्द होते गये है। टर्व गुणम्यानमें कयल लोम. पारूढ़ होनेवाली पारमा शुद्ध म्फटिक तस्य निर्मन कपाय है, यह भी इतना सूना है कि जिमका मुनिगण | परिणामी बन जाता है पोर उम ध्यानम्वी पग्नि के दारा अनुभव भी नहीं कर मकत, केवल कर्मोदय मात्र है । सानापरणा, दर्श नायरण, पतराय,इन धातिकम वय पाठवें नवयें और दसवें गुणम्यानम उपशमयेगीशों के | रुपी काठको तुरन्त भम्म कर देता है एवं जिस प्रकार . प्रोपगमिक भाव और आपक येणीवालों के सायिक भाव बादलों के घट जानेमे मंमारको अपने पतिम प्रकाश ममझ जाते है, परन्तु यह स्व ल दृष्टि से कहा जा मफला | प्रकाशित करनेवाला सूर्य नदित होता है, उमी प्रशा है । वाम्सवमें वहां घायोपणमिक मात्र हैं। कारण नहीं | जान को रोकनयाले पानावरण, दर्गनको गेकवाने. कुछ कमीका उपगम पयवा क्षय होने के माय उदय दर्शनावरण और पारमीय वीर्यशक्तिको रोकनेवाले प्रत भो रहता है । येवल प्रौपगमिक भाव ग्यारहवें उरागान्त राय कमे को नष्ट कर पात्मा केवलज्ञान ! सर्व समा), " कपाय गुणस्थानम हो रहता है। पर्न तदर्गन एवं' अन स्वोय इन गुणोंक,पूर्ण विकास उपगमयणी पर गरूद मुनि जय दगवे गुम्यानम् मे समस्त जगत्को एक हो क्षणमै साक्षात् प्रत्यक्ष जामने ऊपर आते हैं, तब ग्यारहम पहुंच ग्यारवे । लगती है। इस अवम्याम मामा-बयोदश गुणस्थानयर्मा गणयान पचनेवाले मनि परिणाम न कोरिक .. योपहत् परमारमा जीवन्मक कहलाने नगी चौर एक अन्तमहतं ही रह मकसे है. पयात नियममे उन्हें | जगत्के जीवोंको विना इच्छा ही धर्मापदंग देते हैं। दम पाना पड़ता है। किनु यह शान शायिक येगी . इस गुण स्थानमें परमात्माको स्थिति तब तक गहती ' चढ़यान नहीं होती। तकनीक भूमि भाय हे जय तक उनकी पायुः अपशिट रमतो । . दगम ग्यारस्य न जा कर मोध यार में पहुंचते हैं। जय पायुमें दोषल उधारण ममान काल मत अन्तमु .. घे दायें घसमें माम लोमका मयंया नाग करते । भते प्रमाण काल पर उ न पक्षाघ ३ पय पारी ममम्त पार्योका माग पाठ नौवमं कर पुफले . गिष्ट रहता , नव श्री पहना भगवान्के चोदा ९ ममिये बारहवं शीपकपाय गुणस्यानमें पार चने गुणस्यान हो जाता.हे। योगा कामा नो फर्म उनको पान म नियति कपाका मर्वया नागो. नाता । पारमा यति धे, वे योग निरोध होने कारण का पतएप गौरगगी यन आते। , साते हैं। उमो समय प्रयोग कैयनी यो पहंस भगवान् मे तो म नियों मोतरागता है गुणम्यानमे ही . ( पसनाम-दर्गन-गुण-वीर्यविशिष्ट शहारमा या प. प्रारी जातो गन्त कुछ कपागोदय ! मात्मा ) सुपरहिया मिमुक्ति मामक परम्पकाभ्यान