पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५९

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प्रह नयधर्म जयनारायण तर्कपश्चानन असहाय प्रविष्ट अमभिन्यु निहत हुए थे। इसलिए है। जनसंख्या लगभग ८८१०.होगी। १८३८ . अर्जुनने जयद्रयको अभिमन्युको मृत्युका कारण समझ | म्य निसपालिटी हुई। . . कर मार डाला । जयद्रथके पिताने पुत्र (जयद्रय ) को जयनन्दी-तिकमतहत एक प्राचीन कपि। वर दिया था कि,. जो कोई उनका मस्तक भूमि पर नयनरेन्द्रसिह-पातियालाके एक महाराम। ये एक । गिरायेगा, उमका मस्तक उसी समय शतधा चूर्ण हो । सुकवि भी थे। १८४५ ई. में इनके पिता करमसिकी जायगा। अर्जुनने कणके मु'इसे यह बात सुन रकवो | मृत्यु होने पर ये राजमि हासन पर बैठे थे। सिमा थी, इसलिए उन्होंने जयद्रथका मस्तक भूमि पर न गिरा युके समय इन्होंने हटिश गयौ एटको यथेष्ट सहायता कर कुरुक्षेत्र सनिहित समन्तपञ्चकस्थ तपीपरायण दक्ष. . की थी, जिसके लिए गर्भ एटने इन्हें १८४६ ईमे ती की गोद में रख दिया । तपस्या पूर्ण कर ज्यों हदक्षत्र उठे | हजार रुपये प्रायको एक जागीर दो थो। कोंने अपने त्यो हो मस्तक भूमि पर गिर पड़ा। फिर क्या था. उन्हीं राज्यमें अन्य समस्त प्रकारको पण्यद्रव्यों का महसूस उठा का मस्तक शतधा चूर्ण हो गया। (भारत धन और द्रोग)। दिया था, इसलिए घटिश गवमें एदने दूसरे वर्ष साहोर. . उनके पुत्रका नाम सुरथ था। राजको अधीनस्य कुछ सम्पत्ति छोन कर राजा नरेन्द्रसिंह ___२ काश्मोरके एक प्रसिद्ध कवि। सुभटदत्त, शिव | को प्रदान की थी। सिपाहीविद्रोहमें इन्होंने अंग्रेजोकी और सङ्गधर इनके गुरु थे। इनके पूर्व पुरुषगप प्रायः | यथेष्ट सहायता को थी, जिसके लिए इन्हें दो लाप .. समी सपण्डित पौर काश्मोररान यशस्कर, अनन्त, उच्छल रुपये पापको झन्नररियासत और पुरुषानुक्रमसे दत्तक पादिके मचिव थे। उनके पिताका नाम-गुगाररथ था | ग्रहण करनेका पधिकार प्राम हुमा था। १८६१ ० . ये भी राजराजके सचिव थे। इनके ज्येष्ठ सहोदर जय | ली अनवरीको इन्हें G.C. S. I. की उपाधि मिली रथात तम्बालोकधिवक नामक अन्यमें इनके पूर्व पुरुषों । घो। १८६२ ई० में १४ नवम्परको इनकी मृत्य, दुई, का परिचय दिया गया है। जयद्रथकी महामाहग्जर| मरते समय ये अपने हादशवर्षीय पुत्र महेन्द्रसिहको पीर राजानक ये दो उपाधियां थीं। इन्होंने हरथिवः । राम्य दे गये थे। चिन्तामणि, अलारविमर्शिनी, पलहारोदाहरण आदि | जयनाथ तमसानदी प्रवाहित प्रदेशके एक 'महाराज। संस्कृत ग्रन्यो की रचना की थी। उचकल्पमें इनको राजधानी थी, इसलिए ये उच्च कल्पके १ वामकेवरतन्त्र विवरण नामक संस्कृत ग्रन्यके प्रणेता। राजा. इस नाममे प्रसिद्ध हैं। ये व्याघ्र महाराज ४ एक यामलका नाम। पोरम पीर प्रज्झितदेवीके गर्भ में उत्पन्न हुए थे। जयधर्म (म० पु.) एक कुरुसेनापतिका माम। १७४-१७७ ( गुप्त या कलचुरि) मम्वत्में राज्य करते नयध्धन (म.पु.) १ कातवीर्यार्जनके पुत्र, अवन्ती | थे। इनके पुत्रका नाम था महाराज मनाथ। के राजा उनके पुत्र का नाम ताम्मनस था। (लिंगपुराण | जयनारायन-१ एक संस्थात ग्रन्यकार के पिताकt 1.)२नय तो, नयपताका। 1 नाम कृष्णचन्द्र था। इन्होंने महान्सबीतकी रचना की । जयनांम को ०) जीयते ऽमन करणे ल्यु. १ प्रमादि थी। की मना, घोड़े की साज। २ नया २ मतगती घडोके एक रीकाकार। अयनगर-विहारम दरमहा राग्यके मधुवनी समरिविजन जयनारायच सपधानन-एक महातो पानगारिक पीर का गांव। यह पचा०२६३५३० और देगा. नयायिक बिहान् । १८५१ मवसमें कलकत्ते में दक्षिण में यमला नदीमे कुछ पूर्वको पयस्थित है। जनः । धीयोम परगनके प्रतगत मुधादिपुर ग्राममें, पाचात्य रखा १५५१ महीका पक किला बना । । दिक वग नका नाम दुपा, था। वपन हो । . सागर-जमके धोयीस्परगना जिले का नगर । यह इनको माता मर गई यो। इनके पिता दरियन्द्र विद्या. .पघा. २२११३. पोर देगा. ८२५ में पयस्मित | मागर एक प्रमिह पध्यापक थे। इन्दनि न्याय व्याकरण