पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५९३

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लेनधर्मः- जैनविवाहविधि | अमिय हथिमा किये किमी एक द्रप्यमे । यो प्रभाव जनयट्रोजनकागो)-जमीका एक प्रमिद सोधे। पपने पाम परिणाममि द्रष्योंकी कम्पना फर भी यह मन्द्राज के अन्तर्गत हामन जिले के ययपधेनगोला PRASो मनापौर मे भावपान करनामको ग्राम सविकट है। यहां एक बETAHITET मुनिमा प्रायः करता चार याममे गदके मिया। उसके दोनों भोर दो छोटे छोटे पहाडन,पहाडीको धन्य मभी पभिषेकपूर्वक पूजन कर मकहामि वहाक मोग यिन्यगिरि कहते हैं। मानौरे स्पर्य गद तो येदिग्यदके मिया पन्यव मन्दिरमें प्रथेग राम्ताके किनारे एक जन मन्दिर है। एक पदार या फिमो एक या पर्नेक ट्रायको भेटमें रम दर्शन कर । अपर कोट यना दुपा, जिपके भीतर एक पहुत महा मा धौर पम्पार्च शूद्र मन्दिरमै भीतर जा नहीं मकर, और दो छोटे छोटे जैन मन्दिर में नया एक मानम्तम्भ मलिए मंदिरकी गिवर में चार दिशामि जो चार (जिसको देख कर अभिमानियों का मान दूर हो जाता शिनविन रहते हैं उनका दान करते हैं। हम है, उमे मानस्तगा कहते हैं। एक कुण्ड है, जिममें मिया मृतक पातक पोर पतित पवम्याम बामणादि पानी भरा रहता है। पहाड़ पर चढक लिए सोलियां तोन वर्ग भी जिनयि'बम्पर्शन के अधिकारो नहीं और | धनी हुई हैं। यहांमे कुछ जपर चढ़ने पर पीर एक म उनको द्रव्य घड़ा कर पूजन करनेका ही विधान है। कोट मिन्नता है। इसके पाम दो देहनी पीर मनोज अन मोग मानादिमे पवित्र हो प्रति दिन जिनदर्शन जैन मूर्ति विराजित है। इस हे याद पोर एक कोट करना अपना फर्सष्य ममझते हैं, इमलिये ममम्त म्बी है। यहां एक प्राचीन जन-धर्म गाला, तीन जममन्दिा पुरुष पोर यासक जिनमन्दिर जा अपनी भक्ति प्रदर्गित एक मानम्तम्भ पोर परिरकमा बनो हुई है। करत है । मन्दिरमै प्रयोग करने ममय ये 'नि:ममि सबमे ऊपर चोथा कोट है। यहां ०२ फुट अनी तीन बार उशारण कर गद्यपदामय मति बोलते हैं। योवाहुयलि स्वामोको एक पनामन प्राचीन जनप्रतिमा । जिममें जिनेन्द्र भगवान्के गुण पोर अपनी हीन अवस्या है। इसके पास-पाम और भी अनेक जम मूर्तियां फा साईप रहता है। नमस्कार, प्रदक्षिणा श्रीर स्तोत्र पपस्थित है। यहां याहयाग्निम्यागोफे दर्शनार्थ भारतवर्ष पाठ यार शुकमेके बाद शास्त्र पाठ करते हैं। जिनबिया के नाना प्रदीमे याविगण याया करते । भिपकका जम अपने उत्तमांगमें लगातार फिर पवणबेलगोला दे। अपने घर वापिम प्रति हम लोग अपने सरसे कोई जमविवाहविधि-नगास्तोत्र वियाहको पति ।' धन धान्यादि मंपत्ति की याचना नहीं करते पोर न ईगर | विषादमे, कममे कम तीन टिम पहले याम्याका पिता को उन यसपाका दाता ही मानते। जिनेन्द्रदेवने अपने यन्धु यान्धय पार भानिय लोगोंको निमन्धन अपने उराणमे कर्मयधनको छोड़ कर शुह परमोरया ट कर बुला लेता है। फिर कन्याको यस्ताभूपन पोर पयस्या पायीरमनिय उनका पादर्श स्थापित कर पुष्पमाला पाादसे मुशामित कर मामाग्यवतो जियो उनके तुम्य को ज्ञान को ही भावना भाते हैं। जलचंदन] माय से गाजे बाजे के माघ मय जिनमन्दिर पप पादि पाठ ट्रयाको पढ़ास ममय जो मन्य योने जाते हैं। मन्दिरम पाचार्य या गुनधा (पगित ) सुपर उसका पभिप्राय भी यी है कि भन्न पुरुप मुहिम 'मासनाम का पाठ मुने पोर पटद्रयमे जिनेन्द्रको पूना फरनको योग्यता मान करने ऐषिक मुराफी मालमामे करावे । पगार पहना चोर सिद्धायी पूझा कर मनादि जिगभूजन करने का बैग गामपुले तौरंग विरोध करते निधन "विनायशयन" या "मिश्यन्य"का पर्मिक हैं। उनकी गति योमराग मम प्रकार परिषदम रहित पोर पूजन करें सथा गामोकार मन्त्र का ( सवर्गमय होती. एमका पभियाय यहोशि परिणाममि किमी! मान-सी भरः सरिता पाया भी तरह का रागभाव पैदा हो पोर अपना पाट पभियामि ।" मोतगगतारी ममधिग्रेपलानने के लिये ____शिरिष भोर मंत्रादि नमिाा " Her पंच दार्ग पारिय । दप्रदाय देतो। । पुलिस मे भाग पाहिए।