पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५९९

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- नैनसम्प्रदाय महतो । जिनके मानमें विज्ञानयों समस्त पदो। दिगम्बराचार्य अमितगतिन बरचित 'धर्मपरोसा' नामक युगपत् दोख पड़ते हैं, उन्हें भूख लगे पोर वे भक्ष्य । ग्रन्थ में चार सका उमेप किया है। यथा-मन.. अभच्च पदार्थों को अपने ज्ञानगोचर होते हुये भी । सा. २ काहासह. ३ माथ र मह और ४ गोप्यमा पसराय न मान वा डाने । इनमेंमे मूलमन पहले में हो या पीर द्राविड़सर, काठ मझे मिया कयायों में भी यहत कुछ पन्तर है। मह और माथ रसमा प्रादि पीछी पुए। दर्शनमार जमे-तांवर लोग कहते हैं.' कि महावीरस्वामी नामक ग्रंथमें संग्रहकर्ता. देवगेनपुरिने इनको उत्प. परिन्ने एक ब्राह्मणोके गर्भ में पाये और फिर इन्द्रने उन्हें त्तिका जो समय और कारण लिया है उसे यहां उन रामा मिहार्य को पात्रों के गर्भ में रख दिया इत्यादि ।। करना उचित समझते हैं। : . . . . . . द्वाविद्यसंघ-योपूज्यपाद पर नाम टेवमन्दि परन्तु दिगदर मका विरोध करते है घोर उनका अवतरण गमा मिहार्थको महिपीके उदरमें ही मानते | प्राचार्यके शिष्य. वघनन्दिमामुक पयवा मचित्त चनों को खाना उचित समझते थे। अन्य आधानि प्राचीन दिग'वर और ज्वेतावर मूर्तियों के देखने में इस बातमे उन्हें रोका तो उन्होंने विपरीत प्राययित । शाम्तोको रचनाकर अपनी बातको पुष्टि को। .... मास्तूम होता है कि पहिले परस्पर बहुत कम अन्तर था। तांबर मूर्तियो के मिर्फ गोटेका चिन्ह ही उन्होंने लिखा है.कि-वीमि जोय नहीं है, मुनियोंको . खड़े होकर भोजन न करना चाहिये, कोई यस प्रासुक रहता था, परन्तु पाजकल कुण्डल, केयूर, अगद, मुफुट नहीं है यादि उम वञ्चनन्दिने कवार खेत वसतिका प्रादि मभी शृङ्गारको मामग्रियों पहना दी जाती हैं।

भोर वाणिज्य प्रादि कराके जोवननिर्वाह और गोमन ।

पहिले परस्पर इन दोनों शाखाओं में अन क्य भी पधिक . जलमें स्नान करने चादि मुनियोको दोप नहीं धन .. नया । दोनों ही हिल-मिन्न कर अपना धर्म माधन | लाया। विक्रम संवत् ५२६ में दक्षिण मथुरा (मदुरा) करते थे। नगरमें इस मतको उत्पत्ति हुई पौर द्राविसंत नाम दिगंबर साधु आजकल.अतिविरल है, परन्तु म्हता. पड़ा । .. . .. :. : . वर माध जत दीख पड़ते हैं। इसका कारण दोनों !.काठास-नन्दोतट नगरमें विनयमेन मुनिमे । मम्प्रदायों के दुर्गम संगम नियम है। ... दोहित कुमारमेन मुनि सन्यास मरण भट को फिर मूर्ति पूजाम भी परस्पर भेद है । . दिगबर पूजनेसे . दीमित नही हुये। उन्होंने मय रविधएको त्यागकर । पहिले जन्मे अभिषेक करते हैं और फिर जल पन्दन | चमरो गायके वालोंको पिच्छो याप्पकर द्राविड़ देगर्म अक्षत प्रादि प्रष्ट द्रव्योम पूजन करते हैं.। . परन्तु उन्मार्ग का प्रचार किया। उनके मतानुसार, उसकोको एक तायर पञ्चामृतसे अभिषेक कर पूजन करने हैं। वोरचर्या करना, मुनियाँको कड़े वालों को पिच्छो रखना . : नाभर मम्प्रदायमें स्वागकवामो न रहपछी प्रादि उचित है। इसी प्रकार पन्य यास्त्र पुराण और प्रायः अनेक भेद है, जिसमें स्थानकयामो मूर्ति को नहीं पूजते | यित अन्यों में भो.कुछ मिलावट कर दी। विक्रम संवत् और इनके कुछ गाम्न भी पृथक्-प्रत्यक रचे पुए । ०५३ में रम महकी उत्पत्ति हुई, : .. सेताम्बरमतानुसार योमहावीरखामी के पीछे जो प्राचार्य सिरि पुचगदौसो दावि गोर , पद पर बैठे, उनका विवरण निमाचिखित सालिकामे गामेण मणी पाहुवेदी महापरतो . ५४ ॥ .. . मानना चाहिये । (तालिका पार्गिके पृष्ठ में देखो) पंचसए योसे विकरायमरणपत। .दिगंबर-सम्प्रदाय । दकिरानमाराजादो दाविहरीपो महामोहो ॥ २८॥ . . दिगम्पर और शाम्पर ये दो मुख्य मंप्रदाय न पाए बन्ने विहमरायस मसारमा दोनों ही सादायम सदा मा गच्छभेद पाया जाता है। मंदिय दरगाने को को पुगेयम्यो । ....