पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जयनी-नयन्तिया आदि सभी विषयों में व्युत्पत्ति लाभ की थी। कभी । सारङ्गदेव भी उनकी विशेष भक्ति यहा करते थे। सम्मत कभी ये अधापकों के साथ पण्डित सभाओं में भी जाया । १३५० ज्येष्ठ मास कृष्णपक्षीय टतोयाके दिन काव्य करते थे और वहाँ शास्वार्थ में अच्छे अच्छे पण्डितोको प्रकाशदोपिकाको रचना की थो । • परास्त करते थे। इस तरह थोड़े ही दिनों में इनको २ एक प्रसिद्ध नंग्रायिक, इन्होंने न्याय कलिका और व प्रसिद्धि हो गई। इन्होंने चतुष्पाठी स्थापन की यायमञ्जरो इन दो अन्यों का प्रणयन किया है। काश्मोर. और किसी समय"ला कमिटि" की परीक्षा दे कर जज-1 में ये ग्रन्थ प्रचलित है। . पण्डित होनेका प्रशंसापत्र प्राप्त किया। किन्तु अद्या. ३ सारवतव्याकरणको "वादिघठमुहर" नामक पनाम व्याघात होगा आन, इन्होंने उस पदको स्वीकार टोवाके रचयिता। नहीं किया। १८४० ई०म ये संस्कृत-कालेनमें दर्शन प्रकाशपुरीके मधुसूदनके पुक, इन्होंने तत्वचन्द्रक . शास्त्र अध्यापक नियुक्त हुए। नामसे प्रक्रियाको मुदोको टोका रची है। . १८६८ ई०में ये पेन्सन प्राप्त कर बनारस रहने लगे। ५ पद्यावलोटत एक प्राचीन कवि। -विसवत १८३ में काशी में ही उनकी मृत्यु हुई। जयन्तस्वामीके नामसे प्रसिद्ध एक अन्यकार । अयनी (सं० स्त्री०) जयन स्त्रीलिङ्ग में उप । इन्द्रकी कन्या । इनके पिताका नाम कान्त, पितामहका नाम कल्याण जयन्त (सं० पु. ) जयतीति जिभच् । १ इन्द्रके पुत्र। स्वामी और पुत्र का नाम अभिनन्दि था। इन्होंने विमलो. विथा। शिव. माटेव । चन्द, चन्द्रमा ५ विराट दयमालाके नामसे याश्वलायनद्यसबका भाष्य, ग्रहमै छमवेशी भीम, भीमका वनावटी नाम जब वे पाखलायन-कारिका और ऋग्वेटके स्वरनिर्णयके विषय विराटके यहां गमयमे रहते थे । जय देखो। ६ मरुत्वतो में स्वरा नामक एक संस्कृत अन्य रचा है। हरिहर, गर्भजात धर्मके एक पुत्र का नाम । ये उपेन्द्र नामसे | कमलाकर, नीलकण्ठ, प्रादि बड़े बड़े विधानों ने विख्यात हैं।७ राजा दशरथके एक मन्त्रोका नाम | जयन्तोस्थामोका अन्य उद्दत किया है। पर्वतविशेष, एक पहाड़का नाम यात्रिक योगविधष, | जयन्तपुर -निमिराजाका स्थापित किया हुमा एका नगर । यात्राका एक योग । यह योग उस समय पड़ता है जब | यह गौतमायमके निकट है। चन्द्रमा उच्च हो कर यात्रीको राशिमे ग्यारहवें स्थानमें | जयन्तिका (सं० स्त्रो०) जयन्तीव कायतीति के क, ततो पहुंच भाता है। यह युहादि यात्राका उपयुक्त समय । इस्लो निपातनात् । १ हरिद्रा, हलदी ।(रामनि.)२ माना गया है क्योंकि इस योगका फल शत्रुपक्षका नाथ | दुर्गाको सखो। ( काशीख ४६) ३ एक प्राचीन है। १०५ को जातिका एक तारा । ११ जैनमतानुसार राष्ट्र। (सयादि०२।१६५६) विलय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित. और सर्वार्थसिद्धि जयन्तिया-अङ्गाल और प्रासाम श्रोह मिलेका एक पर. इन पांच अनुत्तर-स्वमिसे एक IFE स्वर्गके देव सम्यक् गना। यह प्रक्षा-२४.१२ से २५११४० और देगा. दृष्टि होते हैं और दो बार मनुष्य जन्म धारण कर मोक्ष ४५ से ८२२५ पू. पर नयन्तिया पहाड़ तथा पाते हैं। इनको आयु बसोम सागरको होती है।.ये। सरमा नदोके बीच में अवस्थित है। भूपरिमाण ४८४ पाजन्म मनचर्य पालन करते हैं और सर्वदा धर्मशास्त्रको वर्गमौल और लोकसंख्या प्रायः १२११५७ है। यहाँ बड़े- वर्षा करते रहते हैं। (नि.),१२: विजयो, विजेता। रासो छोटो छोटी नदियां हैं जो सबको सब सुरमा नंदीम (9.)१३ एक रुगका नाम 1 १४ कार्तिकेय स्कन्द । १५ जा गिरोहैं। नदीका किनारा बहुत ऊँचा दीख पड़ता . धर्म के एक पुत्रका नाम । १६ प्रकरके पिताका नाम । है। यहां भूतपूर्व जयन्तिया राजासिनते गया खासीय. मयत-१ काव्यप्रकाशकी जयन्ती वा दीपिका नामक के थे। इस वंशके वाईस राजाओं ने यहां राज्य किया। टोकाके का। उनके पिताका नाम भारद्वाज था, वे प्रवाद है, कि अठारहवीं शताब्दोमें ये पहोमके सरदारों गुजरातके बघेलराज सारदेवझे मन्त्रीपुरोहित थे। से परास्त किये गये और पकड़े गये। जिन्तु लोने Vol. VIII. 15