पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६०२

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। ननमम्प्रदाय . . माथ र भा--विक्रम संवत् ८५३ में राममेन मुनिने । चन्द्र, - मानदेय और शान्ति नाम चार मतीथ वास .म मडको नींव डाली। इनके मतमे मुनियोको हिमा करते थे। ११४८ मवतों योधर नामक एक जैनने, पिच्छीके रहना उचित है । ! जिनेन्द्र प्रतिमाको प्रतिष्ठा करने के अभिप्रायमे चन्द्रप्रभके - मूलसकसे हो नन्दोमर की उत्पत्ति हुई थी। पाम पा कर प्रार्थना की, कि 'पाप अपने कनिष्ठ मुनि दिग व में सरस्वती और हर्षपुरोय ये दो गच्छ ही चन्द्रको प्रतिठाव्रतमें व्रती कीजिए'। चन्द्रप्रभने - प्रधान है, जिनममे सरस्वतीगरको पहावलो इसी भाग- वा यह उत्तर दिया, कि 'माधु इस कार्य में शामिल में पृष्ठ ४४१-४४२में प्रकागित है चोर हर्षपुरीयगको नहीं हो सकते '1 इस तरह यावक प्रतिष्ठाका नियम पट्टावलो हमें प्राप्त नहीं हुई इसलिए प्रकट न कर सके। लहित होनेमे कोई भी उनका अनुगामी नहीं हुआ। '. . सेताम्बर सम्प्रदाय ।। फिर ११५८ 'बत्में एक दिन चन्द्रप्रभने गिों के ममस यह प्रकट किया कि पद्मावती देवोमे उनको स्वपमें दर्शन बताम्पराचार्य धर्म मागर गणिने अपने प्रवचन- दिया है और कहा है, कि 'तम अपने शिष्योंमे कहना, परोक्षा' नामक ग्रन्यमें तपागच्छके मिया और भो दश कि यावक प्रतिष्ठा और पूर्णिमा-पासिका मत्य है. मौका उल्लेख किया है । यया-१ क्षपणक वादिगम्पर, अनन्तकालसे चला पा रहा है।" म तरह पौर्ण मोय २ पौर्णमीयक, ३ खरतर वा पौष्ट्रिक, ४ पन्नादिक वा शाखा निकली। प्राचलिक, ५ साई पौगामीयक, ६ पागमिक वा विस्त। हरतरोत्पत्ति-ठत धर्म मागरने प्रतिवाट करके लिखा तिक, ७ लुम्पक, कटक, ८ वधा वा वीजमत पीर | है, साधारणतः खरतरगच्छको पावनी में १०२४ म. में १. पाशचन्द। वईमानके शिष्य जिनेखरमे खरसरको उत्पत्ति कही धर्म सागरका कहना है कि उत्ता दश माम दिगम्बर, जातो है, किन्तु यह यथार्य नहीं है, स० १२०४ में पोर्णमीयक, ग्रीट्रिक पीर पागचन्द ये चार मत प्रादि जिनदत्त मरिमे हो खरतर माम प्रयन्तित छुपा है । इम जैनमे ही निकले है। स्तनिक वा प्राञ्चलिक, साद पौण - विषयमें उन्होंने जिनपतिके शिष्य सुमति गणिके गणधर मोयक और प्रागमिक ये तीन शाखाएं पौण मीयक मागतककी वृत्ति उड़त की है-'भयदेयने मतमे निकली है। लुम्पक, कट क पोर बन्धा ( यद्यपि स्वयं जिनयलमको पदस्थ नहीं किया। वे जानते थे, पन्धाको उत्पत्ति लुम्पकसे है) एन तीन शाखापाने स्वाधीन कि इसमें उनके पन्य शिष सहमत न होंगे। करिपा भावमे अपना मत चलाया था। इनकी उत्पत्तिके जिनवमभ पहले एक चैत्यवासीके शिष्य रह चुके थे। विषयमें प्रवचन-परीनामें कुछ लिखा है। उसीके अनुसार उन्दनि अपने शिष्य वर्दमानको ही उत्तराधिकारी नियुप्ता कुछ लिखा जाता है। किया। परन्तु उन्होंने सुविधा देख कर जिनवानभको . . दिगम्बरों के विषय में धर्म मागर गणिने नो लिखा है, पदस्थ करनेके लिए प्रमभचन्द्रको पादेश किया । उमको पालोचना हम पहले ही कर चुके हैं, अतः यहाँ प्रसनचम्ट्रने फिर देवचन्द्रसे कह कर वह कार्य सम्पय उमको दुहराना नहीं चाहते। कराया। ' पो मीयक पा पक्षोत्पत्ति-वोरनिर्माण के १६२८, “वर्ष बाद (पर्थात् ११५८ संवतम ) पो मोयक शावा. * पूर्णिमाके दिन वो पानि प्रसका पालन ख्यिा माताt को उत्पतिई। इसका कारण उन्होंने इस प्रकार उसे ही पूर्णिमापातिक कहते हैं । परंतु उस पासाके अनुयायी

लिखा है,-राजयोकर्ण यारक ग्राममें चन्द्रप्रभ, मुनि- पूर्णिमा भी अमावस्या दोनों ही तिधियोंमें मिस प्राको पाहते

। हैं, उसको पांगम' पाक्षिक कहते हैं। . सतो दुसएतौदे महुराए राहुमाग पुरुषाहो । + नन्दप्रम धर्मोपदेशके प्रचारार्थ मुनिरन्दन पाक्षिसप्तति. नामेग रामसे गो गिरिवर पण्डिग सेग । १०. . पी रचना की थी। .. . Vol. YIII.137