पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

• १४६ . नसंप्रदाय , धर्ममागरने यह भी कहा है कि दुम् भगकी ममाम प्रचार किया। नाधिके अनुरोभने 'नाटप्रदीप चायमा म.१०२४को व्यामो पगमित होने पर सिमेम्बरने मोगे नरसिहको रिपद प्रदान किया । सवम ना. खरतर विरुद माम शिया, जो यह कथा प्रचलित है, यह मिइका नाम पार्यरक्षित पड़ गया। दोने मुगाया। पमूनक है कारण, दुर्लभगज उसके यहुत समय पीछे, इन पोर रनोहरण परित्याग कर माधारण जना माग प्रात् म०१०६८को मिहामन पर बैठे थे। विशेषतः अनुष्ठित प्रतिक्रमण भो उठा दिया। इस शापास पनु. १५८२ संयत्म लिखित झोकानुवन्धी खरतर गच्छकी। यायोगगा मानिक नाममे प्रसि .पाशनिक पहायनीमे निया है, कि म.१०२४ में जिनहम सरि प्रामागम, अनन्तरागम और परम्परागम इन तीन प्रका- पधर थे। दर्शन मगति कात्ति, अभयदेयकृत ऋपभ- रके धागोको खोकार करते है। चरित. और उनके शिष्य बईमागमत प्राप्तत गाया एवं मार्दपौर्णमीकोत्पति-सं १२३६ में म गापाको प्रभाविक चरित्रमै खरतर विषयमें कुछ भी उन्लेख नहीं उत्पत्ति हुई । इमको उत्पतिक विषयमें धर्ममागर . है। सुमतिगगिक ग्रन्यके पढ़नेसे माल म होता है, गणि लिखते हैं- कि जिनयनमने जिनदत्तको देवा ही नहीं था। धर्म- . एक दिन राजा कुमारपालने प्रमिह समाचार्य - ईम. . मागरने अपने ग्रन्यमें जो पायली उहत की है, उसमे । चन्द्रमे पोर्णमीयक मतके विषय में पूछा। हेमन्द्रय भी यह मान म नहीं होता कि जिनधाभ अभयदेयके मुखमे विस्त,त विवरण सुन कर कुमारपालने पपने राज्य शिष्य छ । धर्म मागरने निग्वा है कि प्राचीन गाथाफे पनुः से पोणेमोयोको निकाल देनका नियय किया ।: एक मार १२०४ म'वत्म हो जिनदत्त सूरिधारा परसर गाग्वा | दिन उन्होंने पोणमोयो प्राचार्य मे पूछा-"पाप लोगो . प्रयर्तित हुई थी। जिनदत्त अत्यन्त खराकृतिके थे, के मतका परिपोषक कोई पागल वा पूर्वयाद है या एमोनिए माधारमा लोग उन्हें खरतर कहा करते थे। नहीं ?" पोणेमोयकने इमका प्रवज्ञासूचक उत्तर दिया। जिनदत्तने मो आदर के माघ उस नामको ग्रहण किया जिममे समस्त पोर्णमीयोंको कुमारपालके पधिकार था। इन्हों' जिनदत्तकी गिणपरम्परा रखरतरगच्छ १८ जनपदोंसे निकल जाना पड़ा। कुमारपाल, भोर नाम प्रमित हुई। हेमचन्द्रकी मृत्य के बाद पाचार्य सुमतिसिंह नामक एक - धर्म मागरके मतमे जिनशेखरसे मद्रपझोका गचः | पौर्य मोयफ छद्मवेशमे पत्तननगरमें पाये। परिचय प्रमिट नहीं हुघा; उनके बाद ४थ पधर अभयदेयमे | पूछने पर उन्होंने उत्तर दिया "में मार्दपीप मोयक है।" ही नद्रयमोय गच्छका सूत्रपात है। सुमतिमिहके कोई कोई शिष्य इम सम्प्रदायको 'माधु.. . आगलियोति-१२३ मयतमें पायनिक शावा- पोणे मोयक' भी कहते है। . की उत्पत्ति हुई। पौणमौयक पत नरमिह नामक : यागानिकोलाति-गोन्तगण और देवभद्र पौणंमीयक. एक व्यक्ति याम करते थे, जो एकान और बाहुभाषी | • के पक्षको कोड कर पहले मो पावनिक पापीछे गय, धे। पोण मौवनि उन्हें जातियत कर दिया। विदना ध्वय तीर्थ में मात माधुअोके माय मिल कर उनि नामक एक ग्राम वाम करते ममय एक नाधि नामकी | .गास्तोता क्षेवदेवता की पूजाके परिधारुप नयीन मता 'पन्ध रमणी उनको बन्दनाके लिए पाई, पर वह अपनी प्रचार किया 'यही मत पामिक.पौर विमतिक नामम मुग्नाचादनी नाना भून गई। अनशास्त्र में किमो | विल्यात हुमा । १२५० में यह मत प्रचलित एमा। प्रकारका विधान न होने पर भी नरमिहने उमे पागल | ' सम्पत्ति -गुजरातके पम्तर्गत पहमदाबाद में गुE टकने लिए कहा. जिममे यतियों में बड़ी मग दगा धीमान आनिक एक ला या नुम्पस पशान्ति फेम गई। माधि प्रर्य की कमी नहीं थी, नामक एक लेखक ( प्रसिन्निविकर ) रहते थे। ये जाम- छम पर्यफी महायतामे नमिल्ने प्रावलिक पत्यका! यतिके उपाध्यमें पोयी नियनका काम करते थे । पोयी।