पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६०४

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५४७ .. जैनसंप्रदाय लिखते ममय मिहान्त के बहुतमे पालापक ओर उद्देशक | सतगं वीजको देख कर ममी उनको विशेष भति श्रद्धा छोड़ जाते थे ; हम कारण एक दिन उपाययके लोगौने करने लगे । योज सबकी पूर्णिमापाक्षिक, पञ्चमी, पयु- उन्हें मार पीट कर भगा दिया इसमे लुम्पक अत्यन्त ऋह पण, और पागमिक मतानुसार धर्मोपदेश देने लगे। हुए और निम्बड़ो नामक ग्राममें जाकर नमामिह इस तरह म० १५०० में वोजमत प्रवर्तित हुआ। नामक एक बगिकको महायतासे उन्होंने इस प्रकारका | ___पाशचन्द्रोत्पत्ति-नागपुरमें पाचन्द्र नामक एक मत प्रचारित किया-"जिनप्रतिमा जब जीवित नहीं। तपागच्छोय उपाध्याय वास करते थे। गुरुके साथ विवाद है, तब उनको उपासना नहीं चल सकती। आवश्यक | हो जानेसे उन्होंने अपने नामसे एक पभिनय सम्प्रदाय सूत्रके बहुतमे स्थान भ्रष्ट हो गये हैं और व्यवहारस्व | प्रचलन करना चाहा। इन्होंने तपागच्छ पोर लुम्पक- भी ययार्थ नहीं माल म पड़ता।" धर्मसागरने प्रवचन- मतसे कछ धर्मोपदेश ग्रहण कर विधिवाट, चारित्रानु- परीक्षाके अष्टम अध्यायमें विस्त,त रूपमे लुम्पक मतका | पाद और यथास्थितवाद नामक विस्थानुबन्धी एका मस प्रतिवाद किया है। उनके मतसे सं० १५०८में इस प्रचारित किया। वे नियुक्ति, भाप्य, चर्णी और छेदग्रन्य- मतको उत्पत्ति हुई। को प्रामाणिक नहीं मानते थे। सं० १५७२में यह मत लुम्पककी एक शाखाका नाम है वेशधर। किसीके | प्रवर्तित हुआ। म शाखाके नोग पाशचन्द्रीय नाममे मतसे संवत् १५३१ और किसी किसीके मतसे १५२३ | ममिह हैं। सवत्में इस शाखाको उत्पत्ति हुई। प्राग्वाटजाति और । इमर्क सिवा ताम्बरों में और भी अनेक गच्छ हैं। शिवपुरीके निकटवर्ती अरघट्टपाटकनिवासो माणक ] यया-उवेश गच्छ. नागेन्द्रगच्छ, चन्द्रग, रुणराजपि. नामके कोई व्यक्ति इस शाखाके प्रवर्तक है । धर्म गच्छ ( स० १३८१ में उत्पन हुप्रा), लघुग्खरतरगच्छ मागरने लिखा है, कि भाणक नागपुरोय वेशधरोंमें | (म०१३३१ में उत्पन्न हुआ), सत् बरतरगच्छ (इम- प्रथम है। किन्तु भागकर्क अधस्तन पाठपुरुष हो गुज- को पहावलो पूर्व पृष्ठ में प्रकाशित है), वायगच्छ, सहर रातो वैषधरों में प्रथम समझ जाते है । रूपपिं नागपुर | गच्छ, खन्देलगच्छ, धारापद्गच्छ, विगवालगच्छइत्यादि। में जागमन हारा दीक्षित हुए थे। प्रत्येक गच्छके एक एक स्वतन्य पधर और उनकी पहा. ____कहकोत्पत्ति-कटुक नामक एक विचक्षण जेनने | वलो लिपिबद्ध है। यहां कुछ उजत की जाती है,- किसी प्रागमिकके साथ साक्षात् होने पर उनमे प्रकृत तपागच्छ धर्मतत्त्व पूछ।। आगमिकने उत्तरम कहा "इस जगत्में | पE नाम विवरण भव साधुका माविर्भाय नहीं होगां; यदि भाप प्रतत | ३५ उद्योतन तत्त्व जाननेकी इच्छा रखी है तो आगमिक मतका | ३६ मर्वदेव (१म) उपदेश ग्रहण करें।" तदनुसार कटुक दोक्षित हुए। १५६४ संमें इन्हीं कटुकके द्वारा एक पृथक् शाखा | ३८ सर्वदेव (२य) प्रवर्तित हुई। २८ यशोभद्र और नमिचन्द्र पोजमतोत्पत्ति-ननक नामक एक लुम्मक वेशधर | ४. मनिचन्द्र (हेमचन्द्रक मममामयिक) में बीज नामक एक मूर्ख शिष्य थें । ये मेदपाठ नामक ४१ पजितदेव .. (मंवत् ११३८-१२२०) स्थानमें जा कर गुरुतर तपमें निमग्न हो गये । मेदपाठमें | ४२ विजयमि . (विवेकमनरी प्रणेसा) पहले कभी भी जनसाधुका ममागम न हुआ था; ४३ सोमप्रभ पोर मणिरव (विजयमिक गिय) • धर्मसागरने नागपुरीय वेशधरोंका गम इस प्रकार लिखा | ४४ जगवन्द्र ___(म० १२८५में विद्यमान घे) है- १ माणक, य मास, रेय भीम, ४ चन, ५म जगमाल | ४५ देवेन्द्रसरि . (मृत्यु सं० १३२७) .. और परम। ..... ' , ' :.. १६ धर्म घोष . . ... (म.स.१९५०).