पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६०६

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५४४ नसंप्रदाय ६ पनचन्द्रसं. १७४४.) " - ४३ मुराल, ५४ सोरठी, ४५ चितौरिया, ४६ कपोल, ४७ ७ मुनिचन्द्र (सं. १७५०) मराठवर्ग, ४८ हमड़, ४६ नगोरिया, ५० योगहोड़, ८ नमिचन्द्र (स. १७८७).... ५१ भंडिया, ५२ कनौजिया, ५३ पजोधिया, ५४ ६ कनकचन्द्र (म०१८१०) मिवाड़, ५५ मालवान, ५६ जोधा, ५७ ममोधिया, १. शिवचन्द्र (सं. १८३३) ५८ भट्टनेर, ५८ राहयल, ६० नागरा. ६१ धाकरा, ११ भानुचन्द्र (सं.१८३७) ६२ कन्धगक, ६३ बालुराइ, ६४ बालमौक, ६५ भागर, १२ विवेकचन्द्र . । ६६ पमार, ६७ लाद, ६८ चोड़, ६६ कोड़. ७० गोड़, १३ लब्धिचन्द्र ७१ मोड़, ७२ सभर, ७३ खुग्हिमा ४ यीखण्ड, १४ हर्षचन्द्र ७५ चतुर्थ, ७६ पञ्चम, ७७ रन कार, ७८ भोगकार, ४ १५ हेमचन्द्र नार, ८० सिधपुरो, ८१ नम्बवाल, ८२ पनोवाल, ८३ १६ भारतीचन्द्र और देवचन्द्र परवार और ८४ योयोमाल । इसके सिवा और भी सैकड़ों गधों और शाखाओंको जैनो (हि पु०)जैन मतावलम्बी, जैन। . उत्पत्ति हुई है। जेनीमाधु-सरधा अलखवारी' नामक हिन्दो प्रन्यके ____ जातिमेद-प्राचीन शास्त्रीक पदमे मालम होता है | रचयिता । ये जैनधर्मावल'बो धे।। कि नाम भो वाहाण, क्षत्रिय, वैश्य और रुद्र इन धार जैनेन्द्र-एक व्याकरणरचयिता और अष्टादश भादि य का विधान है। शुतके वर्णनमें कहा जा चुका है | शाब्दिकॉमिमे एक । कि १म तोहर यादिनाथके ममयमे ही वर्ण धर्म को | जैनेन्द्रस्यामी-पाणिनीयस्वत्ति काशिकाके रचयिता उत्पत्ति हुई है। वर्तमान जैनों में वेश्याको संख्या हो । दिगम्बर जैनाचार्य । उक्त पुस्तकको झोकसख्या ३०००० समधिक पायो जाती है। ब्राह्मणों की संख्या बहुत कम है। है, उससे भो कम क्षत्रियोंकी, शूद्र तो और भी कम हैं। जैनेन्द्रकिशोर-हिन्दीक एक ग्रन्यकार । ये प्राराके फिलहाल जैनबागों पोर शूट्रीका अस्तित्त्व दाक्षिा | जमींदार और भगवान जैन थे - पाप पाराकी नागरी णात्यम हो पाया जाता है। अन्यत्र कचित् कदाचित् । प्रचारगो-सभा पोर प्रपिटममालोचक समाझे उत्साही दृष्ट होते है। कार्यकर्ता धे। इनको बनाई हुई कमलावगो, गोत. - जैनमम्प्रदायमें निम्नलिखित ८४ थेग्गियां पाई | विज्ञान, मनोरमा, मोमा सतो आदि पुस्तके मुद्रित हो जातो है,- चुकी हैं। लगभग १८६४ मवत्में एनको मृत्य, हुई। पण्डे नवान्त, २ पद्मावतीपुरवाल, ३ अग्रवाल, जैनेन्द्रव्याकरण --एक प्राचीन वाकरण । उम रचयि- ४ अमवान्त, ५ पोरवान्न, ६ वर्धरवान्न, ७ देशवाल, ८ ताके विषय में कुछ मतभेद पाया जाता है। कोई कोई सहेलवाल, दिलोवाल, १. सैतवाल. ११ बढ़े सवाल, कहने हैं कि पूज्यपाद म्बामोम नम थकी रचमा की १२ पुष्पमाल, १३ श्रीमालि, १४ घोसनाल, २५ पनीवाल, है। डा० किलहन माहवका कहना है कि, प्रमिह वैया. १५ क्याल १७ चोमखा, १८ टूसरो, १८ प्रमखा, करण देवनन्दि द्वारा यह पुस्तक रचो गई है। कोई २. गंगेरवाल, २१ धन्धुवाल, २२ तोरणवाल, २३ | कोई कहते है कि, पूज्यपाद और देवनन्दि दोनों एक मोहिला, २४ करिन्दवान, २४ पसीवान, २६' मेढ़याल, हो यति है; परन्तु पगिड़त फतेनालके मसमे दिगम्बर २७ वीहिला. २८ नवेंचू, २८ मगहर, ३० महेमरी, जैनाचार्य देवनन्दि और पूज्यपाद पृथक् पृथक् व्यक्ति ३१ गोलालार, ३२ गोलापूर्व, ३३ गोलमिनार. ३४ बन्धः है। पण्डित फतेलानका कहना है कि, दिगम्बर जैनगुम मोर, ३५ मागधी, ३६ विहारवान, ३७ गूजरा, ३८ पूज्यपाद द्वारा यह ग्रन्य पड़ा गया है। . . . - "सफरा. २८ गहोय, ४. जागराज, ४१वूपरा, ४२ भुराम कुछ भी हो, पर यह निर्णय हो गया है कि देव. Vel. VIII. 188