पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६२

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अवन्तौ- जयपाल पार्वतीका एक नाम । १२ किसी महामाको जन्मतिथि । मसभ्य, मालममाण, धर्म शास्त्रकी समाति और सभासदों- पर होनेवाला.उसम. वर्षगांठका उत्सवः। १३ हन्दी का मन्तया यह सय लिख देना चाहिये। किसी किसो १४.कपिका । १५ वच । १६ मनिष्ठा, मोठ।१७ विषयके जयपत्र का पचानकार नाममे भी उल्लेख किया कानिकरीतको । १८ खेतनिर्गुण्डो २० वृक्षभेट जाता है। एक बड़ा पेड़ जैता वाजत मी कराता है। इसकी। राजाको चाहिये कि वास्तविक विषयका निर्णय डालियां पतली, पर अगस्तके पोंको भांति पर उसमे करके पूर्वपक्ष और उत्तरपक्षका समस्त वृत्तान्त ज्यों का. कुछ छोटे और फ ल अरहरको तरह पोरे होते हैं । इस | त्यो नयपत्र में लिख कर वे जयो व्यक्तिको उस पत्रको पर फलों के भार मानेके बाद एक विलत या मया | बिलस्त लम्बी फलियां लगती है। फलियों के बोजोसे २ प्रयमेधयनीय अनके कपान पर लिखित लिपि. जको मरहम बनती है। बोज उत्तेजक और सहोचा। विशेष । कारक होते हैं तथा दस्तकी योमारियों में काम आते | जयपाल (ic F०) जय पालयतोति, पालि भए । कर्मण्यम् । हैं। या सूजन या फोड़े पर बांधा जाता है और पा ११ विधि । २ विशु । भूपाल। (शब्दरत्ना०) गिलटी गलाने के काम पाता है। इसको जड़ पोम कर | जयपाल-१ लाहोरके एक प्रसिद्ध हिन्दू राजा। इसके नगाने विच्छ के काटनेको यक्षिणा मातो रहती है। पिताका नाम या हितपाल । जयपालका राज्य सरहिन्द- यक्ष जेठ प्रसादमें बोया जाता है तथा अपने प्राय भो| मेलमघन और काश्मोरसे मुलतान तक विस्तृत था। होता है। इसकी छोटी जाति भी है, उसे चक्रभेद कहते । पहिले पहल भारतमें मुसलमानोंका प्रवेश जयपाल हैं। इसके रेशेसे नाम वुना जाता है। पानके भोरो पर समयमै हौ हुआ था। भी यह पेट लगता है। बङ्गाल में यह वैशाख जेठ पौर ___८७७ ई.में गजनीपति सवागोनने भारत पाकर .कार कासिक वोया जाता है। जयपाल के राजा पर प्राकामण कर कुछ दुर्ग हस्तगत कर जयको-कदम राजाभोंकी राजधानो वनवासोकाटूमरा | लिए और देगमें लूट मार मचा दी, तथा जगह जगह . नाम। बननासो देखा। मसजिटें बनवा कर वे पुनः अपने देशको लौट गये। नयतीव्रत-जन्माष्टमीका दूसरा नाम | जन्माष्टमी देखे। जयपालको बहुत गुस्सा आई और वे मुसलमानोंको जयपताका ( मो.) जयसूचका पताका अथवा भासनदण्ड देने के लिए सेना सहित निकल पड़े। जयस्य पताका, मध्यपदलीप पताका जो जयनाम | सवतगीनके साथ उनकी लमधनमें भेंट हो गई। करने के बाद फहराई जाती हैं। परन्तु युद्धसे पहले हीराविम प्रचण्ड बांधो पाई और जयपत्र (सं• को०) नयापक पर, मध्यपदलो०११ यह उसने जयपालकी सेनाको तितर बिता कर उनके उत्सा. जिसके अपर किसी भी विवाद के बाद राजकीय मन्तव्य । को तोड़ दिया। इसलिए उन्हें सन्धि करनी पड़ी। 'लिखा जाता है। ५० इस्ती पौर १० लाख दिहीम उपदोकन देनेके पारमित्रादयमें जयपत्रके लक्षण और भेदोका वर्णन लिए सहमत होकर जयपाल अपने राजामें लोट. पाये। है। व्यासके मतसे-किसी स्थावर वा यस्लायरमम्पत्ति किन्तु उनके ब्राह्मण मन्त्रियोने उन्हें ममलमानों को विषयक विवादमें अथवा किसी विभाग विवादमें वा । उपढीकन देकर हिन्दुओं का गौरव घटाने के लिए मना किसी वागविरोध पादिमें राजाको चाहिये कि, वे भ्यं किया। समान कर या प्राइ विवाकोंसे सुन कर प्रमाणानुमार तदनुसार उपद्रोकन न देकर सवागौनके दूतोको जिसकी जय होती हो उसे जयपत्र लिख दें। धीरमित्रोदय) कैद कर लिया गया। इस सम्वादको मन कर सबध. जथपत्र राजा और सभासदों के हस्ताक्षरयु तथा राज । गोनने क्रोध अधीर हो जयपाल के राज्य पर पुनः पाक मुझमे अहित मौता चाहिये। जयपत में दोनों पक्षका . मण किया। युधमें जयपालको हार हुई। सय लागीन