पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५६४ जोधपुर-जोधराज गोदोशा महारान अजितमिहने फतह-मइल निर्माण किया ।व। को छोटो ट्राम दलती जो १५ में तैयार हुई जोधपुर नगरमे मुगलफोन लौटनका म्मारक है। इन है। दैनी और भैमी को शाम-गाड़ी में बड़ा टोया मारतीमें उमदा कटाव किवा ली है और मुखं नाता है । झामने शो कुल लम्बाई १३ मोन है। शहर में पत्याने झांझरो दार पदें खिचे हुए हैं । शहरमें भी बहुत- एक पार्ट स्कूल, एक हाई स्कल तथा और मो बडनसे मे अच्छे अच्छे घर एं। इनमें १० राजप्रासाद ठाकुगे । छोटे छोटे स्कन हैं। संस्कृत शिक्षका भी प्रबन्ध है। कुछ नगर, भवन पोर ११ देवमन्दिर देखने योग्य हैं। रायका दागमें महाराजका राप्रामा विद्यमान है। वालकिगनजीका मन्दिर यगोवन्त अम्मतानझे ममोप है। रतनाद महलमें विजनौचौ रोगनी होती हैं। वुन्दोके उसने योकणको मूर्ति प्रतिष्ठित हैं। धनग्यामलो। महाराव राजाको लड़को रानो हदोजोक बनाये हुए मन्दिरमें भो थोक को मूर्ति विद्यमान हैं। रामगडा रानोसागर और चिडियानाय नोके झरनेसे शहरमें . जोन इम मन्दिरको वनवाग या। कुछ काननक जनका इन्तजाम है। मुसलमानों ने मे मसजिदमें एरित रखा. 'कन्तु जर | जोधराज-हिन्दोके एक प्रसिद्ध कवि। इन्होंने नोवा. महागज अजितमित्री गजमिवासन पर बैठे, तब गढ़के राजा चन्द्रभानु के प्रादेशानुसार हम्मोरकाश उन्होंने मन्दिरका पुनरुहार किया । कुलविहा- नामक एक उतर ग्रन्थ रचा था। उहत अन्य रचना- रोजा मन्दिर ममे अधिक कारकार्यविगिर ई और काल के विषय कुछ सन्देह पड़ गया है। कवि लिखते ठोक वाजार में पड़ता है । पासवन गुन्नावरायने दमे | हैं- अठारहवीं शताब्दीमें बनवाया था। महामन्दिर शहरके | "चन्द्र नाग पञ्चगिने, संवत माधव माम पूर्व में अवस्थित है। महाराज मानमिइजीने अपने शुल सुप्रिनिया जीव तुन तादिन अन्य प्रकाश n" गुरु देवनायजोके रहने के लिये १८१२ ई० में इस मन्दिर एममे १८८५ सवत् निवित होता है किन्तु ऐति- का निर्माण किया था। यह और सब मन्दिरों में कहों | हामिका का कहना है कि उस ग्रन्य १०८५ संवत् मुन्दर है। रचा गया है। हां, यदि नग शदमे मानका भय लिया शहरमें चार तालाव है,-पहला राष गङ्गाको रानो जाय तो १७८५ मवत् हो ठहरता है। पद्मावतोका बनाया हुआ पद्ममागर: दूनरा, वोगा जोधराजने ग्रन्य प्रारम्भमें अपनेको गौड़ ब्राह्मण तालाब जिसे महाराज योमानमि'हको लडकोने धनायर, । और बालत का पुत्र बतलाया है। आपको रचना तीसरा गुलावनागर जिने गुलाबराव पासवनने १८२२| कुछ कुछ चन्द बरदाई के ढंगको है। इनके हम्मोर. . . सम्वत्में बनाया और चौथा मोममि जोमा बनाया | कायमें कहीं कहीं गद्य भी है, जिमको प्रजभाषा है। हुमा फतेहमागर। शहरके उत्तर महाराज सुरमिकका | नीचे एक कविता उहत की जाती है- बनाया दुभर सूरसागर है । इसके सिवा बालममन्द। "पुण्डरीक सुत मुता तामु पदकमल मनाऊ. नामक एक सत्रिम हद है जो शहर पोर मन्दोरके योचमें | विसद वरन वा वन विपद भूषा हिय ध्याऊं ॥ पड़ता है। . : . विसद जैन पुर सुद्धतंप तुम्वर जुत सोहै। .. जोधपुर नगर, व्यवसायका केन्द्र है। यहां मोटा , · त्रिसद ताल इस भुजा दुतिय पुस्तक मन मोहै। । म ती मोर ऊनो कपड़ा बुना जाता तो गतिरान हंस हंसद चढ़ी रटी मुरन कीरति रिमल ! की रजाई और ; छपाई मगहा जैमातु सदा वरदायिनी देहु सदा मरदान यात ॥" . ..उम्दा तैयार होतो है। लोहे पा. गोदोमा-मांगानेर निशमी एक दिगम्बर जैन '.दातको चो, मङ्गमरमरके कि . . स. १०२१में प्रोतहरचरित्र, जटको मवारीका सामान भो,, ५२४ में सम्यक्त्वकौमुदी पौर

यही सड़कों पर टेगन

जैन-ग्रयों को हिन्दो-पद