५६८ जोवनजोरा. ' नहीं है राज्यके प्रधान मन्त्रो तीन मोन दृग्वर्ती घोग जोरदार ( फा• वि० ) मोरवाला, जिसमें बहुत जोर हो। ग्रानमें रहते हैं। घोरा एक मामान्य ग्राम होने पर जोरहाट-पूर्वीय बङ्गाल और पासामके गियसागर जिले. भो हमको जन्नधायु जोयटमे अच्छी है। इसी कारण का उपविभाग। यह प्रक्षा• २६२२ से २०११ २० और जोपटको उठाकर घोरामें स्थापन करने का प्रस्ताव देगा० ८३ ५७ से ८४.३६ पूमें पयस्थिन है। भूपरि. हुपा था। यह शहर नीन और जङ्गलमय पर्वत घटित मा ८१८ वर्गमोन है। इम उपविभागका कुछ अंश एक अघी पर्वत चढा गनावे दुर्ग के नीचे अवस्थित ब्रह्मपुत्रको मुख्य धारासे उत्तर में पड़ता है, जिसे माजुलो है। यहांके अधियामोगण प्रायः ज्वर रोगमे पीड़ित होप करते हैं । यहांको लोकमग्या प्रायः २१८३१० रहते हैं। यहाँ कोषागार और एक जैन है। घोरामें है। इस उपविभागमें इमो नामका शहर पोर ६५१ गज्यका दातव्य चिकित्सालय है। लोकमंग्या प्रायः ग्राम लगते हैं। इसके दक्षिण-पूर्व हो कर पामाम- बङ्गाल रेलवे गयो है। इम उपविभागको वार्षिक माल- जोवन ( हि पु.) १. योवन, युवा होनेका भाय ।। गुजारो ५०.०००) है। २ सुन्दरता, रूप, गबसूरतो । ५ बहार, दिलखुग, २ प्रामाम प्रदेगके गिवमागर जिलेका एक ग्राम पोर गैनक। ४ स्तन, कुव, छाती। ५ एक प्रकाराना शहर । यह प्रमा० २६४५ उ० भोर गा०८४१३ जोम (प. पु.) १ उत्साह, उमङ्ग । २ उग, पावे।। पू० पर हिमाम नदो के दाहिने किनारे कोकिलामुखगे '२ प्रकार, अभिमान, घमण्ड । . ६ कोम दक्षिणम प्रयस्थित है । लोकमण्या प्राय: २८८८ जोयमो-हिन्दो एक प्रमह कवि। येः १६३१ में | है। १८वीं शताब्दोके अन्त में यहां पाहोम बंगके. विद्यमान थे। इनको एक कविता उपलब्ध है जो नोचे | | पन्तिम म्वाधीन राजा गोरोनायवी राजधानी थी। चाय. उडत की जाती है- के बहुतमे वगीचे रहने के कारगा यह शहर धीरे धीरे "चि पाय हाय दई मेंहदी तेहिको रंगु होत मनो मगु है। विण्यात होता गया है। जैन माहवारी या साडेन. भर ऐसे में स्याम युलायें भट्ट का जाउँ क्यों पंकु मयो मगु है। घान जनोंको बहुत सो टूकानें है। टूमर दूमो. देगोंसे भगति पारीन मी गली मनि जोयसी दूतिनको संगु है। यस कथाम, अब, नमक, नेन प्रादिको बामदनी होतो भम जाउँ तो आत घुगो रेगुरी रंगुली तो जात सौ है" है पोर यहाँमे मरमों, देख तथा पमड़े की रफ तनो मोर (फा० पु.) १ गति, वल, ताकत। २ प्रबलता, होतो है। यहां गमम गट के उस विद्यालय, दाता तेजो, बढ़तो । ३ पधिकार, यश, इखतियार । ४ भावेश, पीपधालय प्रादि है। यहांको चाय विलायतको भनी • वेग, झोंक। ५ भरोमा, पामरा परियम, मेहनत। जाती है। जोरई (हितो .) एक माय हुए मम्मे पर मज- जोरक्ष-यन्सज वर्णित एका जनपद । यन्त्रराजके मत. धूत दो बास, जिनके पग्रभागमे मोटी रसोका एक फन्दा से यह प्रक्षा• ३६ ४. में पड़ता है। इसीको गायन्द पड़ा रहता है और जो कोलहके धोते ममय जाटको। यस मान जजिया कहा जाता है। रोकने तथा धमे कोन इसे निशालते ममय काम, माना जोरा-मध्यप्रदेगके ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत नोवा. है। जाटका कपरका हिस्सा, इसको फन्दे में फैमा देते/ धार जिलेका सदा । यह पसा० २६२०३० पोर देगा. है और फिर जाटका नीचेका हिम्मा दोनो चामकि ७०४८ पू.में ग्वालियर माइट रेन पर पम्पित है। महार उठा कर कोलके परोभाग पर रस टोहा लोकसंख्या लगभग २५५१ है। माधारणत: यह ग्यान जोरई-एक मरहका कीड़ा जिसका रंग हरा होता है। जोरा-पलापुर माममे ममिहई। एनापुर एक ग्राम यह मालकी पत्तियां पोर डानियां खा जाता है। चने मो जोरामे एक मौल उत्तर पड़ता है। यहां करोलोके की फममको इममे बड़ी जानि पहुंचती है। प्रधानका बनाया दुपा बहुत प्राचीन दुर्गका भग्नायथेष, जोरशोर (फा० पु.) प्रचण्ता, प्रदलता। ..। शिना मम्बन्धीय कार्याश्य, सम, चिकिमालय, Vol. VI. 148