पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६३०

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भोपंकजोषोम ५०५ जोपक (सं० पु०) जुष-गल. मेवक, टहन करने । शनिचर, राहु देवता पोर केतुके दान ग्रहण करते हैं। वाला।. . . लडकका विवाह ये लोग अपने निग्न गोवमें कर सकते मोषग्य ( स० पु०) १ जप-स्यद । १ प्रीति, प्रेम। २ है, लेकिन लड़की सदा उच्च गोत्र हो व्याही जाती सेवा। है। मरदुमशुमारीमे पता चलता है, कि लोपो जाति जोपम् (प्रश्यय) जुप प्रम् । १ नोरय, प्रवाक, सुप, ४५१ योपियामि विभक्त है। विटत हो जाने के भयमे खामोग। २ सुख, स्वच्छन्द । ३ मम्प ण रूपमे । ४ सम्यक, सभीके विवरण नहीं दिये गये। एक ग्रेणीका नाम पच्छी तरह। ५ नन । ६ प्रगसा। मारवाड़ी जोपी है। ये पञ्च गौड़ है और पादिगौड़, जोपयाक (म0पु0) मिथ्या वाक्य, झूठा वचन, चाप जयपुरो गोड़, मानयो गौड़ तथा गूजर गौहमें विभक्त ल मी पात। अपने लिये अमोतिकर, किन्तु दूमरेको हैं। इनका वाम बनारसमें अधिक है। कुमोन जोपीके मन्तुष्ट करने के लिये जो वाक्य प्रयोग किया जाय उमको | विषयमें भाटकिनसन ( Atkinson) माहब लिखते जोषवाक् अर्थात् मिष्यावाक्य, या चाटवाक्य कहते हैं। । है कि ये लोग मायके अन्तर्गत है और इनका पादान जोपस् (पव्य) जुप-प्रस। १ राणी, नौरव, चुप । २ सुख । प्रदान पांडे, तिवारी पादिके साथ हुमा करता है। जोपा ( मस्त्री०) जप्यते उपभुन्यते, जुप-घ, स्त्रियाँ जम्मपतो देखना या लिखमा ही इनकी उपजीविका टा। नारी, स्त्रो। है। इनके कई गोत्र हैं, जैसे - गार्य, अगिरा, कोगिक, ओपिका ( स० स्त्रो०) जुपते मेवते जुप-खल, टाप | उपमन्य भरहाज पादि। प्रत इत्व। जालिका, तरोई । २ फलियोंका ममूह । २पहाड़ो ब्राह्मणोंको पक जाति। ३ महाराष्ट्र जोषित् (सं० स्त्री०) जुपते उपभुज्यते युप-इति । हमरु वाधणोंको एक जाप्ति। ४ गुजराती मात्रों को एक हिजुषिभ्य इतिः। तण १९९ । पोदरादित्वात् यस्य जः ।। जाति । सीमाव, नारी। | जोपीमठ-युक्त प्रदेगमें गड़वाल जिनेका एक छोटा ग्राम शोपिसा (म. सी.) जोपिस्टाप । स्त्री मात्र, नारी. (यह प्रक्षा. ३० ३३१० और देशा० ७८.१५ पू०म) भारत। ममुद्रपृष्ठम ६१०७ फुट ऊँचे में अवस्थित है। लोक. जोपो ( ज्योतिषी शब्दका अपभग ) १ दक्षिण-पशिम सच्या प्रायः ४६८ है। इम ग्राममें बहुतमे प्राचीन भारत में रहनेवाली एक गणकजाति । मतारा , पूना | मन्दिर है और विष्णुके मन्दिमिमे नरसिंहदेयका मन्दिर यस्लगांव प्रादि स्थानों में इनका वास है। इनका पाहार प्रधान है । प्रवाद है, कि हम भूमिका एक साथ क्रममः व्यवहार, हाव-भाव और पहनावा मराठो कुनवियाँके पतला होता जा रहा है और अब यह हाय गिर पड़ेगा समान है। जन्मपत्री देखना या निवना, साथ देखना | तब विष्णुप्रयागके निकट पर्वतके मोचे होकर यदरीनाथ की इनको उपजीविका है। लोगकि हाथ देख कर | जानेका राम्ता एक दम मन्द हो जायगा। करा नाता गुमाएम यतनाने के लिए ये "हुडक" डमरू बाजा से है, विपाने स्वयं अगस्त्य मुनिके निकट यदरोनायका फर बार बार पर भीख मांगा करते हैं। ये भी मराठा | पूर्वीच पास्यान प्रकाश किया है। बदरीनाथका मन्दिर कुनयियों की तरह समस्त देव-देवियों की पूजा पीर उपः । बन्द हो जानेमे देवगण भविष पदरीको चले जायेंगे। पामादि किया करते हैं। इनमें भी पंचायत है, पर मविण पदरोका मन्दिर जोपीमठ के पूर्व की पोर धोनी. पवस्था बही मोघमोय है। ... नदीके यामतटपर तपोषनमें पवस्थित है। बदरीनाय कुछ जोपो तो मामय के प्रमुयायो और कुछ यनु मन्दिर के याजोंने हो म मन्दिरका प्रायोजन किया वैदके लो सामवेदके पनुयायो है। उनके गोद भरदान, पदरौतिया, सिकरोरिया, गेरियाककरा, मिलावर गोतकालमें लव धर्फ गिरने लगता , सब रापन या सिलीत, छोयरो पौर पराया है। ये लोग केवल । अर्थात् पदरोनाय मन्दिरके प्रधान याजक मन्दिा अपर