पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६४०

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-जातलेय • राज्य बना लिया। १८.ई.में मंगरेजोंने राजाको ४ शापित, सेज किया हुमा, चोखा किया दुपा। ५ . गोद लेन को सनद दो। यह राज्य गवर्नमेण्टको कोई नियामित, जिमको मति या प्रशमा को गई हो। ६ कर नहीं देता । लोकमच्या प्रायः ४७५३८ है। पालोकित, देखा हुपा। मारप और तोपण प्रभृति इममें १०८ गाय वसते है।। जोहार गांव ता. १८ अर्थ में श धातुके विक त्यमें इट होता है. मौलिये इम ५६० और देशा० ०३१ पू में है। इसीके नाम अर्ध सास भी हो सकता है। उप । ७ जान ! पर राज्यका यह नामकरण हुआ है। लोहार ग्रामको जम (म०वि०) प्यते इति जप पिच्क । पापित, अनन्या प्रायः ३५६७ है । जलवायु अच्छा और ठण्डा जाना हुआ पिन देखें।। . है। राज्यका प्राय १ लाख ७० हजार । ५०.०० जमि ( म० स्त्रो०) मशिन् । १ बुहि। २ मारण। क० मालगुजारी प्रातो है । फौज बिलकुल नहीं है। | ३ तोपण, तुष्टि । ४ तोपोकरपा, नेज करनेकी जिया ज (म पु. ) नानातीति जा-क। गुधवानोकिरः कः। सति । विज्ञापन । ७शा, जानकारो। जम्माने. पा ,३३१११३५॥ १ जानो, मानने वाला। २ मया । ३] की क्रिया ।

बुध । ४ पण्डित । जो उत्तम अधम मध्यम प्रभृति किमो | भवार ( म० पु.) बुधवार. बुधका दिन।

.' फाममें नहीं हिचकते, काय समूह देख कर जो भय | भा (स. सो.) १ जानकारी । २ कविताको पाता। नहीं खाते, अर्थात् जिन पर कोई काम पामण नहीं | हात (मं० वि०) जायते इति मा कम्मणिवा १ विदिस, कर सकता, और जो कार्यातीत हैं वे ही हैं। माना हुआ। इसके पर्याय-अतधान, युद्ध, युधिस, • "फ्रिका व त्यान्तरमपमा सम्पक प्रयुफासु न फमते यः।" | प्रमित, मत, प्रतीन, पयगत, मनित पोर पयसित है। प्रश्नोत्तर उप० ) इस जगत्मे ऐसो कोई वस्तु देखने में भावे । । २ माम । महीं पातो जिसका प्रयोजन न हो । प्रतिक्षण समस्त जातक (स.वि) जात स्वाय फन्। विदित, जाना '. घराघोंका प्रयोजन पड़ता है। मदा प्रयोजन होने के हुमा कारण "गर नीति जा" जगत्का नाम गतियोन अर्थात् | सातनन्दन (R• पु. ) प्रतिन बोधेन मन्दयति मोणति 1: काय गोल पड़ा है। एकमात्र पुरुष या प्रात्माका कार्य भात नन्दप । पईद, क्षमौके पम्सिम सोनामदा- नहीं है। इसलिये यह निष्क्रिय पौर निर्विकार कहा। वीर स्वामीका एक नाम । । जाता है। मार्फ मतमे न हो पुरुषके जैसा पभिः भानपुर (म. पु.) भातनन्दन देखो। मागधो भाषा हित हुमा । "व्य कायका विज्ञानाद" (तस्पको०)। इनका नाम पायपुत्त है। शिम्ही किती जेमोका मस व्यक्त लगत् । पच्या प्रक्षति पोर न पुरूप है । पुरुर देखो। है कि जाटवंग जन्म होने के कारण इनका यह नाम 'को पुरुष जान लेने पर मन कोई दुःखमागरसे उत्तीर्ण पड़ा है। मभिमणिकाय नामक पालिपन्य मता. हो जाते है । ५ बुधग्रह। "युगे सूर्यशुमाना अतुम्कर मुमार युह नव गामनावासमें इनको पपेक्षा कर रहे दार्णया:" (सूर्यसि.) ६ मन्नग्रह। इस गप्दका स्वतन्य घे, उस ममय पावा(पुर) नगर : पासपुतकी. मोष प्रयोग नहीं । यह उपसर्ग या शब्दाना के साथ हुई। मिना रहत है। यया-शाखा, मात्र प्रभृति । ज्ञा-प्रातयोयना (मो .) मुन्धा नायिकाका एक नमा " कि । जाना मान देस।। . न पीर अहे योगसे - के दो भेद १-नवोढ़ा और विधव-नवोढ़ा। बना पा सयुक यक्षर। मासल (सं. वि.) मातं नासि साक। भानयुद्ध, प्रक (मवि०) जास्वायें बन जाता, जाननेयाला| जिसमे भान हो। HAI (म मरो०)मासन, टपाता। मासनेय (म.पु.ली.) शासनस्थापत्यशासन-टम । अपित (म० वि०) मा.णि सापिस जानापा पुमादिभ्यय | पा सातसापत्य, मानो २मारिम, मारापा। तोपित, सुट किया उपा : गज।। . .. .. ... . Vol. VIII. 146