पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६५२

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ज्ञानदेव ५६५ मभी पुर्वा में प्रतिभाके ननण दिवा, दिगे। हां, भान- | तय है। इसके बाद निवृत्ति गोरोनायमे विदा ले कर देवने इनों यो म्यान पाया था। । पपने पितामाताके पास उपस्थित हुए। कुछ देर विद्याम ___ध्ये पुन निवृत्तिको उम्र जम आठ वर्षकी पुई, | करने के बाद उन्दनि भाई बहन और पितामाताको सब सब विट्ठलने धमका उपनयन करना चाहा। किन्तु वे हत्ताल तया महापुरुपका उपटेग कह सुनाया। बद्ध. तो ममाज यु त घे। किम तरह उपनयन कार्य कर | सान घोर उपामनापतिको गिना पा कर उन्होंने अपने मकरी है, इस विषयमें उन्होंने पड़ोसियोंमे महायता मांगो को सताय ममझा। मानदेयने अपनी धमाधारण पर वे कोई मदुपाय नहीं मोच मके। विद्वन्न और उन । प्रतिभाके बसमे ममधिक उमति की। कुछ दिनों तक कोम्सी दोगों नई बाटो दिन मिताने नगे। पितामाता-1 उशमना करने के याद वे योगमाधन करने लगे। कहा के दम दुःखको देश धार नियत्तिको भी बड़ा कर पा) भाता है-छह माममें उन्होंने प्रष्टमिहिको पपने प्रधीन कुछ दिन बीतने पर, उन्होंने अपने पिनाने कहा-'किसो कर लिया। विठ्ठलपन्य को अपने पुत्रों की उमतिमे बड़ा तो स्थान पर ना कर एक देवकाय करनेमे उगका पानन्द हुआ। परन्तु वे ममाजमे च्युत पोर प्रसो मगन हो मकता है।' विट्ठलने निवृत्तिको वात मान | लिए नितिका उपनयन मस्कार नहीं हो सका है. इस लो। वे अपने सो पुवों को ले कर वाम्बमको चल दिये।। चिन्तामें वे बड़े व्याकुल हो गये। बैठन यिनके पूर्य- वाम्यक पति पवित्रस्थान है। यहां वायकेखर नाम पुरुषोंका यामम्यान था और दाक्षिणात्य वा गाम्नवर्या धारण कर महादेव विराज रहे हैं और पवित्रमनिन्ना लिए प्रमिह था । विनने मोचा कि, वकि पग्छिताका गोदायरो यहां एक पहाड़मे निकन्नो है। विट्टल ए ध्यवस्थापन प्राग करनेगे हो कार्य मिह हो आयगा । पोई प्राधप घर पर रहने लगे, वे यहां नित्य ब्रह्मगिरिको ये परिवार सहित वहां गये और अपने मामा सामाजी प्रदक्षिणा करते थे। इसमें उनके तीन पुर्वान भो गाय पन्य के घर ठहरे। छगाजो पन्बने मव हत्तान्त मुन कर दिया। इस तरह एक यपं बोलने पर एक दिन एक पक विराट् ममाका भायोजन किया, माणगण निमः चाधने उनका पोका किया विठ्ठल मानदेव पोर मोपान न्वित हो कर ममा पाये। विलपन्यको पुन: ममाज. को गोद में ले कर मार्ग। नित्ति पोछे पोछे भागने | में ग्रहण करनेको चर्चा छिड़ी। पपिइौने पनेक गार लगे। कुछ दूर जा कर देखा तो नितिको नहीं पायाउलट डाले पर कहीं भो मंन्यासीले यही सोने के विषय में निति गह भूल कर अचनो पर्वत पर चढ़ गये। यहां कुछ विधि नहीं मिलो । ममाके द्वारा मुफनशा प्राप्त • एक गुहा ट्रेस कर ये उम मोतर घुम गये। मातर होना तो दूर रहा. उलटा घमना पड़ा; विलको परि- जा कर देखा तो एक महापुरुषको अग्नि मोच कर नप- वार महित घरमें रखने के पपराधमे कणाजोपन्य गों स्याम मिमग्न पापा1 निवृत्ति यहां वेठ गये। कुछ देर समाजमे शुत किये गये। पोछ अपमहापुरुपने पावं खोन्नो, तब नित्तिने उनको विठ्ठल को चिन्ताको पम कोई मोमा नहीं रही। माटा प्रणाम किया । इन महामुरुप का नाम था गोरी । पय तक वे अपनी हो चिन्ता करते थे, पर पम उन नाय। ये एक प्रमिह योगी थे। गोरीनाथने यालकको पर मामाको चिन्ता मो मवार सो गई। उनकी यह , देश कर समझा लिया कि, यह प्रतिभाशाती है। उन्होंने दगा देख कर निवृत्ति और शानदेय उन्हें मान्बना देगे नितिको प्रपना तार पीर पाने का अभिवाय पूरा नगे। उन मोगनि कहा-"उपौन धारण करना या नितिन अपना परिचय दे कर कहा--"मदुपदेश दे| क्रिया मात्र है। इसके माय पामाका कोई मम्बन्ध फर मुझे कता कोगिये, यही मेरी प्राय मा है।"] महो। गाम्नमें कहा है, जो व्यक्ति अचको जानना है मितिका पाय देन कर गौरीमायने उनको उदेश | यहो याचन है।" पुत्रों को मान्यनामे विनको बहुत दिया। उपदेशका माराम यह है-जगत् मिष्या है, कवन कुछ गान्ति हुई। ईसर ही मत्व ई पोर सनकी उशमना करना मनुनका। कुछ दिन बाद, मखाजोपय पिता याका दिन ... . . . . . . .. .. . . .