पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ज्ञानदेव ५६० की एक टीका लिपी। इस टोकामे उन्होंने अपनी । माधारणको विपद हाने ममझा दिग करते थे । गोता. विद्या बुदिका काफो परिचय दिया है। यह टोका को प्याच्या सुन कर और उनके पन्यान्य उपदेगोंको दाक्षिणात्य - "शानेश्वरोटोका" नामसे प्रसिद्द हैं। इदयाम कर बहुत से लोग भगवडक हो गये तथा बहु. नेवाससे चल कर ये पूमताम्बे नामक स्थान पर पहुंचे।। ताने दामात छोड़ दिया । रम विषयमें दो दृष्टान्त दिये यह गोदावरी नदी के किनारे पर पथस्थित है, चागदेव | जाते हैं- नामक एक योगी यहा रहते थे, इसलिए इसने प्रसिद्धि वाम्यक नामक एक प्राधण मानन्दोमें रहते थे। पाई यो।' कहा जाता है कि, नानास्थान से लोग मृत- इनको स्त्रो पार्य तोयाई नामा गुणसे भूपित थों और देह ले कर वहां उपस्थित होते थे। चाहदेव समाधिसे उठ बड़ी पुगोमे अपने पतिको मेवा करतो यौ। कि कर उनमें जीयन सञ्चार कर देते थे। इस स्थान पर मुन्नता- उनके स्वामी वाम्बक एक गट-सी मे फंमे हुए थे, इस. बाईने ज्ञानदेवमे मृतसञ्जोवनी मन्य ग्रहण कर कुछ लिए पार्यतीमाईको मानसिक कष्ट बहुत था। जान. मुदीम जीवनमञ्चार किया था। चाटेव समाधिम्य धे, देवने बहुतमे घमशरिको सधारा है यह सुन कर इमलिए नित्ति पादिका उनमे भेंट न हुई। पीछे ये पाव नोचाई उनमे मिलनेको चनो। उनके साथ धर्म उस स्थानमे धन्न पार भन्यान्य तीक दर्थन करते हुए | मम्बन्धी प्राम्तो दना होने लगी। मौका पा कर उन्हेनि पालन्दी लौट पाये। ज्ञानदेवमे अपना दुखड़ा सुनाया। दूसरे दिन भान. पादेवने समाधिगे उठ कर देखा तो किमो भो मृत. देवने वाम्मक और उनको रक्षिताको वुलवा लिया. व्यक्तिको न पाया। इसका कारण पूछने पर गियसि | फिर उनमे अनुरोध किया कि, "प्रतिदिन दोनों हमारे उत्तर मिला कि, भानदेवके दिये हुए मन्तवलमे उन्हीं को पास पाकर भागेश्वरोको व्याच्या सुमा करें ।" साम्यकने भगिनी मुलामाईने शवदेशमें जोवन दान दिया है । यह इनका पनुरोध न माना, पर ग द्वारमणो रोज धर्म कया सुन कर पागदेवने एक पत्र लिख कर ज्ञानदेयके पास सुननेको पाने लगो। उमके अनुरोधमे बापक भी पानि भेना। सामदेवने इसके प्रत्य तर, ६५ उपदेशपूर्ण लगे । एक दिन मानदेयने ओवको पनान-दगाक • प्रभा लिख भेजा । पमना कठिन थे, इसलिये धान | विषयमें उपदेश दिया और इस दगाम पड़ कर सोक देव उनका तात्पर्य न समझ सके। ज्ञानदेव साय | नानाप्रकारके नोच कार्योको करने लगते हैं. यह भी मिस्तनेका नियय कर वे पालन्दी चल दिये। भानदेवने विगदकामे ममझाया। हम उपदेशने दोनों पाक. , उनको पादरसे अभ्यर्थना की। चान्देव यहां परम | रणको वेद दिया, पिछने पापोंको याद कर दोनों ही पानन्दमे रहने सगे। वे नित्य भागदेवमे उपदेग पनुताप करने लगे। पीछे शानदेयक भादेगमे साम्यक ग्रहण करते थे। ने गद्ररमणोको छोड़ दिया पोर वे मसोक धर्मालो. · भानदेव प्रन्यरचमा पोर साधारणको उपदेश देने में , चना करने लगे। वाम्यकका नवजोवन माम करमा समय विताने लगे। बोधमें कुछ दिन.पदरपुरमें रहे। एक पायर्य का विषय था। इसके द्वारा मानदेय पर . थे। रन्होंने कमसे "अमृतानुभव" (धेद पोर उप.! लोगोंकी भति पोर पनुराग पोर भी बढ़ गया। मोग . मिपदशा सारसंपच ) "पवनविजय" 'योगयायिष्ठकी | मुगड़के मुह उनके उपदेश सुनने को पाने लगे। पधिक टोका", पञ्चीकरण. पोर "हरिपाठ" नामक कई एक लोगों के ममागममे ज्ञानदेवका घर भरने लगा। मोगको • पन्य रष डाले । इसके सिवा "यीविहुल-वर्णन" | बैठनेकी जगह मिस्तना भो दुबार हो गया। फिर नामक एक पटक तया पदुतसे प्रभङ्गा मनाये थे। मान-1 प्रामदेव पालन्दामे पाध कोम दूर जाम्यम्बट नामक "खरी प्रत्य कठिन होने पर भी नामदेव इसका पर्य। याममें रहने लगे चोर वहों में माधार 'पको उपदेश देने

  • यह अन्य ११५.१० पापया है।"

मग। मराठी भाषा पदको अमंगाते है।. भाम्बनयेटमे शुद्ध दूर पारोनो नामक एक प्यार है। Tol. VIL.130