पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६५६

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ज्ञानदेव ५९६ और उपदेशीको मुनकर पनेक मूट व्यक्तियोंने भो जान के साथ मदालाप कर उनका उदय उदार-रममे सवालम लाभ किया। अनेक संशयवादो भगवन ए पोर | भर गया था। उन्होंने इस मौके में कितने ही प्रदेशों की बहुतमे कुमागंगार्शिने मत्पधको अपनाया। ज्ञानदेवको । भाषा मोख सो थी। इसके मिया नये नये दृश्योंको प्याति चारों तरफ व्याग हो गई। दूर देगोमे लोग देख कर उनका मन एंग्यरकी तरफ बढ़ता था। माना उनके उपदेश सुनने को पाने लगे। धरि धोरै पानन्दो | स्थामहि लोगोंके माथ मदालाय करनेमे उनके पन्त:करण एक तीर्थरुप में परिणत हो गया। में महाप्रेम पहिन्त हो गया था और इमोलिए परो इम तरहसे कुछ वर्ष शैतने पर शान वने ममाधि | पकारमाधन उनके जीवनका एक महावत हो गया लेनको इच्छा प्रकट को और उमके लिये वे तयार भी होने था। हमारे गास्तों में नोर्य दर्शनको विधि है। उसके लगे। इस संवाद के चारों तरफ प्रचारित होने पर नाना | अनुसार कार्य करना मयका कर्तव्य है। इसमे केवन स्थानोंग माधुगण पाने लगे। इस ममय उन्होंने 'बालन्दो धार्मिक उति ही हो ऐमा नहीं, प्रत्युत पार्थिव विषय- माहात्म्यं नामक एक अन्य लिखा । कात्तिक | का भी जान होता है। जोवनका कुछ ग योग- मामको एकादयो रात्रिको भानदेवने कोर्टन प्रारम्भ | माधन विताना चाहिये, यह बात सानदेषको जोवनो. किया। हादशीको भी कीर्तन होने लगा। कीर्तन मुन मे स्पष्ट प्रमाणित होतो है मनको एकाग्रताके बिना कर सब मोहित हुए। क्योदगीको सानदेय ममाधि | कोई भी कार्य उत्तम रूपमे नहीं किया जा मकता लेने के लिये तयार हुए। एक एसके गले ममाधि-स्थान और योगसाधन उसके लिये एक प्रकृष्ट उपाय है । योग- निवित हुआ। वहां एक गुहा बनाई गई । गुहा | माधन कर जानदेवने अष्टमिति प्राप्त को यो। इसके दो भागों में विभक्त हुई। रम गुहामें प्रवेग करनेमे | सारा वे अनेक अडस कार्य करके लोगायो घमशत कर पहले सागवने यात्मीय स्वजन और माधुपोंमे मदालाप | मकते थे, किन्तु उन्होंने रीमा किया नहीं। प्रत्युत जहां "किया तथा सबको अभिवादन कर उममे विदा प्रक्षण क्षमता प्रकट करना पायग्यक होता था, यहो पाता की। समोने उनके लिये दुःख प्रकट किया। किन्तु प्रकर किया करते थे। बहुतसे योगो ऐसे हैं, जो प्रहार वरलाभ उनका उद्देश्य घा, इमलिए किमोन भो उन मे फल कर लोगीको पानी कारस्तानी पोर जादूगरी इस कार्य में बाधा न पचाई। पीछे मानदेवने सबको । दिखाया करते हैं। ऐसे योगो न तो स्वयं धर्म पय पर अमुमति ने कर गुमा प्रग किया। गुडामें कुशामन | अयमर हो सकते हैं और न उनमे दूमर्गका ही कुछ भोर मृगाजिन 'विशया गया। सानदेय Bम पर | उपकार हो मकता है। धर्मगाम्न की व्याख्या करके पना मन नगा कर बैठ गये। उनके मामने जानवरो | लोगों मनर्म धर्ममाष उद्दीपन करना और उप. योगवाशिष्ठ पादिकई एग्रव्य रफ गये। गुहार देश हारा प्रमचरित मोगोंको सुमार्ग पर लाना मानदेव. भोतर चार टोप जन्नने मर्ग। बाद में मानव इन्द्रिय- के जोवनका प्रधान उद्देश्य था, तथा इस उद्देश्यको बाराको रोक कर ध्याममें निमग्न हो गये। यह देख समाधन का इन्होंने अपने गेप जीवन में इंगरमे ममा. कर शानदेय पामोयम्बजन गुपके हार मन्द का अपने । धान किया। अपने स्थानको लौट गये। गंधारमे नगा कर विहान् मक भानव पब महाराष्ट्रियों द्वारा पूजे जाते हैं। मन कोई "योजानदेयो जयति" करने लगे ! .. पानन्दोमं इनका ममाधिमन्दिर है पोर यही इनके मम्मा- • नामदेयको लोयमो गिनामद। हम इममे बस. नार्य प्रति य एक मेला लगा करता है। इसमें प्राय: मे उपदेश ले सकते हैं। बंटर्णिमाके . पिना केयल) ५. पार पादमो एकत्र हो । दधिय विद्या राम कुछ विशेष फल नहीं मिलता। जामदेवने | देगी मानदेव पोर तुकारामने मामि गोप म्यान. यो योधर्म तीर्थ यात्रा पीर मामा स्यामि रद कार बहस पधिकार शिया है। ज्यादा यया को पदक भिपारी कुछ पभिन्नता प्राग को घो। भिव भिव स्पानकि मोगों | सब भीष मागर्ने निशानी है, तब वे "भामोया तुफा.