पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६.१ ज्ञानोराम जय . हो मगदुपामनामें प्रत रहते हैं। भगवान्ने कहा, इत्यादि सूव द्वारा मनको उभयेन्द्रिय ही प्रमाणित किया है-चार तरह के प्रादमो मेरो पाराधना करते है। इन्द्रियं देगे। है । पोड़ित. तत्वशानच्छ, दरिद्र और ज्ञानो मानोत्पत्ति (स• स्त्रो०) ज्ञानस्य उत्पत्तिः, तत् । इनमम पानी ही मवसे यह पोर मेग| जानका उदय, पलका होना। प्रिय है ।(गीता ५.) शक, नारद पादि| भानोदतीर्थ ( म० की.) ज्ञानोद पति नाना विख्यात जानी है, इनको किमो विषयको कामना नहीं है. तो, कर्मधा० । वारापमोके अन्तर्गत एक तीर्घका नाम। फिर भी रात दिन हरिगुणानुकोर्तन किया करते हैं। यह तीर्थ ज्ञानवापो नामम प्रमिह है । मानयापी कौर मानी व्यक्तिको भो कर्मचयार्य वर्णायमधर्माचित कार्य | साशी देश। करना चाहिये । ज्ञानवान् व्यक्ति बहुत जन्मोंके जानोदय (म. पु.) ज्ञानस्य उदयः. ६. तत्। ज्ञानको उपरान्त भगवानको पाते हैं। २ जिसे मान हो. उत्पत्ति, प्रकको पैदाइग। । .. . बोधयुतामाव, अर्थात् सामान्य ज्ञानमावका बोध होनमे भानोल्का( म सो०) समाधि भेद।। हो भानी होता है। झापक (सं० वि०) मारिणच-स्य । बोधक, जनानवाला, जानोराम-हिन्दोके एक कवि। इन्होंने स्पुट कविता जिनसे किसी बात का पता चले। नामक ग्रन्यकी रचना की है। जापन (मलो ) शाणिच-स्थर आवेदन, जताने ... शनिन्द्र मरस्वती-वामनेन्द्र मरम्बतोके गिय और तत्व- वा बतानेका कार्य। घोधिनो, मिहान्तकोमटी टीका तथा प्रयोपनिषद भाषके शापनीय ( स० त्रि०) ज्ञा-णिच अनोय । निवेदनीय, जो प्रपिता। जताने या बतानेके योग्य हो। शानेन्द्रस्वामो-ब्रह्मसूवार्थ प्रकाशिकाके प्रणेता। जापयिट । म वि० ) मा निन् टन् । सापक ; पित .. करनेवाला। ज्ञानोत्तम-गौड़ेश्वराचार्य को एक उपाधि । शापिकदेव- स्मृतिमारके प्रणेता। भानोत्तममित्र-नगम्यमिडिचन्द्रिका अन्य के प्रणेता। जापित ( वि.) माणिच हा । सूचित, जताया एश. सानोपदेश-शराचार्य प्रणोत उपदेशग्रन्य। बताया हुआ। शानिन्ट्रिय (मली ) हायत बुध्यतेनति जा. करपे शान्ति ( स्त्री)मा णिच् भावे तिन् । ज्ञापन, संचित स्पट वा ज्ञानप्रकार छानसाधन वा इन्द्रिय । धान करने का कार्य । ' साधन इन्द्रिय, वे इन्द्रियां जिनसे जीवों के विपर्योका | साप्य (म विज्ञापनयोग्य जानने योग्य . . ज्ञान होता है। जानन्द्रियां पांच हैं योवेन्द्रिय, स्पर्य-शाम (म. पु०) जा-अवबोधने घा-प्रसुन् । जाति, गोतो, न्द्रिय, दर्शनेन्द्रिय, रमना धीर प्राणिन्द्रिय ! | भाई बन्धु । शब्द, स्पर्श, रूप, रम, पोर गन्ध ये पांच भानेन्द्रियके - "मास उतवा बजावान" ( १११.९॥१) विषय है। योत्रका विषय भब्द, त्वकका स्पर्ग, चक्षुका सातयोः ( साथण) रूप. जिधाका रस और नामिकाका विषय गन्ध है। इन सासा (म. सी०) भाम मिच्छा, जप मन्- ततटाए पान शानेन्द्रियों के पांच रधिठाता देवता हैं, यथा-योव माननेको नच्छा। के दिक, त्वक वायु, चतुके सूर्य, जिना वरुणा, नामिका- भासामान ( म० वि०) अपमन् कर्मनि सानच, । जानने के पसिनोकुमारय । भागयत पाटिमें मनको भी भान-1 का इशक, जिने कोई बात जाननेको अभिलाया हो । . . न्द्रिय कहा है, किन्तु मन केयन सानेन्द्रिय नहीं है। (दै०) सामु. घुटना । एमका भनिन्द्रिय और कमें न्द्रिय उभयात्मक इन्द्रिय | वाघ ( में त्रि.) घुटने टेक कर। मानना का मत है। दानिकोंने "उभयात्मक मनः" य (स'. वि०) जायते इति जा.कम मि यत् मानयोग्या