पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६६४

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झे यत--ज्यामिति ६०५ जातव्य, जिमका जानना योग्य हो, जानने योग्य व्य (नवि० ) त्योछ । वाधा देने योग्य, तकतोफ इम लगत्में एकमाव मद्राही शेय है। इस य | देने लायक। पदार्य का विषय गोतामें दम प्रकार लिखा है-"है | व्या ( H० ती०) न्या-ड तटाप । धनुगुप, धनुषकी अर्जुन ! अब सुममे शेय विषय कहता है, मन लगाकर डोरी। इसके पर्याय-मोर्वी, शिन्ननो, गुण, शिक्षा, सुनो में य पदार्य को आन लेनेमे पमृतत्वलाभ (मोक्ष. जोया, पतलिका, गया, यागदामन पोर टुग्णाहै । २ लाम ) हुषा करता है। इसको जाननेमे मुखदुवादि. | किमो चापके एक सिरने दूम मिरे तकको रेखा। २ मे प्रतीत हुपा जा सकता है। मका स्वरूप इस प्रकार | किसी चापर्क एक मि चापके दूमरे मिरे तक गये है। वह पनादि ब्रह्म और मैं निर्विशेष ६, वे मत् | हुए घ्याम पर गिरी हुई. लम्प रेखा । ४ पृथियो । या प्रसत् नहीं हैं। उनके एम्त, पट चक्षुः कर्ण पोर ५माता। ६ विकोणमितिमें केन्द्र पर कोणाके विचारमे मुख सर्वत्र विद्यमान हैं तथा वे मयत व्याम हैं, वे म | रत रेखा और विन्याको निष्पत्ति । प्रकारको इन्द्रियों में विहीन है, किन्तु इन्ट्रियो भो उनके | ज्याका ( म स्वी० ) कुस्मिता ज्या ज्यागदात कसा विषयों को प्रकागा है। वे सहरहित, पर मबके प्राधार• कः । कुत्सित ज्या, खराब धनुषको डोरी। . स्वरूप है। वे गुणहोन पर सकल गुणके भोता है। वे | व्याधातवारण (म.ली.) ज्यावा पाघात यारयत्यनेन माधानरतः समस्त भूतके अन्तरमें रहते हैं, वे अत्यन्त करणे वारि-ल्युट् । धनुरोके हम्त विवधर्म विशेष, सूम है, इसलिये पविनय है । वे समस्त भूमि भयिः वह चमड़ा जो धनुष चलानियाले योडामों के हाथमें बंधा भना रह कर भी कार्य भेदसे विमिवरुप अवस्थिति | रहना है। करते हैं। वे भूलोक स्रष्टा, पासा पोर मया है। ये ज्याघोप ( म० पु. ) व्याया: घोपः, तत् । व्या शब्द, ज्योतिः पदार्थ की ज्योति चौर धानके तोत हैं। । धनुषको टकार। (गीता १३॥२३.१७ ) | ज्यादतो ( फा. स्त्रो.) पधिकता, पधिकाई, बहुतायत । - जितने दिन शेय पदार्थ का ज्ञान नहीं होता, उतने ज्यादा (फा• क्रि० वि० ) पधिक, बहुत । दिन उहारका कोई उपाय नहीं है। परन्तु यही जय | व्यान । म मो० ) उत्पोड़न, नुकमान, हानि, घाटा ! पदार्य है और अत्यन्त दुर्यि य है। प्यानि (म' भयो.) ज्या-नि। धीग्यावरिभ्यो निः। सन् ____ महा मन पोर वायव न पहुँच मकनेके कारण मोट / ८१ वयोहानि, उनकी घटती । २ महिनी. टो। पाते हैं, यह की सेय-पदार्य है। पादि सर्ग काल में ३ नोण, बुढ़ापा ! जिसमे इन भूतीको उत्पत्ति हुई है और जिमको रुपामे च्यामिति (म स्वी.) गणितमासा कई एक भामि जोषित रहते हैं तथा युगक्षयमें जिमसे प्रनीन होते है, विभता है । भिन्न भित्र विभागमे हम लोग भित्र भिव वह पदार्थ की य है। ब्रह्म देखो। विपर्योका ज्ञान प्राप्त कर मकते हैं। जिसके पारा हम नयन (म.वि.)भयं जानाति सेय-मा-क। पाम भोग भूमि-परिमाण मम्बन्धोय विषय मानम कर सकते, मानो, प्रधान, सिह, माधु। उमे माधारणत: ज्यामिति कहते हैं। ल्याथिवी यसा. (म स्तो०) यस्य भावः सेय-भाषे तन्न् (भूमि) एवं मिति परिमाप । इन दोगन्दोस ज्यामिति टापः। यत्व, योध, जामनेका भाव। . गप्द यना है। गरेशी भाषा मे Geometry कहते अमन (ये.) १ पसरीत नाम । २ पृथियो परके वर्तमान है। georetirth एवं rectronu measure न भन्। "भूधर मानले. (क् ॥२१॥६) मिना यिन्यो बर्ड। दो गसि Geometry को उत्पत्तिई । भ्यामिति पानमन्तून' (सायम) द्वारा विशेष विशेष स्थान या क्षेत्र भित्र भिघ शौक्षा स्मया (स.वि.) पृथिवो पर जिमको उत्पत्ति हो। परम्पर मम्बन्ध जान लाता है। इनमें रखा, कोण, सम. "मा बत्र ब": ३) 'मिष्यांम (मास)| तन पर धनपरिमाप पादिका विषय निरुपम किया Vol. VIII. 152