पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७०

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मामिति जा सकती है। मुतरां दो ममतल क्षेत्रके ऊपर किसो | और धनदेवको कल्पना की जा सकतो है। किन्तु . घमको पतित नम्य मान म रहनेमे किमी एक ममतन ज्यामितिको उपक्रमणिका मरग्नरेखा, इत, मेखिक क्षेत्र के ऊपर एम घन किमो विभाग के सहा क्षेत्र पनि । क्षेत्र, धननेव, नलाक्षति, मोचालति पोर यसल हासि किया ना मझता है। यदि वह विभाग वक हो तब | क्षेत्रका विषय वर्णित है। इमो कारण ज्यामिति दो ___ क्रमागत बहसमो विन्दुम क्षेत्र पन्ति दिया जाता है। भागोंमें विभव है, प्रथम भाग समतनके कपर पक्ति मनको बनाई ६ई चित्रजयामितिमें यह विषय माफ क्षेत्र, दूसरे भाग घनशे व पहन पोर सप्तको भित्र भिय तौरमे दिग्बनाया गया है। शाखाका विषय लिया है। चित्रजामिनिको पाविशन होनेके बाद नामिति पृथियों के किम देगमें किस जातिके लोगोंमे जामिति विद पगिडतगण परिबके उपति साधनकै विषयमें गाम्न प्राविश्क त हुआ है, इसका निर्णय करना अत्यन्त . यत्रगोल हए। वे चित्रविद्या प्रोर सूदीच्छे टके प्राथ दुःमाध्य है । जेसुइटगप जब धर्म प्रचार करने के लिये मिक नियमके विषय मनोयोगो हुए। मञ्जके समयमे | चोनदेगमें पहले पहन पाये हुए . तब उन्होंने धोन- ही चित्रजामिति क्रमशः उनतिजाम कर रही है। विगह | | वामियों का म्यान मम्यधोय प्रानका मम्यक् विकाग ( Puro ) जामितिको कोई विशेष उवति नहीं हुई। देखा था ! ममकोग्य प्रिम जका विशेष धर्म एवं परि. पूर्व समय में लोगोंकी धारणा थो. कि पाटोगणित | मितका कुछ पंग उन्हें प्रयगत था । गपिल ( Gaubil ) भोर आमिति को गणितगास्सको प्रधान दो शाखा है। कहते है कि ईमके २०५ यप पहने जितनो लिखो दुई सब उन्होंने स्थान और मच्या विषयमें ज्ञानलाम किया | पुस्तकें पाई जातो हैं. उनमेमे केवल एक पुस्तकको था, सच वे पाटीगणित और जयामिति उद्धापन करने में ! जामितिफ पुस्तक का मकसे हैं। समर्थ हुए थे । पहले को कहा जा चुका है कि ज्यामिति स विषयमें हिन्दुमाका उपापं देखा जाता है। कर पक भागोमें विभना है। विशुद्ध ज्यामितिमें केयन जिम ममय यजुर्वेद के क्रियाकाण्डका पूरा प्रादुर्भाय था, मरनरेग्वा पोर इतका विषय लिया गया है। रममें | उम ममय पार्यपियाँको परिमाणवह यन्नवेदों के निर्माण ममतल ऊपर घहित घनक्षेत्र, हत्त, सूची पोर नना के लिये जामितिका प्रयोजन पड़ा था। उम प्राचीन कति क्षेत्र सथा उसके खिकछेदका विषय भी मानो। पार्य जामिति का मून मूव हम लोग बोधायन प्रभूति चित दुपा है। पियोंके बनाये हुए शल्पस्व ग्रन्य, पाते हैं। पोत्र. उझिडक जोविनकालमे पाज तक बहुतमे पण्डित | व्यवहार और शुल्पसूत्र देणे। भामिति प्रणयन कर रहे हैं, और बहुत टीका टिप्पणी, पिण्यास जोतिर्विद शहरदोधितने रायशुर्वेदीय पगोतम पाटिदारा उक्लिड को आमितिको न तन | तपयनाध्यपका एक पंग सहस कर प्रमाण किया ६ पामार बना रहे है। विलमन मायने रतिको कि गतपयका वह पंग ईमार्क प्राय: ३... वर्ष पहले हो पाधारं घना कर एक न तन प्राकारमें जयामिति । रचा गया है। गतपय बाधाप, कात्ययनयौतसूव प्रमृति अध्ययन की है । किन्तु इयक्तिडको उपक्रमणिका मो यजुर्वेदीय पन्याम पेदी निर्माण की पावकता लिपि • मानत पोर सुग्वयोध्य है, मी एक भो पुस्तक नजर वह है। इस तरह अयामिति या रात्सम्बका मून नहीं पाती। विपय जो माघीमफान ही पायंचपियों के मनमें उदय रततिडके बाद को लेकर ( Legendre's) को हुमा था. इसमें कुछ भी नहीं है। परन्तु प्रोमदेशमैं पहले ज्यामितिका नाम उखयोग्य है। पेजेगडरकी । रम गाम्नको जेमी उपसि हुई यो, भारतवर्ष उम ज्यामिति पढ़नेमे सक्रिटको उपक्रमणिकाकी . पपेना तरहको पान तक नहीं हुई । देचे विषयमें भानमार होता है। ___ मधगुण और माम्तराचार्य के ग्राम परिमितिको सामिनि पन्य भित्र भित्र प्रकार समतन, रेखा । पयो पासोचना की गई है। सोमबार परिमार