पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७२

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मोवापो-जहां ६१३ भगवान् योलणजोने गोतामें कहा है, "वर्णानां । निए ममस्त रावि जागरग करें। पति दुर्भाग्यवतो नार मानण्याम्मि" वर्गाम में हो ग्राण है। भी यटि जाएवापोमें मान कर मल्लिभावमे, इस स्थान जापापो (म यो ) जाठा यापी, कर्मधा० । काशो पर जाठा गोरोको प्रणाम करे, तो उसका मध सरहका स्थित जाठापोभेद, कागोको जग्ठवायोका एक भेद। । दुर्भाग्य दूर हो जाता है। यदि कोई पहले पहल कागो ... . .. ज्येष्ठस्थान देशो।। मांय, तो उमको मबमे पहने जाष्ठेमरको पूजा करनी ज्य ठहत्ति (स• सो०) जातस्य वृत्ति व्यवहारः, ६ तत्।। चाहिये। काशी देखा। कमिठ भाईयों के प्रति उत्तम व्यवहार। ज्येष्ठा (म० करो। जाप्ठ टाप । १ परिजनी प्रभृति २७ “यो उमेयो ज्येष्ठ वृति: स्यान्मातेव स पितेव सः। । नसमि मे अठारहयों न हत। इसकी पातति वनय अपेष्ठवृत्तियस्नु स्यात् य संपूरपस्तु पन्धुवर " (मनु ९१10) महश घोर यह शूकरदन्ताकृति तीन नसोंमे घिरो . यटि जोठ भाता कानठ भातायांक ऊपर उत्तम | है।इमके देवता चन्द्रमा घोर गुण मिय है। (दीपिका) व्यवहार करें तो माता और पिताजे समान पूजनोय | "मरीतितिविष: ममेत' वितान्विन' ऽत्यन्तलमत् प्रतापः । तथा यदि वे जाठ हत्ति (उत्तम व्यवहार ) न करें, अंठपतिष्ठो विकलस्वमायो ज्येष्ठा भवेत् यस्य च जन्मकाले ॥" तो मामा श्रादि बान्धवों के जैसे पूजनोंय हैं। (कोष्टोप्रदीप) ज्ये ४सयू ( म स्त्रो०) जेष्ठा मान्या वरिव सजत्वात् रम नसमें मनुशका जन्म होनमे वार यगखो, बहु- यज्ञायः। पत्रोको जोठ भगिनो, स्त्रोको बड़ो बहिन, पुत्रसम्पन्न, धनमान. पतिमतापानो. नयपतिठ भोर बड़ी मालो। विकलखभाव होता है। २ ग्रहगोधिका विपकम्। ज्येष्ठमामग (म• पु०) पारण्यक मामका पढ़नेवाला। ३ मध्यमाङ्गली. मध्यमा उँगलि। ४ गगा । ५ धोरादि ज्ये ठसामा (स. ली.) जेष्ठ माम, कर्म धा । सामभेद, नायिकाभेद, वह तो जो पोगेको पपेसा पपने पतिको जाड मामयदका पढ़नेवाला । अधिक प्यारो हो। मनमो। इमका उत्पत्ति-विध- "पामदेव्यं त्वाम श्येष्ठसाम रयन्तर ।" (दानपारिजात) रण पद्मपुराणम इम नरहनिया है-ममुद्रमयनेक ममग ज्येष्ठस्थान (स'• ली.) आठ स्थान, कम धा ।। यह मम्मोके पहले निकनी यों, मी लिए इसका नाम कागोस्य तौय भेद । इसका विवरण काशीखण्डम' इस ज्य ठा पड़ा है। जब देवतानि सीरमागरका मयना प्रकार लिखा है-कागोधाममें जाप्ठ मासमें सोमवारको पारम्भ किया नो मोठा टेयो रामाला घोर तपस्य शकाचतुर्दशी तिथियुस अनुराधा नक्षत्र में महादेवने । पहनो ६६ बाहर निकनों, और देवताग्राम योनी कि गोषव्यको गुक्षम प्रवेश किया था। इसलिए यह हम कहां नियाम करें और हमें कोममा कार्य करमा स्थान जो ठस्थान के नामसे प्रमिद हो गया। उस पर्व के पड़ेगा तया हमारे पयस्थानने कोनमा मङ्गल माधिम दिन मनको यहां आना चाहिये । म म्यानमें यह दिन | होगा यह हमें पतला कर पनुहोस करें। तब मम मम्म तोमि जोष्ठ ( प्रधान ) होता है। इस स्थानमें | देवतापोंने एक माथ कहा, 'हे राभानने : जिम के घर जाजरकै नाममे गिय अपने पापी मादर्भत इए। मदा कनह होतो हो. जिमका गृह कयान, पम्पि, भग्म थे। नाठार शिवको देखनेमे गतजन्माति पाका पोर केगादिमे चिहित हो, जो नित्य गन्दी ग पुरी बातें नाग होता है। यदि मनुष्य भाष्ठयापोमें मान करके सकता हो, जो मन्ध्या ममय मोना हो पोर जो मदा जालेसर विवके दर्शन करें, तो उनको फिर जन्मग्रहण | महनि रहता हो. तुम उमो के बरम ना कर पाम करो नहीं करना पड़ता। इन जाप्ठेवर गियक पाम मई एय मदा मे दुःख, कैग, रोग. गोक इत्यादि देसी मिदिमदायिनी जातागोरी अपने पाप पाषिर्भूत हुई। रहो । सो मूद बिना पैर धोये मुप्प धो ले पोर भो घों। नाउमामको शुकाटमी तिथिम बाप्ठा गौरी । घाम, राप तथा धान मे दतुवन फरे नया रानिम मिला समोप महोयाय करें पोर नाना प्रकार सम्पदन्ताभने । कुटा, नरबूज, मोरिंजन, गजरा. मो, पाला एपर, अन Vol. III. 154