पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७३

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६१४ मोठामलक-वोडिनेय स मापोर तुम्बी माताओ, तुम उमी घरमें वाम ! गोधा, हिपाली । म मस्कृत पाय-मपम, मुथयो, करो पोर इमे मदा दुःम पहुंचाती रही। म तर कुधमत्मा. ग्रहगोधिका, मुली, टकटको, गनना पोर तम कनियुगको वनमा को कर मुणगे विचाण करो। महापिका है। मदरवापती) पदविशेष रमक परम- पसना कर देवगण उन्हें विदा कर पुन: ममुदमयने । फन जोसिप रम प्रकार निसा-नाप्यो यदि मनुः मग (युगग तरोड) प्योंके दक्षिणा पर गिरे, तोषजनों पोर धनशा पियोग मिराणमें निकाह कि ममुद्र मगन के समय नश्मीक तथा वामभाग पर गिरनेसे लाभ होता है। समस्या पपने इनकी उत्पत्ति हुई, किन्तु जन देवामुरोममे किमीने मस्तक, पृष्ठ और कण्ठदेश पर गिरने राजालाभ तया पहें ग्रहण म किया तब दु:मह नामक किमो नेजस्त्री पद पा उदय पर गिरने से सम्पूर्ण सुखोंकी प्रामि होतो. माधणगे उनको पपनो पलो बना लिया। ये भी पलक्ष्मी है। (ज्योतिष) पर पनुरत थे। ___गमन करसे ममय यह यदि उगे गन्द करें तो दीयान्विता मक्ष्मीपूजा दिन इनकी पूजा करनी वित्तलाभ, पूर्व दिगामे कर तो कार्यमिहि. पग्निकोषमे . पसतो है। सलमी देगी। 0 दलोत. केलेका पेड़। भय, दहिसे पग्निभय, नेतकोषसे प्ठमा भोर म्य ठामसम ( म० पु. ) निम्पयत, नीमका पेड़। गन्धमलिल, उत्तरमे दिय्याङ्गमा तथा ईमान कोपामे गाद । ज्येठाम्य (म० की.) जोष्ठ' सर्व रोगनागित्वा । करे तो मरणका भय होता है। (तिपिता) श्रेष्ठ पम्व. कर्मधा। चावलका धोया हुआ पानो । ज्येष्ठ (म पु०) भाष्ठा मजययुक्ता पोर्णिमामो छ. इमको प्रस्तुन प्रणाली वेद्यक शास्त्र में इस प्रकार लिखो पण डोप च, मा अस्मिन् मामे रति पुनरण। मा है-पक पन चायलको चूर कर उसमें पाठ गुना अधिक विगेषा यह महीना जिसमें जाठा नभवम पूर्णिमाका नम छोड़ दें, पीछे कुछ भाषना दे कर उमे ग्रहण करना चन्द्रमा उदय हो। एम मासमें यदि सूर्य अपरागिर्म रई चाहिये, यह जल मम कामि ग्रहणीय तया विशेष तो उसे मोरज्यैर कहते हैं। सूर्य के अपरागिर्म रहनेमे उपकारी। पतिपदगे ले कर प्रमायम्मा तक चान्ट्रन्येष्ठ माना ज्येष्ठामूलोय (म.पु.) ज्येष्ठा मूनां या नक्षवमहति गया है। इसके पांय-शुक्र और जाप्ठ है। ... पोर्णमास्यति । ज्येष्ठ माम, जेठका महीना। "विदेशतिः पुरुषः पृतीम: समावितः स्यात् यल दीपसूत्रः। ज्येष्ठायम (म.पु.) नोठ पायमो यस्य, बयो। विभिनयुधिषिदुपा वारेष्टो सामियाने जननं हि यम" . गारस्थायमी. द्वितीयायमी, उत्तमायम. रहस्य ।। (फोटोप्रदीप राहण्यायम मम पायमसि धेट है, स्मोनिये रम पायम इस माम मामयका जन्म होनेसे पच यिदेशवामी, पयानम्यो सभीमे उत्तम मान गये। तीशडदिमम्पन, समागुन, 'दोघवी पोर 'येष्ठ ज्येष्ठायमी - (म.पु.) प्रायमोऽस्त्यम्य पायम-नि. शेता है । "ठे मामि मितियतदिने बानयी मर्यो । जाट येष्ठ: पायमो, कर्मधा० । गृही, रहस्य : "पमा प्रयोऽपला भमिणो निनामेन चान्या ज्येष्ठ मामके मानवारको आयो मलं मोक पर । शस्य पार्यौ तस्मात् हामो नही" (मनु ) पाती है। पारी, ग्रहस्य वानप्रम्य और मिनु ये ही घार ज्येष्ठमाम (40 पु.) जाष्ठ माम पधीत यः म . पायम गाम्यामूनक है। जिस तरह चागुका पय इत्य। १ मामभेद । २ सामध्ये ता, सामवेदका नमन फर मध जीव जन्तु प्रापप धारण करते हैं, उन पढ़नेवाला। करम गाईसरायमका पयनन करके पन्द्र मोहिमेय (मनी.) उठाया: जिया: प्रय पायमो का पालन किया जा सकता है। ठक, सनडाच । ज्येष्ठा नोका : पपन्यबड़ी भोको देशो (मो .) गौराष्टित्यात् डीर! पनी मम्साग! " " .. . .