पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७४

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ध्यैठोक्योतिलिङ्ग ६१५ ज्येष्ठो (मस्सी .) ज्येष्ठा नक्षवयुका पौर्णमामोत्वण | ज्योतिरोबर-एक ग्रन्यकर्ता । इनका दूमरा नाम कवि. डीप् च । १ ज्येष्ठ पूर्णिमा, नेठ महीनको पूर्णिमा। शेखर था । ये धोरंगजरके पुत्र तथा रामखरके पोय थे। इम टिम मन्यन्तरा होता है। इस मन्वन्तराम दानादि । इन्होंने पचगायक पोर धुर्त समागम नामक दो ग्रन्योकी करनेसे प्रक्षय फल मिलता है। मन्वन्तरा देखो। . रचना की है। धूतं समागम अन्य कर्णाटक राजा नर. ज्येष्ठेय स्वायें अण, डोप । २. ज्येष्ठी, छिपकनो। मिडके पादेशमे रचा गया था। ज्य हा (म. लो. ) जाप्ठस्य भावः जाप्ठ पञ् । यप्ठत्व, ज्योतिर्गगेजर (म'• पु०) न्योतिर्गपाना सरा, तत् । ययोजाप्ठत्व । ब्राह्मणोंमें जो अधिक जानो है, वे हो। परमेग्जर । म प्रकारको ज्योतियोंमें घे ही एकमात्र अप्ठ है। सवियों में योर्य के अनुसार, वैग्यमि धनधान्य के प्रधान है। उनको क्योतिसे यह ममार प्रकाशित . पनुसार पोर शूमि जन्मके धनुणर जाप्ठत्व होता है। होता है। __(मनु० २।१५५) ज्योतिर्गन्य (म• पु० ) ज्योतिषां ग्रहनक्षबाटोना यन्य:, ज्यो (वि.कि.वि०) १ जिस प्रकार, जैसे, जिमरूपमे ।। तत् । नोतियार । .२ जिम तप, जमे हो। ज्योति ( म० वि०) जोति: जानाति यःमः, अयोति: ज्योक (स.अश्या ) जो उनुन् । १ कालभूयस्य, दोर्च-1-क जोतिर्विद, जोतिए ज्ञाननेयाना । कान। २ प्रग्न. मवाल । १ मोनार्थ, जल्टोक लिये। ज्योतिर्भासमणि (म० ए०) रयिगेप, एक करका जया. ४ मप्रत्यय; धोके निये । ५ उज्वलत्व । ज्योति CEO सो०) १ ति, प्रकाग, उज्वाला। २ अग्नि ज्योति मिन् (म०वि०) प्रकागमय, जगमगाता दुपा। गिखा, लो, लपट । ३ पग्नि, पाग! ४ सूर्य । ५ नक्षत्र । ज्योतिर्मय (स. त्रि०) जोतिरामशः प्राचुर्ये या मण्ट । पाखको पुतलोका यह बिन्दु जो दर्शनका मुख्य साधन । जोखिम्वरूप, जोतिरामक |२नोतिपूर्ण, प्रभागमय है। मेथी। दृष्टि। ८ पग्निष्टोमयकी एक जगमगाता हुआ। संख्याका नाम | १. विष्णुका एक नाम । ज्योतिर देखो। ज्योतिर्मन -नेपाल हे एक राजा । ये जयस्थितिमयो ज्योतिक (संपु.) एक मागका नाम । पुत्र थे। ज्योतिक (हि.पु.) ज्योतिषी देशो। ज्योतिर्मानिन् ( म०पू०) खद्योत, जुगन । ज्योतिरग्र (म. वि. ) ज्योतिः पये यस्य, बहुरो। ज्योतिर्मुख (म पु०) योरामचन्द्रशीके एक पनुचरका पादित्य प्रमुख । ( ३ ) . ज्योतिरनीक (म० वि०) ज्योतिः पनोके यस्य, बायो।। ज्योमिन ता (मो०) जोतिमातीलता, मालक गमी। ज्योतिर्मुल पग्नि । ( सायण ) | ज्योतिर्लिग (मसी.) जयोनिमय नि । १ महादेव, ज्योतिराणा (म.पु.) ज्योतिरामा यस्य, बनी। शिव । सूर्यादि। "पाइयं ज्योतिरामा विषम्हान् ।" (पति) प्रकृति और पुरुषके राष्टिव्यापारम प्रकृत होने पर ज्योतिरिक्ष (म.पु.) ज्योतिया नाति पनि गती घच ।। पुरुष नारायण पोर प्रकृति नारायणो नाममे प्रमित __पयोत. जुगन ! हुई । म नारायवरुप पुरुपके माभिपामे उत्पन होने के ज्योतिरिक्षण (म.पु.) ज्योतिरिव इति माय बाट बधा कि कतव्यविमूढ़ हो माझमें परिभमप करने कोटपिगेप, जुगण । पर्याय-वद्योत, धामोप,तमो. लगे। पोछे नारायणरूप पुरुपने उठ कर फरा-"तुम मणि, दृष्टियन्य, तमोयोतिः, जोसिरिज, मिर्म पक/ जगत्को टिके लिए मेरे शरीरमे उरपय ए हो।" एम. जोतिजि. निम परुक। मे बागान कुन हो कर कहा-"हम कोन हो, तुम्हारा ज्योतिीग (म. पु. ) मोतिया रंग: सत् । १ सय ।। भी कोई एक कर्मा । TR प्रकार यातालाप करतदए २परमेम्पर। । . दोनों में सुर होने मगा : दोनोका विवाद मिटाने के लिए . नाम।