पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७५

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११४ ध्यातिलोंक कामाग्निमा जोमिनिइको ठापति हुई। यह मूर्ति। गंग भी हम मोको परमापके पामे पाग महमा पग्निज्यामामि व्यार है। इनका सय डि. मण्डलमें विचरण करते हैं-भूमि पर मरनों होते। पाति, मध्य पोर पन्त नहीं है, यह पनौपम्य और भगयान् वासुदेयने योगधारमा हराम मोकम दिन पयका मनिपने नानाम्यानेमि उत्पन हो कर जोतिको धारण किया है, कोई कोई उनका विविध पाग्याएं पास को है। (भियपु.) गिरामार पाकार, कल्पना कर मे मा को वर्णन' करते ___वदानाय माहामा जोतिमि जो नाम है | । पर गिरामार कुलीभूत पोर पध:गिगाके मोरे उनको मुचो दो जाती है। प्राकारमें प्रयस्थिति करते हैं। उनके पुकायम भ.स १ मोगर में मोमनाथ । २ योगम पर मविकार्जुन। लार में प्रजापति, इन्द्र और धर्म'; मानो मन । २ उयिनी में महाकाल । ४ नम दातीर (अमरेवरम. 'धाता पोर विधाता या कटिदेश में मतयि विराजित है। पोहार । ५ हिमालय में भेदार | डाकिनीमें भोमगार गिशमारका गरीर ढातापायी कुण्डमीभून पा , • बनारसमें यिगर । ८ गोमतीनोम बायक। उम गरीरके दक्षिण पाल में पभिभित्री से कर पुनयंस चिताभूमिमें संघनाय । १. दाराका नागेगा। पर्यन्त चोदइ तया यामपाम पुथामे उतरापाढ़ा सक ११ मेयरमें गर्मिग । १२ गियालय में धृगार। । चौदर नक्षत्र मनिवेगित है । उन्होंके दाग कुण्ठलाकार गे पोज मिल मभवत: लोग गिवलित होंगे। विम्त त गिरामारके दोनो पार्ज को पपययम या ज्योतिलोक (म' पु०) जोतिमा नोक द तत्। १। ममान दई । मके पठदेगमें प्रजयोथी मया पदरमें कानधनप्रयतं कध लोक। २ उम लोकले अधिपति पाकागगहा प्रयाहिस । परमेश्वर या विष्णु। जोतिकको स्थिति अादि के | पुनर्य सु पोर पुथा ययाकममे गिशमारके दक्षिण पिपयम भागयत इस प्रकार लिया है-मर्पिमण्डलमे | और याम नितम्य पर पार्दा पोरं प्रपा दक्षिणा पोर । तेरह मान योजन दूरपर्ती जो स्थान है, उमीको भगवान याम पादमें पभिजित् पीर उत्तराषामा दक्षिण पौर गाम । योपियाका परमपद या जागतिक कहा जा मकता | नवम तथा धनिष्ठा पोर मुला, दक्षिण पोर धाम में । उत्तानपादो पुव भ ग यम्पास जोपियों के उपजीष्य ययाफमगे मयिबिट है। मघामे ले कर अनुराधा पर्षम को कर पचमक इम म्यान में थाम कर रहे है। पग्नि, दक्षिणायण मम्पन्धौ पाठ नराय उमके यामपार्म को एन्ट्र, प्रजापति, फाश्यप घोर धर्म, उन्हें मग्मानपूर्वक दक्षिण अस्थि तया मृगगिरा प्रादि पूर्व भाद्रपद पंर्यमा यारा . मरगकर उनको प्रदक्षिणा दे रहे हैं। भगवान कान निमेष | यण सम्बन्धी प्रटनमा मकै दत्तिण पायको पमियम शून्य परपुटपगमे जिन ग्रनचा पादिज्योतिर्गणको भ्रमण मयुम । गतभिषा और भाष्ठा यथाक्रममे दशिप करार ; .य, परमग्गाके हार। उनके स्तम्भम्वरूपमें पोर वाम स्कन्ध पर म्यापित १, उम उमर पर गियोजित हो कर निरन्तर प्रफागमान हो रही है। जिम धगम्त्य, पंधर इन पर यम, मुबमें मनन, उपायम गनि, वैन पादि पग कोलामें गुप्त कर मोमे गाम ! पृष्ठदेश पर हस्पति, वयस्यम पर पादित्य, इदरी । सफ भमण करते १. उमो तर मिर्गम म्यान के अनु. 'नागयमा, मनमें पन्द्र, नाभिस्यमा गम, मतममि होगी मार .के भारी पोर (मण्डनामार )भ्रमण करते। परिनीकुमार, प्राण पीर अपान दुध, गम इ. मा. मी सरह नाम प्रायोग मानपके पनन्तर पौर में केतु कया गेममि सारागन मनियमित पाए । यो परिभगिने गानो, भुयायमन कर यायु। भगवान श्रीविगुफा मयं यमया । प्रतिदिन सारा समानित सो कम्पास तक कर मध्याई समय मोतिनोंकका दम कर म यति ज्योतिर्गपी गरि कार्यविनिर्मित में कममहायो याममा करनी चाहिए। मन्च य - ' मे और मेगाति पणी यामुळे यगीभूत धो नभोमगठम। "नमी पोलितों का सामनायपि RETRIE म मम मी ), उसी प्रकार nie- विधीमद।"