पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६७६

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व्यासिविंद--ध्यातिसक । है ज्योर्ति गणक पाययभूत ज्योतिर्लोक ! तू हो काल- गत मोर उमको कामहरि तया सूर्य का उदयास्त होता चकरूयो है, तू ही महापुरुष है। तुम नमस्कार है। है। सूर्य के जिस ममय जहां रहनेमे मध्या होता (भाग० १२५ म.) है, उम ममय उसमे विपरीत दिगामें मममुत्रपात ज्योतिर्विद (म पु०.) जोतिषां मर्यादीनां गत्याटिक । स्थानमि परावि होगी पौर जहां रहनेमे मध्या होता वेत्ति विद किए । जोति:गास्ता, जोतिष जाननेयाना, ! है, उसके दोनों पायस्य स्थान में उटय पोर पम्त होगा: जोतियो ( यान०१।३३) यह उदय पीर पम्त सूर्य के समसूत्रपात म्यानमें मा ज्योतिविद्या(स. स्त्रो०) जोतिया मूर्यग्रहनक्षत्रादीनां करता है। निगायमानके ममय जो पहले पहल सूर्य गन्यादिधानसाधन विद्या, ६ नत् । प्रह, नक्षत्र पौर धूमः । दिग्वनाई देता है, उमको उदय कहते हैं पोर जहां पर्य केतु भादि जोनिःपदार्थका स्वरूप, मञ्चार, परिभ्रमण घट्टष्य होता है, उमको भम्त । परन्तु यथार्थ में सूर्य का काल, ग्रहण और शृंखलादि समस्त घटनापोंका निरूपक | उदय और प्रस्त नहीं होता. सूर्य का दर्शन पोर शाम्त एवं ग्रहनक्षत्रादिको गति, स्थिति पोर मचाग. प्रदर्शन हो उदय और पम्त कहलाता है। मुमार शुभाशम निरूपणविषयक शास्त्र। ___ मूर्य मध्याहमें इन्द्रादि किमोके पुरमें रह कर उम ज्योतिजि (म' की.) जोतिर्यामिवास्य जोतिपो । पुरको, उमको सम्मुपवर्ती दो पुरो, तथा पार्मस्य दो पु. योप्रमिव । खद्योत, जुगनू । को किरणोंसे स्पगं करता है। पग्नि पादि किमो भो न्योतिईम्ता (स• स्त्री०) जोतीरूपं हस्त शरीर यस्याः, | कोणों में रह कर उन कोणे तथा उसके सम्म स्वस्य दो यमी। दुर्गादयो। कोनों पोर उसके मध्यवर्ती दो पुराका किरण द्वारा "हस्तं शर समित्याहस्तम गमनं तथा। स्पर्श करता है। सूर्य उदित हो कर मध्यापना ज्योतिश्च प्रहनक्षत्र ज्योतिहस्ता ततः स्मृताः ॥" वईमान फिरपोंका एवं उसके उपरान्त चीयमान (देवीपुराण ५१.) किरणोंका विस्तार करता है। उदय पोर पम्ती हस्त. गमन, ज्योतिः, यह पौर नक्षत्र जिनका ही पूर्व पोर पपिम दिशाका निराय किया जाता गरोर माना गया है, वे ही जोतिहम्ता है। है पर्थात् नियावसान होने पर जिम दिमाम सूर्य ज्योतिशक (म० की.) जयोतिर्मय' च जोतिर्मि: नक्षत्रे- टिखनाई देता है, उसको पूर्व पोर जिम दिशाम सूर्य घटितं धकया। नभोमण्डलमें स्थित पग्विनी पादि। अदृश्य होता है, उसको पथिम करते हैं। सूर्यास्त नववघटित मेपादि घारह रागियों का एक मगइल। । शेने पर रातिको उसको प्रभा पग्निमें प्रविष्ट होतो. ___ मिपुराप्पमें जोतियक विषय, इस प्रकार लिखा और दिन में पग्निका चतुर्याय सूर्य में प्रवेग फरसाए -भूमिमे एक नाव योजन अचाई पर सूर्य मण्डल मोनिए सूर्य मे पत्यन्त प्रखर किर निकलती है। सूर्य है. उसमे नाख योजन ऊपर चन्द्रमण्डस है और उसमे | सुमेरके दक्षिणमैं गमन करे तो दिनमें पोर उत्तर गमन माख योजन ऊपर नक्षत्रमएम है। नक्षत्रमालमे ! को को गधिको अलमें प्रवेग करता है। रममिण अन्न २ लाख योजन ऊपर शक, राममे २ लाख योजन अपर दिनमें कुछ सामवर्ष पोर रात एकवर्ष दिपाई देता माल, मङ्गलसे २ लाए योजन ऊपर हस्पति, - है। सूर्य अब पुकरहोप प्रथिवीके विगतम भागमें स्पतिमे १ लाख योजन कपर शनि पोर गनिमे १ मा गमन करता है, तम उमको मौतिको गति मारम योजन जपर समपि मण्डल हैं। इसी तरह क्रममे सूर्य, | होनी है। इस प्रकारमे कुमासमा के प्रान्तस्थित अन्सको चन्द्र, मध्य पोर यहगण पपम्यान कर रहे हैं। ममपि भाति भ्रमण करते करते पृथियों के विगम् भाईको महसमे एक साल योजग रूपर ममम्त ज्योतिषकको | शेड़ने पर दिन पोर रावि धोतोपर्यात् एव पक नाभिस्वरुप ४ वमन पवम्याग कर रहा। यहीम, मुहर्त में एक एक पंग करके विंगत् भाग पति- पूर्णवी गमनादि क्रियाएं होती पोर.इसीनिये दिन | क्रमकरने पर एक पहोरात होता है। करंटमें Vol. VIII. 155