पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६८४

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ज्योतिष तैत्तिरीयमंहिताके पढ़नेमे माल म होता है। कालोन प्रयन या पयवा वासम्म विपुषदिनमे प्रारम्भ कि, प्राचीन ममयके वामन्त विपुद्दिन ( हरि होता था, ऐसी कम्पना यारनी झोगो। पयोंकि प्राचीन सानिका ) कत्तिका मक्रमित :या। शतपयवाधणमे | हिन्दू उक्त दो वारम्भपततिम परिचित थे । पयनकालमे (२।१२।१३ ) लिखा है कि, हरितालिकाके माथ ही ] यपंगपना प्रारम्भ होनमे यासन्स पिपुवहिन रेवतोमे २०० धेदिक वर्ष मारम्भ होता था। पीछे जब भारद विपुषः। पीछे पयस्यापित होता है किन्तु यथार्य भवग्यिनियमो हिनमे वर्ष गणना ई, तब प्राचीन और नवीन दोनों नहीं है। इसलिए प्रथम फस्पना पमिह है, द्वितीय करके यर्प पाम पाम लिये जाते थे। अब वामन्त कल्पनाके अनुमार जोतिपिक अवस्थिति ई मे १८०.. विषुवहिन कृत्तिकापुन मक्रमित था, तम यह नशव यप परले सम्भव हो मकती है, किन्तु पन्ततिकाल. पुन विपुवदिनमे वर्षारम्भ करता था, किन्तु प्रयन माध के घटनानिचयके प्रमाणाभावमें द्वितीय मतका ममर्थन माममे गिना जाता था। यह तैत्तिरीयम हिता पौर नहीं किया जा मकता। मीम मदान में स्पष्ट रूपमे लिखा गया है। साधारणतः | ३। यदि गौतायनमें फाला नो पूर्णिमाके दारा को य ममझ मकते हैं कि, पयन के माघ मामसे प्रारम्भ | वर्ष गणना होतो थी, तो ग्रोमायन भी भाद्रपदको पूर्णिमा होने पर विपुयदिन कृत्तिफार्म मक्रमित होगा। में संघटित होता था। वामावमें ऐमा ही होता था, . ऋग्वेटम रिता प्रचार प्रमय कब यामन्त विप.! इमका यथेष्ट प्रमाण है। प्रोमायनको पिरमयन भो यहिन मृगशिम पुञ्ज क्रमितहा था. हम बातको करते हैं। इस प्रयन पाने मान वा पतको पिट प्रमाणित करने के लिए लोकमान्य यालगदाधर तिनकने | अयन वा पिटपक्ष पथया प्रेतायन वा प्रतपच कहते निम्नलिखिम युक्तियों दी हैं- है। हिन्दू लोग अब भो भाद्रपदके क्षणपक्षको मत तिगेयमहिमा ( II) में लिया है कि, पत्र कहते हैं। फाला नो पूर्णिमा ही प प्रारम्भकी सूचना देती है। जब यामम्त विषुवहिन मृगगिराम सक्रमित या, शतपत्रमामण, तेतरीयत्राघाप, गोपपत्राण प्रादि । तय यह नसवपुल पोर छायापय म्वर्ग पोर नाकका अन्यों के पदनमे मान म होता है कि, फाला नो पूर्णचन्द्र | सोमा स्वरूप था। वैदिक ग्रन्यमि म्बर्ग, नरक, देवलोक जिम राखिम उदित होता है, यह नयोन वर्षको प्रथम पोर यमलोक गप्दमे निरमतका उत्तर और दक्षिण रावि है। उममे माल म होता है कि फाला नो पूर्णचन्द्र भागम्य पहातका बोध होता है। प्राकायगा. यम. के उदय-दिममें शीतकालोन पयन संघटत होता था। लोर में कुकरको पस्थिति, वृत्तका मृगाकार धारण २। यह स्पष्ट हो प्रतीत होता है कि, गीतकालीन | इत्यादि प्रसाद जो वैदिककालमे प्रचलित हैं, उनका पयन फाणा मी पूर्णचन्द्रोदय के दिन मघटित होनमे | पनुधावन करनेमे मालूम घोमा ६ कि, यामना यिपुद्दिन धाममा विपुहिन पवश्य हो मगगिगपुग्नमें संक्रमित | मृगशिरामें प्रवस्थित था। उस समय लोगोको एमा होता है पपायणो शपद मृगशिरा पर्यायवाची रुपमे विधाम छा पौर उस विग्जाम के पनुमगर हो उन मोगाने ष्यात हो सकता है। पाणिमिमें भी इस गप्दका! इस तरह के रूपकाकार प्रयाद पलाये थे। प। 'मृगशिरापुरे हागही यप को सूचना ५। हिन्दू पोर पोकोंके अनेक प्रयोतिपिक पवा में, होती थो, पम शातको प्रमाणित करने के लिए नोये दो। बोर सो क्या पनेक मानवादि नाममि परम्पर .. माहग्य कारपोश में किया जाता - - - पाया आता है। योगोंका Orion शम्द हिन्दुपोंमे लिया (क) चन्द्रमाग नववर्ष सूचित होता था ऐसा पनुः गया है एमा प्राम पड़ता । अटार कहते है,.योकोंने मान करने पर पपहायणी गन्द व्यारणानुमार मृगा। यह सप्द इनिपयामियोंगे नहीं लिया Orion मम्द पन गिरापुन पर्यायाचोरुपम य स नहीं होमकता। यन (अग्रहायग्य ) मदका पमझग, पपवा Oress (ग) पन्द्रमाग वर्ष रचित होने पर, या यौत- मोमा तया Aion = शाम या वर्ष, इन दो गदौसे Vol. III. 157