पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६८६

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ज्योतिष गिमाता रमकान गिना जाता था । ऋग्वेदमें निवा! अयन अवधारित एमा या, परवर्ती प्रन्यकारीने उमका कि, प्रति प्राचोनकाल में प्रोष्ठपदमे विद्यागिक्षाशाल मंगोधन किया था। पोत लेकगण करते हैं कि. प्रारम्भ होता था। पीछे नतवादिको गतिक द्वारा उन- हत्तिका वर्ष पारम्भ होता है। मभवतः परियोधमके को स्थितिमें कुछ परिवर्तन हो जानेमे ऋतु प्रादिमें भी । ममय जत्तिकाको पस्थिति उस प्रकारको सो यो। प्रोफे- भेद हो गया है। प्रग्वेदके परयर्तो वैदिक ग्रन्य नक्षत्र ! मर जैकोशे कहते हैं कि, सूर्यमिहान्तामुमार मिथि . मण्डलोममे कृत्तिका का नाम पहले वर्णित है। किन्तु टनो (Mr. Whitnos)को गणनामे मासूम होता है कि, किमो किमो ग्रन्थों में वैनघण्य देखा जाता है। कोपीतकि- मे २५०० वर्ष पहने थामत यिषुवहिन लतिका पौर ग्रामाणमें कहा गया है कि उत्तरफला, दारा वर्षका मुख | योमायन मघा मक्रमित था। पोर पूर्व फला, बारा पुच्छ बननी है। तत्तिरोयनाघ्रण से १४१५ मताप्दो पह के जोतिपयन्याम पयन. शो टीका पूर्व फलानो वर्ष को जघय रात्रि और निहारण के भनेक उम्मेख मिलते हैं। येदिका ग्रन्याम उत्तरफलागी प्रथम रावि कही गई है। इससे अनुमान जिस प्रकारमे प्रयन प्रयधारित हुए हैं, सम्भवतः उम किया जा मकता है कि पति प्राचीनकालमें अयन उत्तर ममय से हो थे । नक्षत्रमाला अनुसार गणना करनेमे फला नीको वेद कर मञ्चालित होता था। माग्नुम होता कि. काग्वेदमें जिस प्रकारके पयनों का ____ यदिक प्रन्यों के पढ़नेमे मालूम होता. कि वर्षगणना | उख है. ये ई मे ४५०० वर्ष पहने निर्णीत हुए थे। करने के लिए पानक्रममे भित्र भित्र नाम व्ययवत हुए थे। । हिना-ज्योतिषका येशिध-हिन्दू सभ्यताको शैशव अपस्या ते सिरीयम हिताम हियर्प का उम्मेख मिलता है। यह | में हिन्दूमाधकगण प्रत्येक नागरिकको ऐहिक राशि पर्य यर्याय के ६ मास पाले गोतायनमे पारम्भ होता | विशिष्ट समझते थे। इसी विश्वास पर हिन्दू जयोसिपको था। ऋग्वेदमें जगह जगह वर्ष गव्दके पटले | भित्ति प्रतिष्ठित है। उनको धारणा यो कि परमधने गारद गदका उम्मे व पाया जाता है। यह गारदय प्रत्येक जमिकको ऐहिक गुणान्वित करके भेजा, गारट विपुदिन पधया पर्णिमा कानमे ही गिना जाता | जिसके द्वारा ये विश्व के मभो कार्याक नियन्ता यम बैठे था. इसमें कुछ भी मन्देह नहीं। ग्रोमायन उत्तरफल्गुनी | है। इमलिए यदि यसको मम्यक्रोतिमे समझमा १, पोर गीतायन पूर्वभाद्रपदमें मंक्रमित होने पर भारद तो उनको गतिका पर्यवेक्षण तथा समय पोर शरा 'विपुहिम मूलाम पोर यासन्त विपुष इन मृगशिराम विभागाको गाना करना पायवक । इस सरह 'पवस्थापित होता है। इस गणना के अनुसार मूना प्रथम प्रथम युगकै हिन्दु जोतिषियों को प्रधान प्रयय टुपा- नशता है और एमके नाम भी उल पर्य ध्यता होता है। नमोमाइल के चिोंको एक मठ, शाण्या कर धर्मा. येष्ठा गैप नसाय है, का प्राचीन नाम ज्ये छत्री (को गुष्ठानका समय निहारण करना । भारतीय जोतिष किन मधवम वर्ष शेप होसा) या पिन्टुपों को निशस्य मम्पत्ति है, किन्तु पायान्यगए इस • गारदपर्व के प्रथम मासका नाम है पग्रहायण । यह विद्याको उधार सो दुई धतमाते है। प्रसपप इस मुगिगका पर्यायवाची शब्द है. इसको पूर्णिमा मृग विपयमें यहां कुछ पालोचना की जातो। गिरा नक्षयम होती है। उम ममय मगगिरा कहने ___गर्य-मिडासमें 'मय' मामका रहममे महुममे पासन्त पिपुवहिनका बोध मा था. इनिए यह लेखकोंम मममनो फैल गई। . निरित है कि गारद पूर्णिमा ममकम नसतमें दोती थी | वेवर माहयका करना है कि हिन्दुपका 'मय' सया प्रथम मामका नाम माग गिरा था। ग्रोको लिमय'का ( Ptolemiis ) मम्मत पायाद ___कमगः पातुमा परिवर्तन पांथा। पाबंद शिम | माय है। और सीमे मन्दमि पनुमान किया कि प्रकार पर्व विभाग देखने में पाता. पोहे वह सिर्फ 1 हिन्दू-मोतिष पोकमोतिषका पिगेप पामारी या पाचो गराराधमाके लिए व्यवान होता था। शादमें जमा है। हम इस जगह पर मिल करेंगे कि पद धारण