पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/६८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ज्योतिष - ६२९ किमो विदेशी ग्रन्यका पनुयाद नहीं है ।" . इतिहाममें विशेष उमेजयोग्य घटना है। भाको हो ___हिन्दू-मयोतिषके द्वितीय भागमे पर्यात् सिहान्तके मतादाम प्रधगुम मौजूद थे। पृथियो किमी पाधार युगमे गणित मोतिपको विशेष उन्नति हुई थी। तस्का पर को नहीं है चोर पो पर गोनाकार को कर भी लीन जोतिपको विधारपदति इतमो प्रधान्त पोर पृथिवोवामियोंको ममसन मातम पड़तो है; इम वातका विज्ञान सम्मत है कि म य मानिक युगके जयोनिविदा मनमे पहले पार्यभट पोर उनके बाद यानगुमने युधि गप भी रचयिता कह कर उनको पात्मपरिचय देनमें हारा समझने का प्रयय किया था परन्तु ग्रीक जोतिप. गौरव समझते हैं। उस ममयके मिहान्तों में ब्राह्मसिदान्त, । में इमका कुछ भी वर्णन नहीं है। प्रागुमका कहना म र्य मिदान्त पौर मिशाल गिरोमणि ये तीन मिहान्त' है, कि "पृथिवो व्योममगइनमें अपनी गति यसमे हो आधुनिक हिन्दू-जयोतिषियोंको पादरको वन हैं। निराधार अवस्थित है। कारण, पृथियोका यदि पाधार इनके रचनाकाल के विषय में पायात्य विज्ञानौम मतभेद होता, तो उम पाधारका भी प्राधार होगा जरूरी है। पाया जाता है। इस तरह वेवन पाधारके बाद प्राधार ही पनगा रहेगा ___ जयोतिष-म मारमें पार्यभटके पाविर्भायमे हिन्दुपोंके | उसका अन्त नदो हो मकना । पाखिरको यदि स्वशक्ति गणित जोतिपके एक नये युगको सूचना हुई है। वलमे अवस्थित मान कर पाधारक समावकी ही वस्तुतः ब्राह्मगुम पीर अन्यान्य परवर्ती लेखकोंगे बहुत | कल्पना करनी है, तो पहलेमे हो क्यों न को प्राय ! नगा अपने मतके परिपोषपके लिये आर्यभटको रचना क्यों न पृथियोको निराधार माना जाय ! पृथिवी उहत की है। प्रधगुपकी रचनामे मान म होता है अपनी पाक गतिको महायतामे निकटवर्ती यसमारमें कि भारतमें मबसे पहले पाय भटने ही यह स्थिति किया अवस्थित गुरु दृश्यको पपने केन्द्रको पोर पाकर्पित था कि, पृथ्वी के परिभ्रमणके हारा नयन पोर ग्रहका करती है और इस कारण यह गिरती हुई मानम पड़ती उदयास्त होता है। प्रध्यगुणके टीकाकार पृथ्दक स्वामी है। किन्तु अनन्त व्योममगइम्त के मध्य या कहा जा बारा उडन निम्नलिखित श्लोकसे स्पट मान म होता कर गिरंगो । गून्यसा मझो दिगाम ममान पोर पनन्त है कि पार्यभटमें पृथ्यो की गति निरूपिन की घो।। है। पृथियो यदि गिरतो हो रहती. तो पृथिवोमे छपर- "भूपधरः स्पिरो रेवायसायलाप्रतिदैव गिगे। को पोर फेको एरं यन (पाथर पादि) प्रवर्तक अंग उदयास्तमयो सम्पादयति नक्षत्रपहाणाम् ।" ( Projective foree) के समान हो जाने पर, फिर नचत्रमण्डल स्थिर है, केवल पृथियोकी पाहत्ति या परि- पृधियी पर नहीं गिरतो। कारण, दोनों हो नीचेकी भ्रमण धारा पहनशवका प्रात्यक्षिक उदयास्त होता है।। तरफ गिर रही है। हममें यह नहीं कहा 1 मकता पापात्य, भूमिसमें कोपरनिकाम्ने हो सबमे पहले कि प्रस्तावको गमि पधिक होनमे यह थियो पर पृथियोको गतिको विषयम म्पट भाषा प्रकट किया। गिर पड़ता है। क्योंकि पृथिवीका गुरुत्व बहुत है पौर या-पियागोरसने रमका सरतमाव किया था। मौलिए ठमको गति भो बात तंज है। पार्यभटने कोपरनिकमका पाविर्भाप १५वीं साम्दोके गेप ! एक स्थान पर निना है- भागमें पाया | किन्न पार्यभट के 'पाय मिहान्स' 'यह दापमापा प्रचित: ममत: मुमः। नामक पदमै रमका मेख है। • ४०५ में पाय, तहिदि मयंसहयः उसः स्यवदन भूगोत". भट सावित थे। यमुतः यहो. पनुमान मद्रम प्रतीत मार्य भटने रम यातका भो निदंग किया है कि होता कि हिन्दुपोंका या मिहाताषण पीक पृथियो यो मममम प्रतीत होतो। मे- देयके पास:मनिम प्रवाहसे मयादित हो कर यरोपम | "मो यत: स्पाररिपः शतांग: पीच मी नितीमार पेगवती सोसलतोरुपमै परिणत एपा। नाहत पृयुमनस पस्ना समेव तम्य प्रतिमारपत: " .. पायभट बाद अगुभका पाविभाव जयोतिपमान थियी पत यही है और मनुष्य समयो गुमनाम Vol. VIII. 150