पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७

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जन्द-प्रवस्ता मानो थे विराट, ममारोहसे प्रसारोहणपूर्वक सैनाके । दहिनी पोरसे पढ़ी जाती है। यह पहले पहल किन . साथ प्रतिज्ञामना करनेवालोंको दण्ड देने जा रहे हैं। ये ] अक्षरों में लिखा गया था, इसका कुछ भी पता नहीं । कविताएं पौराणिक रीतिमे लिखो गई है। फुछ उप | चलता। देश गायद जरथुस्तके पूर्ववर्ती ऋषियों में लिया गया | वेद और भवस्ता -पृथिवी पर येद और अषस्ता है। फाटुंगिक "शाहनामा" के साथ मिला कर पढ़नेसे | इन दो महाग्रन्योंने भार्य जातिकी दो शाखाओंक उसका वास्तविक पर्य ज्ञात होता है, क्योंकि "भाइ-! धर्म निरूपण कर महागौरवमय स्थान पाया है। इन नामा"में उक्त विषयका बहुत कुछ वर्णन है। दोनों ग्रंथोंका एक साथ मनन करनेसे मालम हो जाता (ड) गोणांश-इनमें न्यायोगका नाम उल्लेखयोग्य है कि दोनों में बहुत कुछ सादृश्य है। इस साम्यहमे यह है। इनमें सूर्य, चन्द्र, जल, अग्नि, खुरशेद, मिल, मा, 'भो अनुमान होता है कि किसी समय-जव पारसी अयि सूर मोर अतसको स्तुतिया है। ये खोरदाद ! लोग और हमारे पुरखा एक साथ रहते थे-म दोनों . अयस्ता अन्त है। योका प्रारम्भ एक साथ ही हुमा होगा। प्रब इम (च) पन्दिदाद- अर्थात् असुरों के विरुधानोति । उक्त दोनोग्रंथों के उस सादृश्यको दिखलाते है जिसने प्रथमतः जन्दमवस्ताके उग्रोस नस्को पुनको स्थान सबसे पहले इस ओर दृष्टि आकर्षित की है। . मिला था। इनमें बहुतमो रचना परवती कालको हैं । १॥ देवताओं के नाम-येद चौर अयस्ता दोनों (छ) उपारोत ग्रन्थों के सिवा कुछ विच्छिाश भो ग्रंथो में "देव" और "अमर" शयद व्यवहत हुपा है। यह है। पायी भाषाके बहुतसे गन्यों में इसकी कविताएं तो सभी जानते हैं कि वेदमें देव शब्द द्वारा अमरलोक उचत की गई हैं। वासियों का निर्देश किया गया है। किन्तु पाचर्य का जन्दअवस्ताका जितना घंश प्रोग हुपा है, उनमें | विषय है कि पवस्तामें प्रारम्भसे अन्त पर्यन्त दुष्ट धर्मानुष्ठानका ही उपदेश अधिक है। धर्मानुष्ठान पर प्राप्पियों को देय कहा गया है और माधुनिक फारसी लोगों की अधिक यदा होने के कारण यह अंश बड़ो। साहित्यमें भी देयका वहो पय समझा जाता है । हिफाजतसे रक्डा गया था। यूरोपीय लोग जिसको Devil वा तान करते हैं और अयस्ताका समय --हले जो निहास लिखा गया है, . हम जिसको असर कहते हैं, अयस्ता उसीको देव उसीसे मानम हो जाता है कि पयताके एक एक पंश | कहा गया है। प्रवस्ताके देव सम्म णं अनिष्टों के भित्र भित्र समयमें रचे गये थे। इसके पूर्व २८०० से मूल कारण है, ये हो पृथियो पर अपवित्रता पौर मृत्यु ३०५ वर्ष के भीतर पर्यात् तीन हजार वर्ष तक प्रवस्ता.| संघटन करा रहे हैं। वे सर्वदा सो चिन्तामे मग्न के शादि लिखे गये है, यही वर्तमान विहानीका रहते हैं शस्यक्षेत्र, फलवान वक्ष, धर्मामाके निवासस्थान सिहास है। पादिका नाश किस तरह हो। हमारे यहां जिम भाषा-पवम्ता जिम मापा लिखा गया है, प्रकार प्रेतों का निवास दुर्गन्धपूरित स्यामों में कहा गया उमे "अषम्तोय" भाषा कहते हैं। इसके माय संस्कृत, है, उसी प्रकार ज़न्दपवस्ताम देवों का यासस्थान कदर्य. भाषाका निकट सम्बन्ध है । संस्कृत माय इसके मीमा. स्थाममें बतलाया गया है। दृश्य पावित होने के यादमे तुलनात्मक भापासवकी ____हमारे वैदिक धर्म का नाम देय-धर्म है और पारसि. प्रानोधमा करनेका मार्ग सुगम हो गया है। यों के ज़न्दपयस्तोय धर्मका नाम 'पार-धम्। पर पसमाकी भाषामे दोमकारका भेद देखने में पाता है। शब्द उनके प्रधान देवता अंदुर मगदा नामका प्रघमाग माघोन गाणपोको पापा दूसरे को दंगकी है पोर है। इस सदमे ये अपने भगवान और उनके अंगादिका परय भाषा तूमरे टंगको। पूर्वोत पंग पद्य और निदग करते हैं। हमारे पौराणिक साहित्य, पसर पोल गरें निखे गये हैं। पवम्ताको लिखावट गन्दका प्रयोग पुरके लिए किया गया है, फिना मग्वेद