पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७०२

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पर कि. प्रलोक प्राणी किसी न किसी ममय रोगाकान्त मात्तिक पादि नाममे प्रमिह है। यह प्रायः प्रापियों के करता है। जगदातर मनुको ही अधिक रोगग्रस्त | जन्म और मृत्यु के समय परोरमें प्रवेग करता है, मलिए पाया जाता है निमोको बहुत गोर मिोको एक रोग इमको रोगीका राना कहा जा मकता है। देवता ने पोदिन देना जाता है। फनतः कोई भी मनुष्य | पौर मनुष्य के सिवा इसका प्रभाव कोई भी मह नहीं सुम्य गरीर हो कर नहीं रहने पाता, इसीलिए प्राचीन मकता। मानवगण कर्म फलहारा देवत्व प्राम करते पगिहनों ने कहा है-"शरीरं प्याधिमन्दिरम् । व्याधिक | हैं और कर्म फल जय हो जाने पर पुनः स्वर्गात हो दो भेद-एक गारोरिक शाधि पोर दूपरी मानमिक। कर पृषियो पर जन्म लेते है। देहम देवमागके रहनेमे गरौ रक प्यारि पाग्नेय, गोम और पायथ इन तोन | हो मनुष्य चरके प्रतापको ६६ मते पन्याय भामि तग म नमित व्याधि राजम और सामम इन दो तियं क्योनिजात प्राणी वर निरतिपय विपन को - भागों में विभक्त है। निदान, पूरूप, लिगा, उार पौर| जाते हैं। मम्प्राप्ति हारा व्याधि का ज्ञान होता है। माधारणतः इरिव में बाकी उत्पत्तिका वर्णन म प्रकार निखा रोग के तीन कारण समझे जाते है-इन्द्रियाय कम पोर है। महादेवने वापराजाके लिए 'या' भामक एक काल । इनके प्रतियोग. प्रयोग मोर मिथायोगमे रोगको योहाको सटि को थो। वासुदेव कणके पोव पनिमा उत्पत्ति होती है किन्तु समयमे श्ययन होने से शरीर जब वाण द्वारा प्रवरूह हुए सो योलणने पतराम पोर गुम्य । तन्दुरुस्त ) रहता है । पूर्वोक्त गारोगिक प्रद्युम्न माय उनके सहारार्य गमन किया। इस पर पौर मानमिक गैगों के मिवा पर एक प्रकारका रोग है, दानयाधिपति वापसे माय उनका भयहर युर पा। जिमे पागन्तुक कही है। गोग्देवम उत्पन गेमी युदमे देयमेनाने नितान्त निपीड़ित पोर व्यथित हो कर का नाम शारीषिक : भूम, विप. यायु. पग्नि और महा| भागनेको तैयारियों को कि, उसने कालान्तक महम गदिशनिस रोग नाम पागन्तुज तथा प्रिययनको | | भीषणमूत्ति वर भस्मारत ने कर ममरभूमिमें पयतो पमामि पोर अप्रिय वस्तुको प्रानिमे उत्पन रोगका नाम | हुपा। ज्वरके तोन पर, तोग मस्तक, छह मुभाएं पौर मामिक है। मी पाईयों। मका कण्ठस्तर महसमस्र धनगजित. मनुष्य जादातर ज्यासे पीड़ित होते हैं तया प्रन्यान्य ! के महश था, यह जवदो जल्दी दीर्घनिवास से रहा था, रोगोंमे पीड़ित पोनिका भी मूल कारण या है। शरीर बीच बीच मुवयादान कर सम्भण कर रहा था. इसका रोग पहने स्वर होता है। पर होनेके पपात् RE | गरीर निद्रा पोर पालस्यमे भरा पा था, इमको पाने फमगः कठिन होता एमा प्रन्यान्य रोग उत्पय करता] मुखमण्डलको ममाकुन कर रही थीं। इसकी देच है। यर गरोरम विशेष विशेष पोड़ा उत्पन करता है, रोमाञ्चित, पामें ममो और पित्तचिम ममान था 10 मलिए म I नाम वा है। वर अगदाण, बहु | बरने रपयेवमें प्रवेश कर वनरामको पराजित कर दिया वोडापनश पोदुपिकस्य है, पौर कोई भी रोग | पौर फिर वह क्षणमे मड़ने सगा। योगमे परका यसनीय प्राणियों का पापनाशक: देश, रनिया भयर इन्स्युर होने लगा। बहुत देर तक होते और ममरे लिए ममापोत्पादक : पमा वन, वर्ष पर रहने के बाद बोहराने ध्वरको मरा जान जग होछठा उसारको मिथिन करनेवाला है। वरमे गर्गरम | कर जमोन पर मारना चाहा, त्यो हो पर पति पेदम, काशि, परमार, धम. मोर पोर पाहारमै पक्षि पपस्या योहण गरीरमें घुस गया। फिर बोहरा प्रो.आती। प्रायोगप वर माघ की उत्पय जग्में धरवियोने के कारण रोमाघ. अमन, गामः ६ ते ९.पोर पराभिभूत हो कर ही मन मुगुमने पलन, पानस्य पोर निद्रावेश होने लगा । योलणने भाव कहानि ,बर मय मेगावागा, मद्रकोप नसागर लोग नितान्त पायनिक नामा मभस पोर सर्व लोकमतापक है। ज्यर यातिक, मानेसे रोगी के शरीर परस्पा को दो भाटी है। Vol. VIII.161