पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नक्षण है। वर चढ़ने पर किसी तरह का कष्ट न होता | दोपदारा अभ्यन्तरस्य जठराग्नि वितिर हो कर. मारे सो, ऐमे माघो ममारमें नहीं है। . . गरोग्में व्याम हो जातो है। इसमे पाकम्पनीमें स्थित ___ माधारणतः स्वरोत्पत्तिका कारण दो प्रकारका है रसकै रुक जानेमे मारा शरीर गरम हो जाता पोर एक सामान्य और टूमग प्रधान । वापित प्रादिके लिए | मान में एक माय पमोना यूटना बंद हो जाता है। प्रकोपजनक पाहार विहार प्रादि हो मामान्य कारण पसीनका रुकना, गरीर गरम हो जाना पोर तमाम ६ तथा जन्न, वायु, देशकास प्रादिका दूषण हो जाना गरोरमें जड़ता वा वेदना होना ये मव एक ममय हो, प्रधान कारण है। तो उमको ज्वर कहा जा सकता है । वायु. पित्त मा शारीरिक यातपित्तादि तथा मानमिक रज पोर इनमें से एक एक पृथकभाषमे प्रयाटो या तोनके एक तमः दोप बरको प्रकृति है। केमा भी पर क्यों न हो, माघ दूषित होने पर तथा पागन्तुज कारणमे जर दोपके मसबके बिना यह कभी भी मनुष्योंके गरोरमें उत्पन होता है । वर पाठ प्रकारका है. जेम--यातिका, प्रवेश नहीं कर मकता। पैत्तिक, ये मिक, वातत्तिक, वासभिक, पिन भिक, प्राचीन पण्डितनेि कहा है कि, यह ज्वर ही चय, माविपातिक पोर पागन्तुक । पामा भौर मृत्य है तथा दुक्षतिमे हमको उत्पत्ति घरकम हिसाम लिवा इ. पाठ प्रकार के कारणों से होती है। मनुष्योंको ज्वर होता है, जमे-वायु, पित्त, कफ, पातपित्त, मुगुनम हिताम लिखा है कि, ब्बर पाठ प्रकारका पित्तभा. यातग्नेमा, यातपित्तयमा घोर पागनाक। . है जो विविध कारणाम उत्पन्न होता है। मघ दोप मक्षगुणविगिट यन. नए व. गीसन यस परियम, अपने अपने ममयमें और अपने अपने प्रकोपके कारण । वमन, विरेचन पोर पास्यापन (निकसवस्ति ) पाटिके कुपित हो कर मम्म शरीरमें व्याम हो कर स्वर उत्पय। अत्यन्त उपयोगमे और मनमूवाटिके येगको रोकनेमे करते हैं। दोप प्रपद पपने हेरा दाग कुपित हो कर तया उपयाम, पभिधान, नीममर्ग, उहेग, गोक, गोषित पामाशयम जा कर अपनो गरमी के जरिये रमधासमें माय, राविजागरण, पिपरोत भाषमे यरोर घेपणा, पायय नेते है। इन कुपित दोपों पोर रम द्वारा खेद नो पातिगय्यमे घायु पकुपित हो जाती है। पोई उम पौर सवाझो गिरायोंके मागके कक जाने पर अठराग्नि | प्रफुपित यायु पामागय में पविट होनेमे भुक्तद्रव्य (परि- मन्द हो जाती है। दोपों के प्रकोपकान में जब वह पग्नि, पाक होने के कारण) मल पोर ध तुको प्रम होता, पाकस्यमीमे बाहर निकल कर ममत गरोरम घ्याम | फिर वह पायु रम पोर मेटवर प्रोतःममूहको पाच्छा. कोसो १, म वा पाता है। पर क्रमश: बढ़ता हो दित एवं पकाग्निको मन्द कर पातागयमे धमाको भाता है, जिसमें त्वक, मूत्र और पुरीप पाटि दोपके बाहर ले पाती है पोर गारमें ध्यान होती है। इस पनुमार-विषर्ण हो जाते हैं। समय वालवाका पाविर्भाव होता है। मिप्या पाहार विहार या नेहादि क्रियाके हारा, यातना होनमे निम्ननिपिन मा प्रकट होते हैं। पभिधात पा पन्य फिमो रोगोस्पषिके कारण या शरीर | सानप गारीरिक प्रभावकी तमा नाग पोर फोड़े पकने पर पपया यम, सय, पनीर्णता या किमो मल निकमत मध्य विषमता होतो । प्रायः पाधारको सरक विपके हारा, प्रथया पत्यन्त पाहारादिकं या! मम्प ण जोगांवम्याम, दिवम पन्समें पौर. पधिकांग माझे विपर्णय कारण या पोषध या. पुष्पगन्ध रूपमे यांगसुम प ध्यरका पागमन अथवा भिरि फारण, भोक नक्षोड़ा. पभिधार का पभिगाप अद्यया दुपा करती । मा विरोप प्रकारमे मन, मयन, काल्पमित पदाकै कारण या मृतषमा पा जोयित मारा, मूग, पुरोप और मर्म में पन्यना कठोरता पोर वमा सियों स्तन्यायसरपने ममय परिवार के कागद परुषरता देपर्ने पातो।। धातु कुपित होती है, तया भारत विश्वगामो थेगवान् गरम नाना प्रकार झिट भाव तानामा प्रशार: