पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७०८

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ज्वर ६४० दिवारान भीतर दीपममूह देह एक स्थानमे अन्य | गुरुटीप रमवाहो स्रोतदारा मम्म रमें प्याम स्थान, गमनपुर्वक पन्तमें पामागय पाया ले कर हो कर मन्ततचा उत्पन परत है। मनात न्यर नवचर चर प्रकट करते है, प्रलपक परम धासु गोपित होतो की तरह दोधमानम्यायो पोर रहमांमगत होता है। है। दोपोंकि दो, तीन या चार फफस्थानों को प्रायय पन्य ध क बर मांगत, एतीयक स्वर मेदगत पोर करने पर विपर्यय नामक कष्टमाध्य विषमन्बर उत्पत्र चाराय क बर मन्ना पीर अस्थिगत । य पर पति होता है। भयानक है। भूताभिषण अन्य स्वरको भी कोई कार - कोई कोई कहते हैं कि, विषमज्वर म्वभावत: या ! विषमजर करती है। मात दिन, दा दिन वा मारह दिन करता है। कुछ भी हो भय, गोक, क्रोध या पाघात | तानो वा रश्ता है, हमको सिलचर करते है। प्राटि किमी प्रकार के याच कारणमे मचित टोपोरे कुपित, मतलकबर दिन गत ती धार चटता। पन्य। होने पर विषमज्वरका प्रारम्भ होता है। तीयक और घ.फ मतिदिन एक वार, रतीय कवर पति टमोय दिन चातुर्थक वर. वायुकी अधिकताम नया उत्पातिक पीर में एक वार तथा धाक ज्या प्रति घसुध' दामें मद्यमम्भ न स्वर पित्तजन्य हुमा करता है। प्रकट होता है। टोपधेगके उदयकान ना प्रकट होता भाधान वासने पामे प्रलेपक वर होता है। वीरगंगको निमृत्ति होने पर ज्वर देहम मामाभावमे मुच्छकि प्रधान होने पर मिम विषमन्वरका उदय । ति रसा। पशवा दोपोंका परिपाक की निमें होता है, वह प्रायः दो दोषोंमे उत्पन्न होता है। म उत्पन्न होता है। एकवारगो स्वर छूट जाता है। शरीर प.धात पादि किमी किमी ज्वरको प्रथम दशा यायु पीर मा याच कारणमे जो ज्वर उत्पन्न होता है. उसको पभिः हारा गोत प्रकट होता है, उनकी शान्ति होनमे ज्वरके घातजन्य ज्वर कहते हैं। दो माय: वातपित्तका पन्त पित्त के कारण टार उत्पन्न होता है। किमो स्वरम प्रायम्प होता है। यम, क्षय पीर पभिघातके कारण AF को पित्त हारा दाह और प्रसामे यायु पोरोमा यायु कुपित हो पर ममस्त गोरफो पायय से पर गर्व कारण शीत होता है। ये दो प्रकारके व्यर इन्दम उत्पन करती है। मानेपमें यह कहा जा सकता था. के कारण उत्पन्न होते हैं। इनमेमे दाहपूर्वक स्वर फिमो भी प्रकारका यर वो न हो. उममें यात. for पत्यन्त कष्टसाध्य है। पौर ने माममें एक या दो दोष नसण पयग्य प्रकट दिन-रातके भीतर क्षो छ दीपीका ममय कहा गया होंगे। है, उन दोपकि ममयम जो ज्वर होता है, यह बर दोपरि झोनमध्य या अधिक हुनि पर ध्यरका धेग महजम नहीं करता : म कारण रमको भी विषमन्चर भी व्याकममे तीन दिन, मान दिन या चार दिन तीय- कहते हैं। वेगकी गालि होने पर वर छूट गया है- तामे रहता है। ये नोनी सरहके सीप उतरोत्तर कट. ऐमा मानम पड़ता है, किन्तु उस ममय उसके धात्वन्तर माया मनोन रहने के कारण मुमताप्रयुक्त उपलब्धि नहीं होती। बर मागेर पीर मानमो भेटमे, मोम्य पोर पाग्ने चरमुख यति गरम्य पन्यदीप पहिताचारदारा बढ़ या भेदम, पम्तवेग योर वहिवंग मंदमे तया माध कर रिमी एक धातका पायय में विषमवर उत्पन घोर घमाध्य के मैदमे दो प्रकारका है। दोष पोर काम घरमा बनायनई पशुमार मन्तम, मतना पन्याफ, रसायक • याक एक दिन पर हो कर दिन मर और चातुर्य क भेदमे पाच प्रकारका रमरमादिधातु रहता है, विश्यमे एक दिन मग्न रहर दो दिन पर रहमा समूह पायय भेदम माम प्रचारका नया पातपित्तादि है । पक राके मौसर दो भार प्रकट होता पोर पागज कारणभेदमे पाठ प्रकारका है। दोबारमग्न होता है ! रितु सततक विपर्यय दिनरात 1 मिपा सर पर पा, गुइन भोपिला माना। - - -