पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७१०

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६९ तरुण ज्वरमें उपवास, स्वेटक्रिया. यवागू पाहार | कराना साहिये। वायुजन्य पोर पयजन्य माममिक तथा जन और मण्डादिक माय तितरम पिनानेमे पपक्ष तया हिवतीय उपर महान कराना उचित नहीं है। रसका परिपाक होता है। कभी सिर्फ वमन, कमो मि उपयाम पोर कभी वमन ____ वातजनित, कफजनित तथा पात और कफ दोनोंम | और उपवाम दोनों नरिये दोपों का सय कर पाका उत्पन्न नवीन ज्वरम प्याम नगर्नेमे गरम पानी देना उद्रेक होने पर विवेषमापूर्वक इनका पारा। (पप) पाहिये । हमरे पित्त मौर मद्यपान जनित रोगोंम तिश देना विधेय है। प्रथमतः मट, पीछेय, फिर विनेपो पदार्थ के माथ पानी खोना कर ठण्टा होने पर देना, टेना चाहिए ना तक जारका मृदुभाय न हो. पथवा चाहिये। प्रर्योता दोनों ही प्रकारका जन्न पग्निदीपक, ना तक ज्वरम दिन कह दिम छोत न आ4, तब पामपाचक, ज्यग्न, स्रोत गोधक तथा रुचि पोर तक यवागू पाटि शो हितकर पाय है। मदालय रोगी धर्मजना है। का ज्यर, मद्यपायो व्यमिका ज्वर, मद्यपानजनित सर, सकणचरम पिपासा पोर बरकी गान्ति के लिए योमकालीन ज्वर, वित्तकफाधिक्य या पोर कर्डग रमा. मोथा. क्षेत्रपर्पटी, उगोर (म), लालचन्दन, वाला पोर पितरोगों के स्वर के लिए यवागू हानिकारक है। मोठ इन काढ़ा पिनाना चाहिये। महत्यय रोगो पाटिक यरमें रहने किमिम, दाहिम यदि रोगी पामागयम्य दोपोम कफको अधिकता पादि ज्वरन फलों के रमके माय धानका मावा (पोम मान्न म पड़े और ऐमा मान म पड़े कि यमनका उदग कर या उपयुब मधुपर शरा मिला कर बिमामा होनी या टोप अपने पाप निकाल जायगा, तो वमन चारिये। इम पाहारका माम तर्पण। तर्पण शीर्ण फारक पोपट दे कर, ज्यर मून दोपको निकाल देना होने पर साम्य पोर बल पनुमार मूगका पमन्ना चाहिये। अन्यथा तरणम्यरमें रोगीको यत्नपूर्वक वमन जम पयवा मांरम माय मोसम योग्यशाम्तमें पत्र प्रदान कराना उचित नहीं है। कारण, यानपूर्वक यमन कराने करते है। में अमध दरोग, पाम, मानाप्रपोर मोघ उपस्थित हो तमका रम रोगों में जमा लगा रहे, मकता है। उममे विपरीत रमयुल नया मनोज इधको गामाशे पन. ____शिकिरमा-ज्वरके पूर्व कपके प्रकट होने पर वायुः भागमे (नयममे ) दम्तमान पोर राज कर पुनः पुनः सोनमे र तपान, वित्तजन्य होनेमे घिी- मन चानन (कमा करना चाहिये। म प्रामे एम पौर कफजन्य झोनमे मृदु-समन कराना विधेय दाकि धनिमे मुषका येरस्य दूर होता है तया पय और दोषजन्य परम सिग्ध क्रिया या वमन मिरेपानको भिमापा पोर रमको पमिनमा उत्पन होतो धन फराकी जरूरत नहीं पहन कराना पाहियो रोगीको मात दिन इनका भोजन कर कर हम घर नलगा मम म्पट प्रकट हो, तर नान कराना हो दूमरे दिम पालन वा गमन-पाय विमामा चाहिये। जिमकरहे। दोपोंकी पामागय स्थिति होने पर कारगत र कपायरम मेवन करनी टोप तय पानको रक्षा होने पर नमन कराना हो मममे अंगा। को मात । नया उन दोपोंचा परिपाक न शर्मिक कारण । तर जरा भी दोपहे. तब तक उपवाम | देवा कार मिषमावर उत्पन शरीर । परम कफ. गुरा मा पूर्वका मतियाय सम्मन, रिक्तजन्य र को मन्दता तथा वातपितको पधिमा पोर दोपचा मेह भोर फरकार भन्नो अधिगमी है। । परिपाक होनमे घी पोना भूचित। किन्तु दम दिन जियो परिदे श स (ARI) से प्रार, समको संपन हो जाने पर भी यदि शफको पशिजता या नामा है। माएक मारा था नदी मंपन म पन्ना कम मदीपे. सोमो मतों पोमा पारिय। ऐमी सपास, निसान म, नमन, रेपन मा न हो। दमाम कवाय राय शमसेरमै माता गदोप, शामिल है।शस्ति पुष्टिहर बैठे पनमें पारित है। तब तक मामसमई मार पप दिया जाता है। पोदर Vol. VIII. 163