पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७२५

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दर उम्भिागमे पूर्णतया गायनमको रोके, तो उममे मने ! मलेरियामै उत्पन्न बर माधारणतः दो भागम । रिया उत्पन्न होता है। । विभत है-३ मविराम चर( Interinittunt fever) ३. डा. स्मिय (Dr. Smith) करने है कि मिहो । चौर २ स्वल्पविराम जुर ( Remitrent fever) जितनी पार्द्र योगो तया पाईना जितनी ऊपरको ____ मविरम शुर-इसको पर्याय जर या जो चढ़ गौ मलेरिया विषका उतना ही पाभिषय होगा। मकता है। यह र सम्पर्णतः विगत होता; जम्की ४डा पोन्डनम ( oultant का कहना है कि, विरमावस्या में रोगो पपनेको मुख्य समझता है। गोतनताका महमा प्राविर्भाव की मलेरियाका प्रधान जरका कारण दो प्रकारका है-एक पूर्ववर्ती पोर यारत है। जिम जगह महमा उत्तापका हास होगा, दूमरा उहीपक। यह निमय ते मारिया उत्पन्न होगा। (क) अतिरिका परियम, राविजागरण, अधिक ५ । डा. मूर ( Dr. Moor ) ने स्थिर किया है कि. सुरापान, अत्यन्त स्त्रोममर्ग इत्यादि । (ख) रसको उद्भिविगलित जन पोनेके मलेरिया जनित पोड़ा उत्पन्न | प्रविशवायस्या; (ग) प्रस्वाभाविकरूपमे शारीरिक उत्ताप. होती है। का झाम । ये हो इस पोड़ाके पूर्ववर्ती कारण है। "मलेरिया" एक इटलीका गद है ; जिसका पर्य है दुर्मिच, अधिक अङ्गार ( Carbon ) वा अगइनाम दूषित वायु । निम्नलिखित उपायों का अवलम्बन करनेसे । ( Albumen ) मिथित खाद्यादि भक्षण. उद्विजादि इम विपके हायरी कुछ छुटकारा मिल सकता है। विगलित जलका पोना, उत्तर पूर्यदिगाको वायुशा मेवन (क) रहने के मकान के चारों तरफको मोरियां साफ, ग्रादि दम जुरके उद्दीपक कारण है। रखना पौर जिसमे तालाब का पानो पत्तों पादिक सड़ते लक्षण-इस जुरकी तोन प्रयस्थाएं होती है, जैसे- ... रहनेमे बिगड़ न जारा, उसका खयाल राखना चाहिये। शैत्यावस्था, उत्तापावस्या और धर्मावस्था । प्रथमतः पुनः (प) अग्नि और धुएं के जरिये मलेरियामा जहर पुनः जमाई पा कर जाड़ा मालूम पड़ता है, पोछे त्व नट होता है। पाकुञ्चित हो कर कम्म उपस्थित होता है। इम ममय (ग) मकान चारों पोर पढ़ रहनसे उममे दूपित / मम्तक घेदना, विवमिवा वा वमन होता रहता वायु परिशद होतो है। है तथा धमनो के पाकुचनके कारण नाड़ी येगवतो पौर (a) दिनको अपेक्षा रातको मलेरियाका विप! सूवयत् जीण हो जातो है। यह प्रयम्या माध घण्टे मे वायुझे साय ज्यादा मिलता है इस कारण रातको जहां तोन घण्टे तक रह कर हितोयावस्यामें अपनीत. होतो तक धन कपडे मे नाक बन्द करके धरमे बाहर जाना है। उस समय शारीरिक शीतलता विदुरित को कर चाहिये। शरद ऋतुम तोरण धूप और हेमन्तके दुष्ट गिशिर गरीरका चमड़ा उत्तम, शुक पोर उपा मालूम पड़ने लगता ध्यररोगोके लिए मर्वतोभावसे परित्यज्य हैं। | है। नाड़ी स्थ न पोर चूर्ण वेगवतो हो जाती है। मस्तक (ड) सुबह कहीं जाना हो तो मुंह धोने के उपरान्त | को पोड़ा बढ़ कर पांवोंको लान कर देती है पीर कुछ खा कर जाना चाहिये। अत्यन्त पिपासा लगतो तथा पेशाव थोड़ा होता है। . (६) हमारे देश में विशेषतः बङ्गालमें वर्षा के बादमे / हनीयावस्थाके प्रारम्भ होनेमे पहले ज्वर मग्न हो जाता . ले कर पाध अगहन तफ इम रोगका अत्यन्त पधिक | है; चक्ष पदाटि उणु और सन स्थानों में व्याला उत्पन प्रादुर्भाव होता है। स ममय, मयको मावधानोमे | होती है तथा याम-प्रवास शीघ्र शीघ्र होने लगता , रहना चाहिये तया सपर्पटी, गुनच भादि तिम पदा है। इस तरह मामय रागोका शरीर स्वाभाविक पव. घोंको पोषधयो भाति व्यवहार करना उचित है। हिम्न स्थाको पाम होता है । रोगो यदि पहले से ही दूर्वन को 'मोनिका, परवनको पत्तो प्रादि तरकारी माय पानेमे | यया प्राचीन हो, तो कभी कभी बरके ममय बेहोग विशेष उपकार होता है। | हो जाता है। प्रलाप, उदरस्फीति पादि पयमादके लक्षध