पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७३६

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१०६ गम नहीं होता गिरोरके पाभ्यन्तरिक यन्स जिमसे मट । पुनः वे दीपन मगरी। ये घट ५ दिन सक म होने यावें, उसका ध्यान रखें। जो लोग हम रोग | रहते हैं। प्रथम पारम्भ होने के बाद प्रतिदिन प्रपया दो अधिक दिन तक हैरान हो कर मरत है, उन पिण्ड, दिम पर नवीन उद्वेद होते हैं। साधारणत: उदर पोठ कीर मामाकावरण चर्म में बहुत पतनी रकाम्य पौर यसकोटरमें रुघा पोठ पर द देवा आता है। सायी एक यम् पधिया अम आती है। किसी फिमी | रोगी ममम पोर पसुदंग दिन के भीतर उनको उत्पत्ति प्यति ममाझावरण में क्षत होमा है। डा० विमान होतो है । ३४ ममाह तक इस व्यरका ग रहता पर करते हैं. इस वुवारनायविक मन्यामक कारण, माधारणत: ३. दिन रमझा विशाम होते देखा नाता रोगी प्राणन्याग करता है। है। पान्त्रिक परम नाहोको मेमिक झिनी और घन्द्र धान्त्रिकन्वर (Typhoid ferer)-यर न्चर झिमोको यन्थियों में पोड़ा होती है। भी महमा पाक्रमण नहीं करता। गेगोको पहले मस्तक यह मर मातातिक होने पर पच पोर मामिका वेदना, हाथ परोमि पटकन, पग्निमान्य और कुछ कुछ ; स्राव, परिपुमलिका प्रमारित पोर गॅपमागर्म दरमे गीतका पनुभय होता है । इम पोदाकी प्रथमायस्याम | मी रममाव होता। पारोप्योम, पोड़ाम रितोय पेटको पीड़ा होती है। धीर धोरे रोगीकी नादी चीण, मया गपभागर्म व्यर, उदरामय इत्यादिका काम गरीर उण, जिया गुफ पीर लाल हो जाती है। दो | हो प्राता है. जिता परिप्तार, सुपाहि, गारिका पहर को स्वरया प्रकोप और टूमरे दिन उमका कुछ नाम | वेदनाका उपगम नया रासको वाभाविक निद्रा पाने होते देगा शाता । रोगी पहले रातको दो एक मृदु | लगती है। इस रोगके बढ़ने पर तापमानयना. प्रताप यकमा एक करता है, धीरे धोरे पर दिन रात का प्रयोग कर मयंदा रोगीके गरोरई उत्तापको प्रताप यका करता है। जिल्हा क्रमगः उन्नत रावण । पगंधा करते रहना चाहिये। पारोरिक उताप ... पौर फटीमी दोषती है नया दातामें काई मो जम जाती डियो ऊपर हो तो रोगों के सोने के पामा मरी करनी है। पोट फट कर जून याने मगता है। गरीरका पत्यमा चाहिये । ममाताप यदमेमे फेफड़े में राधिका की छत्ताप पोर पतीसार रम पौड़ाका प्रधान मयण मकता , उमनियारण मिए पोपटका प्रयोग करना स्वरका धेग सन्ध्या प्रारंभमें पोर रातको बढ़ता विधेय है।म घरमै पधिक दम्त ने कारण पामो सया मात:कागको घटता है। प्रतीमार होने पर सामान्य कभी घौर्य समाहमें पत्रों के भोसर प्रदार पोर त पोदाम भी ७८ यार हो होतो है, किना पोड़ा गुरु- ना। ऐसा होने पर रोगो माविपातिक पमध्याम तर सोनमे २५१३. चार भी दम्त दुपा करता है। पतित होता फिर समई मीनको सामानों की गेगोका मत सरन पोर पोना होता है नया कुछ देर ना मफती। कभी कभी गैगोई मूवागय पोर निवासी राम किसो पाम सपनेमे यह दो भाग िविभाळ को कार्यकारिता नट आता है। ऐमो दगार्म रोगोषी जाता 8-मोघे मार पोर परसरमा पेशाब करने या दोमनेको महिनही रहो। माधि व नालीशा पैग दत, गरी काम याम्पिक पर मकाम रोता। पर रोगी बाद कई ग मामाद प्रतिध्वनि, पदा-गरमें मा. पुरोपमै मझामकीन रहते । पसरव रोगो हिस पाता. पवमाद पाटि मतप प्रकट होते। रम! पापमं ममन्याग कर पौर प्रिम म्यानमै पर फेंका पाय, समें गत्यु होने मध्यान्तवय पन्यि पोर प्रोहाविधि! उम पार पौर म्यानका हार घरमा सिमों। दिम जादि देपन पाए। मगेगीको पयमावणाम पनि गदविरोधक पोप रमजा जो पहोता है, उमझा पणभाग प्रयोग को ना माती है। मम्मि निम रह गुम पाया ममाम नहीं होता. अम्फि गोम सोमा: मम गुरु पौषध पाता हो, भाविक दामनेगे दमामा होनात है. पर दार उठा पा घरमं घमा बार मतों किया ना सकता। Vol. VIII. 109 .. ..