पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७४६

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पवर ६८१ विषय है कि, एम मोरितम्बाका पाक्रम मृटु होने पर मोहित-धरा माधारपस: नियनिगिन पोषधको उदरोरोग प्रकट होता पोर प्रबल होने पर उगेगेग | व्ययम्या को जाती है। पाय बोतन पानी में एक शाम नी छोमा । १ग व्यरको शालिके उपरान्त अब म सन | chbrate of nota.h मिना कर प्रति दिन पाधा या वानर का गनन शुरू होता है, तय रोगो को धारर गेम दोसन पानो रोगोको पिलाना चाहिये। २, घोड़ो. न जाने देना चाहिये। रोगीका गरोर सण्डा न होने की chrine पानी मा मिना र.रोज पायो पाये. उम नरफ मयान पना चाहिये। योतन पिन्ना। ३, Reci-tea, nine पाटि माय ५ ___मोहित स्वर पन्चान्य धर्म पुप्पिकारोगको सरह वर- म carironate of anmonia मिला कर प्रतिदिन प्यापी को कर प्रकागित सोमाया , रोग कभी मृद सोन वार मेवन करमें देखें। घोर कभी कठोर भाप धारण करता। उपमर्ग के प्रति पित्तो करने के बाद मोहित व्याक माय रोमासो व्यर. दृष्टि रम्य कर हम रोगकी चिकित्सा करनी चानिये। माल का बहुत कुछ मोमाइटिगोचर होतााम घरक मोहित वा ( S. simuler ) में गेगोको घरमे बाहर भावी फन्तका निर्णय करना बहुत कठिन है।म रोग जाने देना, प्रध्या उमको किमो तरहका उसजक पवा को मशामक गतिशिम पवस्याम प्रकटिम होती है, देना उचित नहीं । रोगो ना कोठवड न होने पाये -दम। उसका पान तक भी मनो भाति मिर्गय नहीं हो पाया धान का ध्यान रखना चाझिये। हितोय प्रकार के नोहित है।रोगो घरके मामान पोर यपादिम मोहिम पर ज्या गावचम हो तो गोतन प्रथया उरण जलका विषका बहुत दिनों तक मम्पन्ध रहता। डा. वाट. प्रयोग किया जा मसता है। यदि ज्वरका येग प्रवन्न हो। म्न ( Dr. Watson ) कहते हैं, कि, एक वर्ष बाद पार रोगी अनाप पफना रहे.तो कदेगमें ओक नगाना एक पनानेलमे विपन मंक्रामित होकर फिमो याति. चाहिये, रोगी यलिष्ठ हो तो हायमे रक्तमोक्षण करना| कोपोड़ित कर दिया था। चाहिये । मम्त कम किमी तरसका भयावह उपमर्ग विद्या पयचर (Hoctre fever) यावर पसकिनभायमे प्रकट मान न हो मो citraty of ammonin और carbon- हो कर बहुत दिनों तक उतरता मासको गति तंग ate of aminonin ए माय मिना कर रोगो को देखें | | दुपार, गाम पोर भोजनके बाद व्यरके बेगको हति. तथा जिसमे गेगोको गेज एक वार या दो बार टम्त | हाय परौतन बहुत गरम तया नामें धर्म पोर पाये, उसके लिए मृदु विरेण पोषधको व्यवस्था करें।। दरामय प्रकट होता है। हम रोग रोगो समग य. मांघानिक ज्वरम, दो कारगाम विपद हो मकती है। को प्राम होता रहता है। बहुतमे पिकिमकोका पयाम भोर पोर यायिक झिभियोम मंझामक विष प्रविष्ट हो कि, यह वा दुर्य नसा पोर प्रदाहअमित पथमा कर पम प्रदेगीपिस कर देता है। योभे धर्म या कारण उत्पन होता है। कोई कोशि . सदर, गरचतमे को गेगो पयमय हो जाता है। इस अवस्या | दरोग पोर टिम गेग माघ यग्वरका ममम । rine पोर hak iधिक पिनाना चाहिये । शगोंके य-कामरोग भी एमको उत्पति होतो. माधारणत: मनोधारमें (Hinre.)- महासत होकर पीर धीरे पूयमचय, स. दस दिनों का प्रदाय, शिमी परप.

  • मासमोरको विषाव कर देता है । म पयस्याम ] यधम पदार, गारोरिक झिलियाम किमी तरक्षा परि.

विपि पावभाग गय quinine प्रयया rice पनि पादिरम रोग कारप। मेम करावे | chlorite of O माय nitratri समस्याको प्रथमावस्याम गरीर पाण्ड, पोर जोप, of wilver fममा कर पाया कालिमकमापन पदार्य दुपहर पीर गामशे माड़ी पति वेगवतो, मामान्य परि. दागरोगीको कुना कम । यदि रोगो कुना करनम, यममे माड़ो पति हन पोर गायम पति सहजाता चममय हो तो पूत्र यी नामा र ममो. । ज्यरका वेग पहिने पहमपात कम बदता - पाम प्रविष्ट करा। कि मामको तब भाता है। रोगी स्वरमे पहले Vol. VIu. In