पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७६

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७२ जयशलमेर ( जैसलमेर) कर बहुतसा धन सञ्चय किया था। पञ्चनदकी एक राज. ' पुरका पुनः संस्कार कराया था। चोहिरके दो पुत्र ये कन्याके साथ इनका विवाह हुआ था। | कोला और गिरिराज। इन दोनोंने कोलागिर और बयरने तूर्ण देवो के स्मरणार्थ तर्णोतगढ़ बनवाया ! गिराजधिर नाममे दो नगरों को स्थापना को यो । अमन के था। यह गढ़ पूरा बन भी न पाया था कि, मध्यम- चार पुत्र थे-देवतिह, वियलि, भवानी ओर रकेचो। रावको मृत्यु हो गई। देवसिइके वंशधर "रेवरी" अर्थात् उष्ट्रपालका और रेके तर्णीतगढ़ वराह-सम्प्रदाय के अधिकारको सीमा पर | चोक वंशधर इस समय भोसवाल नामसे प्रसिद्ध हैं। बना था, इसीलिए वराहसर तीत्ने उस पर आक्र. राजा तप को विजयसेनी देवोको सहायतासे गुम मण किया। किन्तु रामा केय रके प्रयत्नसे उन्हें पीठ धन प्राहा हुअा, जिमसे उन्होंने विजयनोत् नामका एक दिखा कर भाग जाना पड़ा। बहुत उमदा किला बनवाया और ८१० मवत्के मार्ग - वि० स० ७८७ माघमासमें मङ्गलवारके दिन राजा. शो मासमें, रोहिणी नक्ष में उस दुर्ग में विजयवासिनी केय स्ने तर्ण माताजे उपनक्षमें एक मन्दिर बनवाया। नामक देवोकी म ति स्थापित को। इन्होंने ८० वर्ष फिर वराह राजपतों के साथ मन्धि हुई। दूसो समय राध्य किया था। मलराजको कन्याके साथ वराह-सर्दारका विवाह हो ८७० संवमें विजयगय मिहासन पर बैठे। उन्होंने गया। । राजपद प्राह कर अपने विरणात वराहोको पर्ण रूपसे मद्विजातिके इतिहास के रका सबसे अधिक सम्मान | परास्त किया। है। बहुतों के मतमे केयरका पूर्ववर्ती इतिहास अधिः भूतवनको राजकन्याके साथ विजयरायका विवाह कांश उपाख्यानम लक है, इन केय रसे ही यथार्य इति । हुआ था। ८९३ मवतमें उनके गर्भसे देवगज नामक हासका प्रारम्भ है। एक पुत्रने जन्म लिया । कुछ दिन बाद वराह और केय रके पांच पुत्र थे-तर्ण, उतिराय, धनर, काफरी लगाहा जातिने फिर मधिराजके विरुद्ध अम्बधारण किया । और दायम। इन पांचोंके वंशधरों के नामानुमार माहि किन्तु इस बार भो उन्हें परास्त हो कर नोट जाना पड़ा। जातिको प्रधान शाखाओं का नामकरण हुआ है। थोड़े दिन बाद वराहपतिने विजयरायके पुत्रके माध कैय रके बाद तर्ण राजा हुए। उन्होंने वराह और अपनी कन्याका विवाह करनेके बहानसे नारियल मुलतानका लङ्गाहा राज्य अधिकार किया। किन्त शीघ्र भेजा । विजयराय अपने प्रियपुत्र देवराज का विवाद हो हुसेनगाह म्लेच्छधर्मावलम्बो लङ्गाहाराजपत, दूदित करने के लिए वराइराजाम भाये। यहां वराहपतिके मिति, कुकुर, मोगला जोहिया, योध और सैयद सेनाओं के पड्यन्वये राजा विजयराज और उनके पाठ सौ जाति- साथ तण के विरुद्ध युद्ध करने के लिए आ पहुंचे। उस कुटुम्ब मारे गये। देवराजने वराहपतिके पुरोहितके समय वराह सर्दार भो म्लेच्छ राजाके साथ मिल गये।। घर भाग कर अपने प्राण बचाये। यहां उनके चिरशत तण के पुत्र विजयरायको पराकमसे सभी परास्त हुए और वराहगण उन्हींके अनुवर्ती हुए थे । धार्मिक पुरोहितने पोठ दिखा कर भाग गये। तर्ण के विजयराय, मकर, जब देखा कि राजकुमारकी रक्षा करना अब मुगकिस जयतुगा, पनन और राक्षम ये पांच पुत्र थे। है, तब उन्होंने अपना यमस व उन्हें दे दिया और मकरके पुत्र देशावने अपने नाममे एक बड़ा इद! उनके साथ एक पानमें भोजन करने लगे। इस तरह सुदाया था। मकरके वगधर मभी सूत्रधार थे, जो इस देवराजके प्राण बचे ! समय "मकर सूतार" कहलाते हैं। जयतुनके रतनसिंह। वराहोंने तर्घात अधिशार कर लिया । कुछ दिनों के और चोहिर ये दो पुत्र थे । रतनसिंहने विध्वस्त विक्रम लिए महिजातिका नाम तक इतिहाससे विलुप्त हो गया।

    • इस राजपूतशाखाका इस समय चिन्हमान भी नहीं है। देवराजने कुछ दिन छद्मवेशी एक योगो प्राथमने

महुत दिनोंसे ये मुसलमान हो गये हैं। घराहमें ही बिताये और फिर वे भूतवनमें मामाके या