पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६८३ पर ' पोपियम्-पतिगय सम्दा, यमन, नामकर, मनाप, । मलिन, बैठने हो पियमिपा पो पसन्य, निक्षमताको चक्षु उमोलन। पभिनापा, प्रत्यमा उत्तमना। रम्टमर-पित्त घोर रणवर्ण पीर प्रतिगय फगढ़ पवाम्फा - गर भन्या गोमन, मूबका पभाय, यनयुः, तन्द्रा, मनाप, जिवाफा पग्रभाग रतवर्ण, पयन्त। अपमाट। जरबैग चौर स्थिरता, मन्धिस्यानाम घेदना, मयं टा. कागारिम - गातार पैगाय करने को कहा. पम्सगे म्यानपरियर्तत । माय, यशोगो। मनफार-ममम्त गरीर उज्जयन राहय, प्रत्यन्त । पारगट नाइट-दुर्गन्धक मन पोर पर वमन । कण्डयन, चीत्कार, उनम्फना (अन्य पोषधीमे पागम, पानिक-घा कोटग्गर, नामिका पूमायत, न हो तब यह पोषध काम, मानो चाहिये ) सापूर्वक धमन. पांग चोर लगाया पदार्थ वमन, जिन्क-मस्तिकमै पासव पापप, वालक गैगीको सदा प्रत्यना दात, पतिगय विमा. गीध पक्षमा. महोगी, मर्याद्गमें फहकन, दात किडकिड़ाना, निद्राकानमें, पन्यन्त पधमता पौर नयभय। चीत्कार, नाड़ी दुत, चतु म्यिर, गगैर वरफ लेमा ठा। कार्या मंभि-(पावणा ) मुगा पापा, माप, मोहित वरके प्रभावकाम्नमें देने होना' व्ययहार प्रपन गिर:पोड़ा, गरम भारीपन, वायुनी , करमे हमके पाक्रमणमे पुटकारा मिल सकता है। मिस्त पदार्य में पत्यन्त दुर्गन्ध। नानी और मकामापर ट्रम्पका रसज्ञाम करना चाहिये। कोटनाम-पत, मामिका, मुष्प. सदर पोर पम्तमे रोगीको प्रथक घरमै रणे । घरमें विराड याय प्रवेग बसाय, निदा पारस और मझोत, गंध मनयुह । कर मके पौर रोगीकी गय्या माफ रहे-मका तजाम | पिकास पविराम विमिया, उदरामय, फैना. करना चाहिए। युमा मन्न। उजनी मटन के लिए गरीर पर नारियनका सेन । ____ माकिमरियम-यमा धर्मम्मतिनिकी हानि, (Cocon.butter) लगाये । ममान जन और निमारिन् । भमि.वित वीर मा यमन, उदरामय । (Glycerino ) मेवन करनेमे पयवा गर्ने गरम अंद। ___नमभोमिका-शरोर पीतवर्ण, दोधनमाप, परत या पुल्टिग प्रयोग करनेमे गले में मशित मा स्थाना । पोर पिसमय दृश्य यमग. उदर मशेष, जिदा एक सरित होता है। पोर रायप। १५-पाक्रमण प्रकोपर्क ममय दूध, परफ, मा कुनै म- व्यर-विच्छटका ममय प्रस्ट होने पर घर. मम्तरहका रस रस्यादि। विधाजन पिना। मुराबीर्य स्थय । मम्पन्धीय उ पदा म्याग देना चाहिये। सदर टाट एम-विवमिया या यमन, पक्षमाद, पति- काम भ्यतीत होने पर जम, परे फम पादिशी व्यवस्था रिज गीतन घमं. माड़ी दुम और हत, सन्या, मग. धीमा मकती है। त्यागधा। पीतभ्यर। ____भराट् पार-मुपपीनाम या मम गोलम पर्म, एकोमार-गीर गुफ पोर उग्य, पत्त्यन्त विदामा ! पित्त यमन, दरामय प्रिपामा पार गीतन पानीयसी और शिरःपोमा, मि, पर कठोरगत, पिा पोर पभिलाषा. पत्रादुर्वमता, प्रग्या मदोप, माशा अंभावमम। म्पन्दन प्राय: बोध । यो प्रमि मिग दि रगतो मेडीगा--रिपोड़ा, पत्थन प्राप. जिता मान! पापिये। प्रथमावस्याम घोड़ा पार पाने में लिए और ममी, पोउ पोर मषदा पाटि पानाम मोर पोर पिर अन. चाग, ममा रम, पारपसा पामोदर। पंदना दिला जाप, दुनिता। मग दुप माम, पादि । मारपोनिया- जनभागRIT R' या पियर ( Sretra frror:- Vol.VIII.IN - - - - ---