पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७२ जयशलमेर ( नैसम्मेर) पहुंचे। यहां उनको दुःखिनो मातासे मैंट हुई। दोनों | मरुराजाका नाम जयगलमेर पड़ा है। जयगालके बाद के पासुनौसे दोनोंकी छाती भीग गई, इस पर उनको । इम में और भी बहुतसे वोर पुरुषों ने जन्म लिया माताने कहा- था जो सर्वदा युद्धविग्रह और लूट करनेमें मत्त रहते ___ "जिस तरह यह अय नीर विगलित हुया है, उसी थे। इसी कारण १२६५ ई० में महिगए दिल्ली के बादशाह तरह तुम्हारे शत्र कुलका पिलगित होगा।" अलाउद्दोनके विरागभाजन हो गये थे । बादशाहने बहुत मामाके घर भी वोरयर देवराजको अधीनता अच्चो | सौ सेना भेज कर जयगलमेर दुर्गः पौर नगर पर कमा न लगो, उन्होंने एक ग्राम मांगा ! परन्तु उन्हें मरुभूमिके कर लिया। इसके बाद कुछ दिन यह नगर मनुष्य हीन . : बीच एक बहुत छोटा स्थान मिला। व ०८ सवत्में हो गया था। यदुवंशीय राजारोंने बार बार पराजित भाटन दुर्ग निर्माता केकय नामक शिल्पीको महायतासे | होने पर भी मुमतमानों को अधीनता स्वीकार न को : उन्होंने अपने नामसे एक दुर्ग बनवाया, जिसका नाम थी। रावल सवलसिंहने हो नबसे पहले शाहजहाँको : रक्खा देवगढ़ वा देवरावल । अधीनता स्वीकार को भोर वे दिलोके एक सामन्त· ... दुर्ग-निर्माणका समाचार पाते ही भूतराजने भानजेके राज कहलाये । उम ममय भी जयगलमेर राज्य शतट्ठ विरुद्ध मेना भेज दी। परन्त देवराजने कोशल मेना. नदी तक विस्टत था। १७६२ ई में जब मूलराजका नायकों को दुगैमें ले जा कर मार डाला। राज्याभिषेक हुना, तभोसे जयशलमेरका सुखसूर्य प्रस्ता. ऐमा प्रवाद है कि, जब देवराज वारहराजामें | चलगामी हो गया। इसके बहुतमे स्थान जोधपुर और योगौके पायसमें रहते थे तब एक दिन योगीको योकानेर राजाके अन्तभुत हो गये। अनुपस्थितिम उनके रसकुमासे एक बूद रम तल | मरुमय होने के कारण हो इस राजा पर दुन्ति । पारमें पड जानसे वह मोनेकी हो गई । यह| महाराष्ट्र-दस्य भो को दृष्टि नहीं पड़ोथो। देख कर देवराजने उम रसको ले लिया । उसी. | १८१८ ई० १२ दिसम्बर को जो सन्धि हु, हटिग की सहायतासे उन्होंने दुर्ग बनवाया था । एक गवर्नमेण्टने राजाको वंशपरम्परानुगत गजा करनेका दिन उम योगीन पा कर देवराजसे कहा-"तुमने अधिकार दिया । १८२०३०में मलराजको मृत्यु के पशाम मर. योगसाधनसा धन चुराया है । यदि तुम मेरे चेला । पाज तक जयगलमेरमें कोई गड़बड़ नहीं हुई। १८२६ को जानो, तो तुम बच जानोगे, नहीं तो जानमे भी। ईमें बीकानरको फोजने नयथलमेर अाक्रमण किया, हाथ धोना पड़ेगा। देवराज उसी समय योगीके शिष्य परन्त हटिय गयन मेण्ट और उदयपुर महाराणाके बोच गन गये धौर गेल्या वसन, कानम मुद्रा, कटि पर कीपोन | पड़नसे झगड़ा मिट गया। १८४४ ई. में इसके कई एवंहाध कुम्हड़े का खोपड़ ले कर 'मन्तख' 'पलख' | किले अङ्गारेजीने वापस दे दिये । मूलराजके बाद उनके . कहते हए अपने प्राति कुटम्गोंके हारी पर फिरने लगे। पुत्र गजसिंह राजा हुए ओर १८४६ ई में उनका देहान्त । उनके हाथका खोपड़ा सोने और मोतियो से भर गया हो गया। उनको विधवा महिपोने गजसिंहके भोजे । था। रणजितसिंहको गोद सखा । १८६४ ई में रणजिसिंह. . देवराजने राय उपाधि छोड़ कर रावल' उपाधि ) को मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई वैरिशालको और ग्रहण की। योगोधी प्रादेशानुसार प्रब भो जग्गालमेरके | उनके पोछे अयाहिरमिको महारावलका पद .. प्रधिपति "रायल" उपाधि ग्रहण करते है पोर राजपा मिला (१)। भिपेस समय देवराजको तर भेप धारण करते हैं। (१)रावल देवराज से लगा. जिन जिन व्यक्तियों ने जय. दयराज पक्षम्तन पठ पुरुपका नाम था जयगान ।। शतमेका राज्य किया है, उनके नाम नीचे लिखे जाते है,- रघोंने पपने नामामुसार जयगलमेर दुर्ग श्री नगर देवराज स्थापित कर वहां राजधानो नियत की थी। तभोसे एम. २ मा चामुन्ट। .. . . . av "