पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८

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मन्द-मवस्ता संहितामे प्रसंर शब्द प्रेश सा-वाचकको भांति व्यवहत ! पितरों का प्रधान बतलाया गया है। . हुआ है। इसमें इन्द्र (जून १५॥३) वरूध, (१५ वैदिक देव भागका ज.न्दप्रवस्तामें वध · नामसे १९१४ ),अग्नि ( प १५०३ पो. ०२३), सावित्री ! उल्लेख किया गया है, ऐसा पनुमान किया जाता है। (. अन् । ११३५० ), रुद्र ( माहू ५।२।११ ) प्रादि हिन्द वेदमें परमतो नामको एक देवोका उख है (पर पो के परम पूजनीय देवतापो का असुर नामसे उल्लेख. १९३॥२१ चौ१९४५ ) जम्दअवस्तामें वर्णित कर उनका बहुत कुछ सम्मान किया गया है। परमतो मम्भवतः वे ही देवी ोगी। वेदमें लिखा है ऋग्वेदके प्रथमांगमें सिर्फ दो जगह पर शब्द मिन्दावाचो कि वायुने सबसे पहले सोम पिया था। ज.न्दप्रवस्ता, 'भावसे व्यवद्रत हुपा है।( सर्व २॥३और 0120) वयु नामक देवदूतको सर्वत्र भ्रमण करनेवाला बतलाया ऐसी दशा में यह प्रतीत होता है कि प्रति प्राचीन कालमें । है। वैदिक "वहा" शब्दसे इन्द्रका निर्देश होता है। । दोनो ही जातियों असर शब्दका प्रयोग मदर्थ में । उता शब्दका रूप भावस्तिक "वरेघन" शब्दमें पाया जाता करती थीं। है जो पारसी धर्मके भगवान के अनुचर हैं। वेदमें ३३ वेद और ज़न्दअवस्ता दोनों ही प्रायोंमें देवो के साथ देवताओंका सनई, इमो प्रकार नन्दप्रवस्तामें भी असुरों के युद्धका विवरण पाया जाता है। हां, इतना | भगवान्के ३३ अनुचरों पर मज ट्-प्रवर्तित सत्यधर्मको अवश्य है कि ऋग्वेदके सिवा अन्य तीनों वेदो में देवों को रक्षाका भार दिया गया है। हो पूज्य और असुरों को मानवजातिका ग माना गया । वेद और ज.न्द पवस्तामें सिर्फ देवो के नामों में हो है। यजुर्वेदमें कुछ पासरी छन्द है, जैसेगायत्री/ सहगता हो, ऐमा नहीं। कुछ उपाख्यानों में भी माहस्य पासुरी, उष्णिा पासुरी और पशि पासुरी। इस प्रकार पाया जाता है। वैदिक 'यम' और अ.न्दप्रवस्ताक 'यिम' आसुरी छन्द वेदोंमें अन्यत्र कहीं भी नहीं है परन्तु की पाख्यायिकामें इतनी सदृशता पाई जाती है कि जन्दप्रयताको गाथाए पासुरी छन्दमें ही रचो गई हैं। उसे देख कर चमकत होना पड़ता है। जन्दप्रमस्ताके • अतएव अनुमान किया जा सकता है कि प्रतिप्राचीन यिमने मानय पोर पर भादिका संग्रह कर · उनको 'कालमें प्रार्य जातिमें असुर शद पूज्यार्थमें ध्यपहत पृथियो पर छोड़ दिया था। परन्तु शीघ्र ही उनके राज्य में होता था। भीषण पोस कर उपस्थित हुा । उस समय उन्होंने कुछ ..: एन्ट्र- वैदिक देवान ये शीर्ष स्थानीय है। किन्तु माधु व्यक्तियों को एक निर्जन मनोरम स्थानमें ले जा कर जम्दवस्ताके वन्दिदाद (१४३ / में उन्होंने शैतान उनको रक्षा की। वहां वे बड़े आनन्दसे रहने लगे। पहिमनका परवतों स्थान अधिकार किया था। ऋग्वेदके सूक पढ़नेमे घात होता है कि यम मानव. इन्द्रको दुष्टों में दुष्टतम कहा गया है। जातिके पिता थे। उन्होंने सबसे पहले मृत्य कष्ट पाया '. . शिवके लिए भी ज.न्दप्रयस्ता ऐसी ही व्याख्या को था पोर मर कर स्वर्गम गये थे। बहो उन्होंने. अधिः गई है। किन्तु कुछ वैदिक देवताओं के नाम अवस्ता ) वासियों को ऐमा एक स्थान बनाया कि फिर वहासे कोई देवदूतो मे गृहीत हुए है। इनमें मिवका नाम सविशेष हटा न सके । वहां पिगण जाया करते हैं और पुत्रगण उखयोग्य है। वेदमें मित्र और वरुणका एक साथ | भो वहीं जायेंगे (पा ११९ )। उस सुखमय भाद्वान किया गया है, किन्तु जन्दप्रयस्ता मित्र एका स्थानके वैदिक राजाका पौराणिक हिन्दूधममें कराल. की ही पाहत हुए हैं। इसी प्रकार अन्य देवतापों का भीषण मृत्यु के अधिपति यमदेवकी भांति वर्णन किया नमि अर्यमन है जो दोनो' ग्रन्थों में दो पमि व्यवहत | गया है। “हुपा है। जैसे-(१) वधु वा सङ्गा, (२) विषाके अन्दअवस्तामें यह भी देखने में प्राता है कि साम. अधिष्ठाता देवता। ब्राह्मण तथा पारसो लोग विवाहमें | बंशीय यित प्रहिमनने मरलोकमें जिस घ्याधिकी सृष्टि नका आदान करते हैं।.भगवहीतामें 'पर्यमा'को .. की थी, उसको चिकित्सा कर रहे हैं। पदिक वित Vol. VIII. 2.