पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/८०१

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झांसी ०२८ वटना सिवा पोर किमो प्रकारका विभय नहीं। यो, किन्तु कई एक दुर्भिसमे उनोस बनेका परलोकको घन यमे । १८९५१ मे ले कर १८०२१. सक र भाउ .. .. मोमोम देयोपोर मागुपो पापदफा.ममान उपट्रप पनि प्राय: २८५१६ ममुन कम गये पर्याय नोकाला है।कमी दीर्घकालव्यापी पनाहट, कभी मुघनधारकी | | ३५०४५२ से २१७२५ हो गईम पाटमे सोशमस्या । बरिटेगको उत्सय कर रही है। इमे भी बढ़ कर हमके | क्रमश: बढ़ रही है। पाजकन मोकमंग्या प्राय: १५० पूर्वगः महाराष्ट्र पोर अन्यान्य राजग ऐमी मिठरता है। पूर्व राजापोंके पधित करके बोझसे, १८५०५८ माय प्रजाम कर यम्म करते थे कि ये धरत मुश्किलमे ई के विद्रोही मिपाहियोंकि उरपोड़नमे नया बाद प्रोसिका नियांच कर सकतो घी पोर पुनाराष्ट्रविश्यमे देग दुर्भित, देगल्यापी महामारोपादि विपदमे पधिकांश तहमनाम हो जाता था । १८५३ में अध यह जिना लोग प्राणत्याग करने लगे पोर जो कह रे ये देग गरेर अधीन पाया, तप यहाँक पधिकांय पधियामी | छोड़ने लगे थे। १८३२ में झामोका सेकफास प्रायः प्रत्यन्त दरिद्र और दुर्द गाग्रस्त थे । मभो गृहम्य महा. २८२२ वर्गमोन और लोकसंख्या लगभग २८६.०० यो। जनों के प्रण शाम में फंसे हुए थे । हिन्दुरामापोंके निय- १८८९ में मका क्षेत्रफम्त अधिक कम पर्यात् १९५० मामुमार पिताका ऋण पुत्रको देना पड़ता था, किन्तु ऋण | धगमोल होने पर भी मोकसंख्या पहलेमे बदरको है। भदा नहीं होने पर महाजन घटपोकी भूमम्पत्ति नहीं। झांसीके प्रायः सभी पधिषामी हिन्दू है। मैकई पो . नेमकी थे । पगल शासनके माथ जमीन नीलामको | घार मुसलमान । परमत्या अधियासियों के लिये इस प्रथा प्रयतित धोनमे अधिवासियों को दुर्द गा घोर भो ही पिरतिकर है। जेन पौर सियोको संख्या मधमे शम अधिक पढ़ गई। फिर उसके बाद ही १८५७-५८६० है।इम मिया पारमो पोर पार्यममाजी दो चार वाम विद्रो दुदंगा मन्तिम मीमा तक पहुंच गई थो। करते समय ममय पर बहुतसो ईसाई मैन्य तथा कर्म दुर्भिच और पाटकी घटमा भी न्यारो ही थो। पन्तमें पारी पादि यहाँ पाकर रहते है। पधियासो रिन्दुपनि गयम गटने झामी निको इस तरह नितान्त दरिद्र टेम्न | प्राणों की माया धमार छोड़ कर पीर मय जातियों फर प्रजाफे हितार्य १८८२ ई०में वहाँ एक नया कान न : पधिक है। इसके मिवा राजपूत. कायस्थ वनिया. कारी. प्रसन्नित किया। पम्त प्रजाको मयखान्तमे रघा कुर्मी, पहीर, कोइरी, लोधो पादि जातियों को मस्या करनासो रस कान नका उद्देश्य था । पधिकाश राम्य | भी कम नहीं है। पादिम पसभ्य जाति भी यहां रहको या परिगोधमें भसमर्थ की गये थे। ऐसे समय में उम है।१०७ ग्राममि पहीर, १०२मे माग्य, हर रात लोगमि कयन मूलधनही ले लिया जाता पयवा सुदकमा ६में लोधी, ४४में कुर्मी और 0 ग्राम, कहो रहते हैं। दिया प्राता पयवा बिना कुछ लिये हो उन्हें मुन्न कर | गजपूतो मसे पधिकांग बुन्देला भातिके है । धर्मक मोध देते थे। म कामके निये एक पृथक् जज नियुक्त हुए। पौर प्रमभ्य जाति निम्न येणाझे शूद्र कहलाते हैं । झामो मझे मिया पसाय दिवालिया प्रजाको गवर्म गट कम | जिलेके माल, रानोपुर, गुड़सराय, बयामागर पोर सदमें रुपया कर्भ देने लगी। किन्तु जब पुन: ऋण गोध-1 भागड़े प्रभृति पाप नगरो म पोच इमारमे पधिक वाम का कोई दयाय नहीं देखा जाता न गयौ गट इम है।मामी, नोपशावाद नगरमें जिलेको पदालत, मेमाकी माफी सम्पत्ति मगदने सगो। इस नियममे प्रजाफा शायनी और म्य निसपालिटी रहने पर भी यको मत उपकार सोने नगा । रमझे पतिरिण यहा गया / मोकसंख्या ३०..से पधिक नहीं। मटका प्राप्य राजम्य और दूमरे स्थानों में बहुत कम है। पि-मामीको भूमि सभावतः अनुर्वर है। हटि . .

मिमलितपुरको छोड़ कर मामी जिले के समान यमाय तया पाडी पारा छविम उपाय अन मापनेती :

पप पधियासीयुत जिना पाटेगमे दुमरा नी 21/ पसुविधा नमे या पच्छो फममनी नगी 11 पारस मामनके पारम्भमे वहांको मनस्या बह रो फमो अलका या प्रवन्ध रहता ART : बोड़ागात .